संगीत अध्यापक का अनोखा संकल्प, सोने की स्याही से Sri Guru Granth Sahib लिख रहे मनकिरत
मनकिरत सिंह सोने की स्याही से Sri Guru Granth Sahib लिख रहे हैं। स्याही पर 2.25 लाख रुपये खर्च होंगे। रोज वह 6 घंटे में 19 लाइनें लिखते हैं।
बठिंडा [साहिल गर्ग]। भगता भाईका के युवा शिक्षक मनकिरत सिंह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरे हैं। मनकिरत ने सोने की स्याही से पुरातन ढंग से श्री गुरु ग्रंथ साहिब (Sri Guru Granth Sahib) लिखने का संकल्प लिया है। मौजूदा समय में श्री गुरु ग्रंथ साहिब को पदच्छेद कर लिखा गया है, लेकिन मनकिरत पुराने समय में लड़ीवार तरीके से गुरबाणी लिख रहे हैं। इसके लिए मनकिरत सिंह ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) से मंजूरी ली है। उसने प्राचीन तकनीक से विशेष किस्म की स्याही तैयार की है। इसे तैयार करने का फॉर्मूला सिख विद्वान भाई साहिब सिंह ने उन्हें दिया है।
गांव कल्याण सुखा के गार्डन पब्लिक स्कूल में मनकिरत सिंह बतौर संगीत अध्यापक सेवाएं दे रहे हैं। वह रोज छह घंटे में दो अंग (पन्ने) लिखते हैं। इसके लिए स्कूल प्रबंधन ने भी उनको शैक्षणिक कार्य से मुक्त कर दिया है।मनकिरत ने बताया कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब लिखने के लिए स्याही पर ही करीब 2.25 लाख रुपये खर्च होंगे। पूरी लिखाई में 10 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसकी जिल्द भी सोने की होगी।
कैसे बनती है खास स्याही
श्री गुरु ग्रंथ साहिब लिखने के लिए भाई साहिब सिंह से लिखित में जानकारी लेकर मनकिरत ने विशेष स्याही तैयार की है। उन्होंने बताया कि आम तौर पर उगने वाली बूटी भृंगराज समेत अन्य सामान डालकर इसकी करीब 20 दिन तक रगड़ाई करनी पड़ती है। इसके बाद स्याही में सोना मिलाया जाता है। लिखने का काम बहुत सावधानी से करना पड़ता है। पन्ना नंबर का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। सिख विद्वान भाई गुरदास के समय लिखे गए श्री गुरु ग्रंथ साहिब की तर्ज पर ही उन्होंने लिखने का प्रण लिया है।
जपुजी साहिब की बाणी लिख चुके हैं
मनकिरत सिंह ने बताया कि यह काम तीन साल में पूरा होगा। वह जपुजी साहिब की बाणी भी लिख चुके हैं। इसके हर अंग (पन्ने) पर गुरुबाणी की 19 लाइनें लिखी जाती हैं। एमए संगीत पास मनकिरत अमृतधारी सिख हैं। उनकी पत्नी ने उन्हें इस पवित्र कार्य के लिए प्रोत्साहित किया। वे चाहती हैं कि वह अपने हाथों से श्री गुरु ग्रंथ साहिब लिखें। मनकिरत ने कहा कि वह अपने काम में इतना खो जाते हैं कि गुरुबाणी लिखते हुए पता ही चलता कब छह घंटे बीत गए।
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