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SGPC के 100 वर्ष: अब इसकी भूमिका में बदलाव देखना चाहता है सिख जगत

100 years of SGPC 15 नवंबर को एसजीपीसी को 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे। अब वक्त बदलने के साथ इसकी भूमिका में बदलाव की भी मांग उठने लगी है। कई वर्षों से आल इंडिया गुरुद्वारा बोर्ड उठाने की मांग उठने लगी है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 13 Nov 2020 10:07 AM (IST)Updated: Fri, 13 Nov 2020 10:07 AM (IST)
SGPC के 100 वर्ष: अब इसकी भूमिका में बदलाव देखना चाहता है सिख जगत
अमृतसर स्थित एसजीपीसी (SGPC) का कार्यालय। फाइल फोटो

चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। 100 years of SGPC: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) 15 नवंबर को 100 साल पूरे कर रही है। वक्त बदलने के साथ ही SGPC की भूमिका में भी बदलाव की मांग उठने लगी है। कई सालों से आल इंडिया गुरुद्वारा बोर्ड बनाने की मांग हो रही है, क्योंकि सिखों का दायरा अब महापंजाब तक सीमित नहीं रहा है।

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सिखों की मिनी पार्लियामेंट कही जाने वाली इस कमेटी का जन्म गुरुद्वारों को महंतों से छुड़वाने के लिए शुरू हुए संघर्ष से हुआ। दरअसल, ब्रिटिश सरकार ने 36 सिखों पर आधारित अपनी एक कमेटी का गठन करने का प्रस्ताव दिया, जो गुरुद्वारा साहिबान के प्रबंधों को देखती, लेकिन यह बात सिख पंथ को मंजूर नहीं थी और 15 नवंबर 1920 को श्री अकाल तख्त साहिब पर सिख पंथ ने बैठक बुलाकर 175 सदस्यों वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का गठन कर दिया। गठन के बाद पांच साल कर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष कर हजारों सिखों ने कुर्बानी दी और 1925 में सिख गुरुद्वारा एक्ट पारित करवाया। तब इस जीत को महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई की पहली जीत बताया था।

वर्तमान में SGPC के 191 सदस्य हैं। जिनमें पांच तख्तों के जत्थेदार साहिब, दरबार साहिब व श्री अकाल तख्त साहिब के मुख्य ग्रंथी और 15 नामित सदस्य हैं। इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और यूटी से 170 सदस्यों का चुनाव होता है।

1947 में देश आजाद हुआ तो भारत और पाकिस्तान विभाजन के साथ SGPC में भी विभाजन हुआ। पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा साहिबान इससे अलग हो गए। परंतु पेप्सू के गुरुद्वारा साहिबान SGPC के अधीन आ गए। 1966 में हरियाणा अलग होने के बाद अब हरियाणा की अलग SGPC का मुद्दा कोर्ट में लंबित है।

यही नहीं, श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदारों की नियुक्ति, पद मुक्ति और अधिकारों को लेकर विवाद छिड़ते रहे हैं। उससे भी ज्यादा बड़ा मुद्दा मर्यादा को लेकर है। सचखंड श्री हजूर साहिब, नांदेड़ और श्री पटना साहिब के तख्तों की मर्यादा भिन्न है। इन दोनों तख्तों पर दशम ग्रंथ को मान्यता मिली हुई है, जबकि पंजाब के किसी भी तख्त पर इसका प्रकाश नहीं होता। विदेश से भी कई मसले सामने आते रहते हैं। इसलिए तीन दशकों से SGPC का दायरा बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है।

1986 में आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट बनाने का प्रस्ताव तैयार कर सभी गुरुद्वारा बोर्ड को इसमें मर्ज किए जाने पर विचार हुआ। क्योंकि कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में सिखों की आबादी को देखते हुए उन्हें भी SGPC में प्रतिनिधित्व देने की मांग उठती रही है लेकिन इसे लेकर कोई कार्यप्रणाली तैयार नहीं की गई।

SGPC के पूर्व अध्यक्ष जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहड़ा ने विश्व सिख काउंसिल का प्रस्ताव सिख संगत के समक्ष रखा था लेकिन इसे भी रद्द कर दिया गया। प्रकाश ङ्क्षसह बादल सरीखे वयोवृद्ध अकाली नेता कभी भी आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट या विश्व सिख काउंसिल के पक्ष में नहीं दिखे।

उल्लेखनीय है कि SGPC मुख्य रूप से ऐतिहासिक गुरुद्वारों के प्रबंध आदि का काम ही देखती थी, अब कमेटी की ओर से सिख बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल व कालेज आदि सहित सेहत सुविधाओं के लिए अस्पताल व मेडिकल कालेज भी खोले।

जानें एसजीपीसी के बारे में

  • 1920 में हुआ 175 सदस्यीय शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का गठन
  • 1925 में पास हुआ सिख गुरुद्वारा एक्ट, देनी पड़ीं हजारों सिखों को कुर्बानियां 
  • 1947 में देश विभाजन के बाद SGPC के अलग हुए पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा साहिब 
  • 1966 पंजाब के विभाजन के बाद हरियाणा में उठी अलग SGPC की मांग 
  • वर्तमान में गुरुद्वारा साहिबान का प्रबंध देखने के अलावा कई शिक्षण संस्थान चला रही है SGPC 

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