तपस्या ही मुक्ति का साधन: मुनि सत्य प्रकाश
उप प्रवर्तक ज्योतिष आचार्य गुरुदेव सत्य प्रकाश महाराज ने जैन सभा सरदूलगढ़ में प्रवचन किए।
संवाद सहयोगी, सरदूलगढ़: उप प्रवर्तक ज्योतिष आचार्य गुरुदेव सत्य प्रकाश महाराज ने जैन सभा सरदूलगढ़ में प्रवचन करते हुए कहा कि तपस्या आत्मा का कल्याण करने का साधन है। तपस्या करने से ही आत्मा शुद्ध होती है व मुक्ति की ओर जाती है।
उन्होंने कहा कि तपस्या से ही हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर सकते हैं। ऋषि-मुनियों ने भी तपस्या के कारण ही रिद्धि सिद्धि प्राप्त की है। चातुर्मास के चार महीने तपस्या के लिए विशेष हैं। इसलिए हमें चातुर्मास का लाभ उठाना चाहिए। तब ही हम इस संसार से मुक्त हो सकते हैं। इस धर्म सभा को सेवाभावी समर्थ मुनि महाराज ने भी संबोधित किया। यहां भान चंद जैन, केवल चंद जैन, सुरेंद्र कुमार जैन, पीटर जैन, रणवीर गोठी, दीपचंद गोठी, मास्टर पन्नालाल, ज्ञानचंद हांसपुर, अभय कुमार जैन, नरेंद्र जैन गोठी, सेंटी जैन, संजीव जैन काका, साधुराम गोठी, सागर गोठी, प्रदीप जैन, डीसी गोठी, राकेश कुमार गोठी, नरेश जैन कालावाली, कुलवंत राय जैन एडवोकेट आदि मौजूद थे। फल की चिता छोड़ कर्म करने से मिलता है सुख: संत हरि योगी मोहल्ला सुधार कमेटी द्वारा अजीत रोड, गली नंबर 17 में श्रीगुरु पूर्णिमा व पावन श्रावण मास के आरंभ के अवसर पर श्री ज्वाला माता मंदिर एक शाम श्रीराम के नाम के जाप पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में आगरा से पधारे राष्ट्रीय संत हरि योगी महाराज द्वारा पहले दिन श्रीराम नाम व अगले दिन श्याम सुंदर पर अपने प्रवचनों की अमृतवर्षा की गई।
अपने प्रवचन के आरंभ में उन्होंने कहा कि श्रीराम व श्रीश्याम अलग-अलग नहीं हैं बल्कि दोनों एक ही रूप हैं। विष्णु भगवान सर्वोत्तम सता हैं और वे घट-घट में विद्यमान है। प्रभु श्रीराम व श्रीश्याम उन्हीं के सवरूप हैं। प्रभु श्रीराम ने हमें जीवन को जीने का तरीका बताया है। उनके जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है कि हमारा जीवन मर्यादित और सकारात्मक सोच के साथ व्यतीत होना चाहिए। हमें त्याग की भावना रखनी चाहिए। वचन का पालन करना चाहिए। ऊंच नीच की भावना, कुसंगती व बदले की भावना से बचना चाहिए तथा हर हालत में धैर्य और शांति को बनाये रखना चाहिए। हमें कठिनाइयों में भी अपनी नैतिक मर्यादाओं को नहीं खोना चाहिए। तमाम उतार-चढ़ाव में भी अपने पथ पर आगे बढ़ना ही श्रेष्ठ है, न कि बुराई के आगे सर्मपण कर देना।