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रामपुरा व सरदूलगढ़ में 20 साल से दो ही परिवारों के नेता बन रहे हैं विधायक

जिला बठिडा के रामपुरा व व मानसा के सरदूलगढ़ ऐसे दो विधानसभा हलके हैं जहां पर बीते 20 साल से अकाली व कांग्रेस के दो परिवारों का वर्चस्व रहा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 10:42 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 10:42 PM (IST)
रामपुरा व सरदूलगढ़ में 20 साल से दो ही परिवारों के नेता बन रहे हैं विधायक
रामपुरा व सरदूलगढ़ में 20 साल से दो ही परिवारों के नेता बन रहे हैं विधायक

साहिल गर्ग, बठिंडा : जिला बठिडा के रामपुरा व व मानसा के सरदूलगढ़ ऐसे दो विधानसभा हलके हैं, जहां पर बीते 20 साल से अकाली व कांग्रेस के दो परिवारों का वर्चस्व रहा है। इन दोनों हलकों में 1997 के बाद किसी और को विधायक बनने का मौका नहीं मिला। इस बार भी रामपुरा की सीट पर कांग्रेस की ओर से पुराने उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा गया है। हालांकि सरदूलगढ़ में कांग्रेस का उम्मीदवार अभी तय नहीं हुआ।

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रामपुरा सीट तो ऐसी है, जहां पर कांग्रेस का विधायक जीता हो या फिर अकाली दल का, वह सरकार में सिकंदर ही बना है। चुनाव जीतने वाले दोनों ही पार्टियों के विधायकों को अपनी-अपनी सरकार में मंत्रीपद भी मिला है। ऐसे में अब रामपुरा में जहां दो परिवार आमने सामने हैं। वहीं यहां पर दो पूर्व मंत्रियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई भी है। लेकिन यहां पर अब आप के उम्मीदवार भी इनको टक्कर दे रहे हैं। अगर रामपुरा सीट की बात की जाए तो यहां पर 2022 के चुनावों के लिए अकाली दल ने सिकंदर सिंह मलूका व कांग्रेस ने गुरप्रीत सिंह कांगड़ को चुनाव मैदान में उतारा है। यह दोनों ही उम्मीदवार अपनी अपनी सरकार में मंत्री रह चुके हैं। हालांकि कांगड़ का मंत्रीपद राज्य में चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार बनने पर चला गया, लेकिन वह कैप्टन सरकार में पावरकाम व रेवेन्यू मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा अकाली दल की सरकार में सिकंदर सिंह मलूका शिक्षा व पंचायत मंत्री रह चुके हैं।

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1997 के बाद नहीं बदले विधायक

रामपुरा व सरदूलगढ़ में 1997 से लेकर 2017 तक तीन बार कांग्रेस व दो बार अकाली दल के विधायक रहे हैं। लेकिन हर बार यहां पर किसी तीसरे को विधायक बनने का मौका नहीं मिला। रामपुरा में 1997 में अकाली दल के सिकंदर सिंह मलूका विधायक बने तो 2002 व 2007 में कांग्रेस के गुरप्रीत सिंह कांगड़ विधायक बने। हालांकि 2002 में कांगड़ आजाद चुनाव जीते थे, बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके अलावा 2012 में रामपुरा से अकाली दल के सिकंदर सिंह मलूका व 2017 में कांग्रेस के गुरप्रीत सिंह कांगड़ विधायक बने। इसके अलावा सरदूलगढ़ में 1997 में कांग्रेस के अजीतइंद्र सिंह मोफर विधायक बने तो 2002 में अकाली दल के बलविदर सिंह भूंदड़ विधायक बने। इसी प्रकार 2007 व 2012 में कांग्रेस के अजीतइंद्र सिंह मोफर फिर से विधायक बने तो 2017 में अकाली दल के दिलराज सिंह भूंदड़ विधायक बने।

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रामपुरा व सरदूलगढ़ में परिवारवाद

रामपुरा व सरदूलगढ़ दोनों सीटों पर परिवारवाद काफी प्रभावित है। रामपुरा में बेशक 1997 से लेकर 2017 तक अकाली दल के सिकंदर सिंह मलूका चुनाव लड़ते रहे। लेकिन इस बार वह अपने बेटे गुरप्रीत सिंह मलूका को रामपुरा से चुनाव लड़वाना चाहते थे। लेकिन अकाली दल की ओर से उनको टिकट दी गई। इस बात से वह नाराज भी हुए, लेकिन उनको बाद में मना लिया गया। इसी प्रकार सरदूलगढ़ में अकाली दल के बलविदर सिंह भूंदड़ चुनाव लड़ते रहे तो 2017 में उनके बेटे दिलराज भूंदड़ को टिकट दी गई, वह चुनाव भी जीत गए। वहीं 2017 तक सरदूलगढ़ से कांग्रेस के चुनाव लड़ने वाले अजीत इंद्र सिंह मोफर इस बार अपने बेटे विक्रमजीत सिंह मोफर को टिकट दिलाना चाहते हैं, वह अपने एरिया में काफी एक्टिव भी हैं। लेकिन अभी तक उनके नाम की लिस्ट जारी नहीं की गई। फिलहाल सरदूलगढ़ में कांग्रेस की टिकेट पर सस्पेंस बना हुआ है।


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