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शहर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए लगेगा पुराना आर्मी टैंक और हवाई जहाज

अब शहर की सुंदरता बढ़ाने के लिए पुराना आर्मी टैंक व हवाई जहाज लगाया जाएगा।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Feb 2019 06:39 PM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2019 06:39 PM (IST)
शहर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए लगेगा पुराना आर्मी टैंक और हवाई जहाज
शहर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए लगेगा पुराना आर्मी टैंक और हवाई जहाज

साहिल गर्ग, ब¨ठडा : अब शहर की सुंदरता बढ़ाने के लिए पुराना आर्मी टैंक व हवाई जहाज लगाया जाएगा। इसके लिए नगर निगम के मेयर बलवंत राय नाथ ने केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के दिल्ली स्थित आफिस में पत्र लिखा है। जहां से मंजूरी मिलने के बाद इसको संबंधित विभाग को शहर में स्थापित करने के लिए प्रपोजल भेजा जाएगा। अगर उनके द्वारा इसको पास कर दिया जाता है तो शहर में पुराना आर्मी टैंक व हवाई जहाज लगा दिया जाएगा।

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नगर निगम के मेयर बलवंत राय नाथ का कहना है कि इसके साथ युवाओं को देश के पुराने टैंकों और हवाई जहाज के बारे में जानकारी मिलेगी। वहीं इसके साथ शहर ही सुंदरता भी बढ़ेगी। जबकि इनको कहां पर स्थापित करना है, इसके लिए अभी जगह फाइनल नहीं है। फिलहाल इसके लिए संबंधित विभागों से मंजूरी मिलने का इंतजार किया जा रहा है। इसके अलावा उन्होंने शहर में पुराना स्टीम इंजन भी स्थापित करने के लिए केंद्रीय मंत्री से मांग की है।

मेयर ने रेलवे को भी लिखा था पत्र

नगर निगम के मेयर बलवंत राय नाथ ने रेलवे को भी पत्र लिखा था कि वह शहर में रेलवे की पुरानी धरोहर यानि की भांप वाले इंजन को स्थापित करना चाहते हैं, ऐसा एक इंजन नगर निगम ब¨ठडा को दिया जाए। इसके जवाब में रेलवे ने 5 सितंबर 2018 को नगर निगम मेयर को पत्र लिखा कि उनके पास फिलहाल सुंदरीकरण के लिए पुराना भांप इंजन तो नहीं है, लेकिन नैरोगेज डीजल लोकोमोटिव है, जिसको शहर में डिस्पले किया जा सकता है। इसके जवाब में मेयर नाथ ने 14 सितंबर को रेलवे का धन्यवाद करते हुए दूसरा पत्र जारी किया कि वह नैरोगेज लोकोमोटिव को भी ब¨ठडा में स्थापित करेंगे, जिस संबंधी सारी औपचारिकताओं को जल्द ही पूरा कर दिया जाएगा। वहीं रेलवे इंजन लगने के बाद शहर की सुंदरता बढ़ जाएगी। जबकि यह इंजन कहां व कब लगाया जाएगा, इसका अभी तक इस बारे में कुछ फाइनल नहीं किया गया है। फिलहाल इंजन मिलने पर सहमति हो गई है।

क्या है नैरोगेज लोकोमोटिव

भारत में दो तरह की नैरोगेज लाइनें हैं। एक में दोनों लाइन के बीच की दूरी 2 फीट 6 इंच व दूसरे में 2 फीट होती है। ब्रॉडगेज के मुकाबले नैरोगेज में इंजन, कोच, मशीनरी और रखरखाव उपकरण की आवश्यकता अधिक होती है। वाणिज्यिक रूप से नैरोगेज लाइनें भारत के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों के अलावा दुनिया में बहुत कम जगहों पर मौजूद हैं। अब भारतीय रेलवे की ओर से इन रेल लाइनों को विलुप्त होने से बचाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। नैरोगेज लाइनों को संरक्षित करने का आदेश रेलवे ने जारी किया गया था। रेलवे मंत्रालय में नीति निर्माता इस महत्वपूर्ण औद्योगिक विरासत को संरक्षित रखने के इच्छुक हैं। मंत्रालय के एक अध्ययन से पता चला है कि यह हर साल कई विदेशी पर्यटक सिर्फ इन रेलों के वजह से भारत आते हैं।

यहां है नैरोगेज

33 किलोमीटर की दाभोई-मियागम लाइन भारत की पहली नैरोगेज रेलवे लाइन थी। 1862 में जब इसका ऑपरेशन शुरू हुआ तो कोच को ऑक्सन द्वारा खींचा गया। बाद में इसमें स्टीम इंजन जोड़े गए थे। जीबीएसआर के मालिक बड़ौदा के महाराजा ने बाद में अपने राज्य के अधिकांश शहरों को जोड़ने के लिए हल्के नैरोगेज रेलवे का एक नेटवर्क बनाया था। इसके अलावा जिन रेल लाइनों को संरक्षित किया जाएगा उनमें मियागम-मल्सर (38 किमी), चारोंडा-मोती करल (19 किमी), प्रताप नगर-जंबुसर (51 किमी) और बिलमोरा-वाघी (63 किमी) है।


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