प्रवीन के प्रकृति प्रेम ने स्कूल को दो बार दिलाया स्टेट अवॉर्ड, दूध की थैलियों और दही के कप में उगा डाली नर्सरी
प्रवीन ने स्कूल कैंपस में हर्बल वेजिटेबल फूलों और फलों का गार्डन बनाया है। साथ ही स्कूल के अंदर एक कमल का तालाब भी बनाया है जोकि शहर के सरकारी स्कूलों में कहीं मौजूद नहीं है।
चंडीगढ़ [सुमेश ठाकुर]। प्रकृति प्रेम हमें दूसरे काम करने से रोकता नहीं है। बल्कि उसे करने से हम कई ऐसे माध्यमों से जुड़ते हैं जोकि हमारे आंतरिक और मानसिक विकास के लिए वरदान साबित होते हैं। यह सच करके दिखाया है गवर्नमेंट गर्ल्स मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल सेक्टर-20 की ईको क्लब इंचार्ज प्रवीन कुमारी ने। प्रवीन कुमारी बीते दस साल से स्कूल में ईको क्लब की इंचार्ज हैं। प्रवीन ने स्कूल को पर्यावरण से इतने बेहतर तरीके से जोड़ा है कि दस साल में दो बार स्टेट अवॉर्ड दिला चुकी हैं। उन्होंने बताया कि ईको क्लब से जुड़ने के कारण मैं किसी चीज से कटी नहीं बल्कि मेरा दायरा बढ़ा होता गया। जिसके कारण मैं आज स्टूडेंट्स के अलावा सामाजिक लोगों से भी जुड़ाव रखती हूं और पर्यावरण बचाव के प्रयास में दूसरों को भी शामिल करती हूं। मेरे प्रकृति प्रेम से जहां पर स्कूल को स्टेट अवॉर्ड मिला है, वहीं, स्टूडेंट्स भी प्रकृति से जुड़े हैं।
2014 में पर्यावरण विभाग ने किया सम्मानित
प्रवीन ने अपने स्कूल कैंपस में हर्बल, वेजिटेबल, फूलों और फलों का गार्डन बनाया है। इसके साथ ही स्कूल के अंदर एक कमल का तालाब भी बनाया है जोकि शहर के सरकारी स्कूलों में कहीं मौजूद नहीं है। इसमें कमल के फूलों के अलावा मछलियों को पाला गया है। हर्बल गार्डन में 35 किस्मों के पौधे और पेड़ शामिल हैं। वहीं, फूलों में भी 20 किस्में हैं। फलों में आम के अलावा अमरूद और केला भी स्कूल के अंदर उगाया गया है। जिसके लिए पर्यावरण विभाग ने वर्ष 2014 स्कूल को स्टेट अवॉर्ड से सम्मानित किया था। इस अवॉर्ड को पाने के लिए ट्राईसिटी के सौ स्कूलों ने अप्लाई किया था। जिसमें स्कूल को दूसरा स्थान मिला था। वहीं, वर्ष 2018 में स्कूल को फिर से पर्यावरण विभाग ने सांत्वना पुरस्कार देकर सम्मानित किया था।
हर साल 500 के करीब पौधों को किया जाता है दान
प्रवीन ने स्कूल में अलग-अलग गार्डन बनाने के अलावा दूध की थैलियों और दही के कप में भी नर्सरी को उगाया है। यह काम प्रवीन ने स्टूडेंट्स के साथ मिलकर किया है। प्रवीन ने बताया कि बच्चों से दूध की खाली थैलियों और दही के कप को मंगवाया गया। जिसमें बच्चों से ही पौधे लगवाएं गए। जब कोई स्कूल या फिर स्थानीय निवासी पौधा लेने आता है तो उसे उसी स्टूडेंट्स से दिलाया जाता है जिसने उसे लगाया है। हर साल सीजन के अनुसार पांच सौ के करीब पौधों को दान किया जाता है। यह पौधे अलग-अलग सीजन में उगने के काबिल होते हैं। इससे जहां पर पेड़-पौधों की संख्या बढ़ रही है, वहीं, स्टूडेंट्स को भी इसकी लाभ के बारे में जानकारी मिल रही है।
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