अगर हेल्थ सेक्रेटरी के बच्चे को एचआइवी संक्रमित खून चढ़ा होता तो क्या फिर भी ऐसे ही ढीली होती कार्रवाई
एचआइवी संक्रमित खून चढ़ा दिया होता तो क्या फिर भी सेहत विभाग ऐसे ही ढीली कार्रवाई करता।
गुरप्रेम लहरी, बठिडा : अगर हेल्थ सेक्रेटरी के बच्चे को एचआइवी संक्रमित खून चढ़ा दिया होता तो क्या फिर भी सेहत विभाग ऐसे ही ढीली कार्रवाई करता। यह सवाल थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे की मां ने सेहत विभाग को किया। उनके 11 वर्षीय थेलेसीमिया पीड़ित बच्चे को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ा दिया गया था। उन्होंने बिलखते हुए कहा कि मेरा बेटा आम परिवार से है तो सेहत विभाग के अधिकारियों की जांच भी धीमी है। अगर मेरे बेटे की जगह सेहत विभाग के किसी उच्च अधिकारी का बेटा होता क्या तब भी ऐसे ही कार्रवाई होनी थी। बच्चे सभी के एक जैसे ही होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि उनके बेटे को एचआईवी पाजिटिव कंफर्म हुए एक सप्ताह बीत गया है। लेकिन अभी तक आरोपितों पर कोई कार्रवाई नहीं की। जांच कमेटी सिर्फ जांच करने में लगी हुई है। लेकिन अभी तक जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। जबकि हमारे लिए एक एक पल गुजारना मुश्किल हो गया है। पीड़ित बच्चे के चाचा ने कहा कि जिदगियां बचाने वाले ही अगर ऐसे जिदगियां लेने लगे तो आम लोगों का क्या होगा। आम लोगों के लिए तो डाक्टर ही दूसरे भगवान होते हैं अगर भगवान ही ऐसे लापरवाही करने लगे तो लोग कहां जाएंगे। उन्होंने कहा कि इनकी लापरवाही के कारण वे कहीं के भी नहीं रहे। उन्होंने कहा कि उनके भतीजे को जिनकी लापरवाही के कारण एचआईवी संक्रमित खून चढ़ा है,उनके ऊपर इरादा कत्ल की धाराओं के तहत कार्रवाई की जाए। जिस बच्चे के मंगलवार को एचआइवी पाजिटिव की पुष्टी हुई है। उसकी मां का कहना है कि अस्पताल के मुलाजिमों की लापरवाही के कारण ही उनका बच्चा एचआईवी संक्रमित हुआ है। उन्होंने कहा कि मेरे तो चार बेटियां हैं जबकि जीने का सहारा एक बेटा ही है। उनको भी इन मुलाजिमों ने नामुराद बीमारी में लिप्त कर दिया है। उन्होंने कहा कि अब सेहत विभाग के अधिकारी अपने मुलाजिमों को बचाने में लगे हुए हैं।
ब्लड बैंक को सील कर सभी सैंपल जांचने की मांग
शहर की मसाज सेवी संस्था सहारा जनसेवा के प्रमुख विजय गोयल ने मांग की है कि ब्लड़ बैंक बठिडा को सील कर दिया जाए और इनमें पड़े सभी सैंपलों की सेहत विभाग के किसी उच्च अधिकारी की निगरानी में जांच कराई जाए। अगर ऐसी जांच होती है तो बहुत बड़ा खुलासा हो सकता है। क्योंकि ब्लड बैंक के मुलाजिम लापरवाही बरत रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनको शक है कि किसी भी युनिट का जिम्मेदारी के साथ कोई टेस्ट नहीं किया गया। अगर इसकी जांच की जाए तो इनके सैंपलों में कई एचआइवी पाजिटिव व कई अन्य बीमारियों से ग्रस्त निकल सकते हैं। इन युनिटों को बिना जांच किए किसी भी मरीज के न लगाया जाए। खून लगाने के पहले इनके सभी टेस्ट किये जाने बहुत जरूरी हैं।
जीवन दान के बजाय बांट रहे मौत : खून दान को जीवन दान कहा जाता है। लेकिन अब इसी दान के खून से मौतें बांटी जा रही हैं। क्योंकि पहले से ही बीमारियों से पीड़ित मरीजों को एचआईवी जैसे वायरस के हवाले कर दिया गया। ऐसे में जीवन दान देने की बजाए उनको मरने के लिए छोड़ दिया गया। मरीजों को खून लगाया ही इस लिए जाता है ताकि उनको स्वस्थ किया जा सके। लेकिन यहां उलटा कर दिया गया है,अब उनको जिदगी भर के हर रोज मरने के लिए छोड़ दिया है।
विशेष शिविर लगा कर खून जांच करने की जरूरत : ब्लड बैंक के कर्मियों के कारण लोगों की जान जोखिम में पड़ रही है। एक माह में ही पांच केसों के सामने आ जाने से सेहत विभाग की वर्किंग पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। अब ऐसा मौका आ गया है कि उन सभी लोगों के खून की जांच की जाए,जिनको पिछले पांच साल में सिविल अस्पताल में से खून चढ़ाया गया है।
यह टेस्ट होते हैं जरूरी
कानून के मुताबिक दान दिए गए खून की एचआइवी, एचबीवी, हैपेटाइटिस सी, मलेरिया, और सिफलिस की जांच होनी बेहद जरूरी है। जितनी देर तक इन टेस्टों की रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक यह खून किसी को भी लगाया नहीं जा सकता। चेन्नई कोर्ट ने सुनाया था फैसला : चेन्नई के सरकारी चाइल्ड हेल्थ एंड हॉस्पिटल फार चिल्ड्रन अस्पताल के डॉक्टरों की लापरवाही के कारण एक गर्भवती महिला को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ा दिया गया था। इसके मद्देनजर अतिरिक्त सिटी सिविल जज वी दनमोझे ने कहा था बच्चों के सरकारी अस्पताल के जिन डॉक्टरों ने पीड़ित का इलाज किया था वह मेडिकल लापरवाही के लिए जिम्मेदार हैं और उन्हें केस दर्ज किए जाने से लेकर फैसला आने तक के समय पर आये खर्च के साथ साथ 6 प्रतिशत ब्याज के साथ 20 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा।
पंजाब एड्स कंट्रोल सोसायटी की बीटीओ डा. सुनीता ने कहा कि मंगलवार को जिस बच्चे की रिपोर्ट एचआईवी पाजिटिव आई है, उसे सिविल अस्पताल बठिडा में दो बार रक्त चढ़ाया गया है। जिन डोनर्ज को उक्त रक्त बच्चे को चढ़ाया गया था, उनकी जांच की गई है, वह दोनों डोनर निगेटिव हैं, इसलिए बच्चा इनसे एचआईवी संक्रमित नहीं हुआ। उसके प्राइवेट लैब में से भी खून चढ़ता रहा है। हो सकता है कि वहां से एचआइवी संक्रमित खून चढ़ा दिया गया हो। पिछले मामले की जांच रिपोर्ट सीएमओ को सौंपी, छिपाने का प्रयास : सात नवंबर के मामले में जांच रिपोर्ट मंगलवार को चीफ मेडिकल आफिसर को सौंप दी गई है। हालांकि सीएमओ ने इस बारे में कुछ भी बताने से इन्कार कर दिया है। सोमवार को पीड़ित बच्चे के परिवार के सदस्यों के जांच कमेटी ने बयान दर्ज किए थे। वहीं अपने स्तर पर जांच के लिए सोमवार को चंडीगढ़ से एक विशेष टीम भी पहुंची थी, जिसने पूरा दिन इस मामले से जुड़े कर्मचारियों और अधिकारियों से बातचीत की। बठिडा थैलेसीमिया वेलफेयर सोसायटी के पदाधिकारियों का आरोप है कि सेहत विभाग जिम्मेदार ब्लड बैंक मुलाजिमों को बचाने में लगा है। अधिकारी अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाने की बजाय जांच के नाम पर खानापूर्ति कर रहे हैं। इससे पहले भी दो बच्चों और एक महिला को एचआइवी संक्रमित रक्त चढ़ाने के मामले की जांच चल रही है। इसमें भी सेहत विभाग दोषियों को बचाने में जुटा है। अक्टूबर में सात साल के बच्चे और सात नवंबर को 11 साल के बच्चे में एचआइवी संक्रमित रक्त चढ़ाया गया था।