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पराली न जला ऑर्गेनिक खेती अपनाई, हर साल हो रही 6 लाख की कमाई

पंजाब में कई किसान पराली न जलाकर अन्य किसानों के लिए मिसाल बन रहे हैं। यह किसान कमाई तो कर ही रहे हैं साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे रहे हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 18 Oct 2018 12:19 PM (IST)Updated: Thu, 18 Oct 2018 12:19 PM (IST)
पराली न जला ऑर्गेनिक खेती अपनाई, हर साल हो रही 6 लाख की कमाई
पराली न जला ऑर्गेनिक खेती अपनाई, हर साल हो रही 6 लाख की कमाई

जेएनएन, बठिंडा। गांव कलालवाला के किसान राजिंदर सिंह उर्फ भोला 17 साल से पराली नहीं जला रहे। उन्होंने ऑर्गेनिक फॉर्मिंग शुरू करने के साथ ही पूरी पराली को खाद बनाने में सफलता पाई है। भोला मालवा के किसानों के लिए मिसाल बन कर उभरे हैं। उन्होंने पराली के निस्तारण के बारे में बताया कि वे अपने खेत की पराली को एक कोने पर इकट्ठा कर देते हैं। धीरे-धीरे यह खाद बन जाती है और अगले साल उसको फिर अपने खेत में डाल देते हैं। इससे रासायनिक खाद का भी इस्तेमाल नहीं करना पड़ता और पराली भी नहीं जलानी पड़ती।

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भोला कहते हैं कि रासायनिक खाद के चक्कर में लोगों ने अपनी जमीन खराब कर ली है। 2004 में उनके चाचा के साथ चर्चा कर आर्गेनिक खेती शुरू की। शुरुआत में तो बिना खाद व रसायनों के फसल की पैदावार काफी कम होने लगी, लेकिन भोला ने अपना काम जारी रखा। धीरे-धीरे अच्छे नतीजे सामने आने लगे।

ऑर्गेनिक गेहूं के तीन गुना दाम देते हैं लोग

उनकी ऑर्गेनिक गेहूं की बहुत मांग होने लगी। अब उनकी गेहूं खरीदने के लिए लोग एडवांस में पेमेंट जमा करवा देते हैं। बाजार से मिलने वाले रसायन युक्त गेहूं के मुकाबले खरीदार उनको तीन गुना ज्यादा दाम देते हैं। ऐसे में कम पैदावार होने के बावजूद वह पूरी कमाई कर लेते हैं। इसके अलावा वे गुलाब की खेती भी कर रहे हैं। उसमें भी किसी कीटनाशक या रसायन का इस्तेमाल नहीं करते। इसके लिए भोला को स्टेट अवॉर्ड से भी नवाजा गया है।

चार लाख से शुरू किया काम, अब हर साल 6 लाख की कमाई

भोला के चाचा जगदेव सिंह ने उन्हें रिवायती खेती से छोड़ गुलाब की खेती करने का सुझाव दिया। भोला ने बताया कि उन्होंने रिस्क लेते हुए एक साथ ही छह एकड़ में गुलाब की खेती शुरू कर दी। इस पर कुल करीब 4 लाख रुपये की इनवेस्टमेंट करनी पड़ी थी, लेकिन इसके बाद 6 लाख प्रति साल की कमाई हो रही है।

जिले में की एसएमएस की शुरुआत,  विभाग ने दिया अवॉर्ड

  • 2015 में मिला था इनोवेटिव राइस फार्मर का अवॉर्ड
  • 2008 से हैप्पी सीडर की मदद से कर रहे गेहूं की बुआई
  • 10 साल पहले पराली को आग लगानी बंद की थी
  • जिले के पहले किसान जिन्होंने कंबाइन में लगाया एसएमएस

प्रगतिशील किसान पलविंदर सिंह भी बन रहे मिसाल

बीते एक दशक से पराली को आग न लगाकर किसानों को जागरूक करने में प्रयासरत फतेहगढ़ साहिब के गांव बरौंगा जेर तहसील अमलोह के प्रगतिशील किसान पलविंदर सिंह मिसाल बन चुके हैं। पोस्ट ग्रेजुएशन और हायर डिप्लोमा इन को-ऑपरेटिव मैनेजमेंट में डिग्रीधारक किसान पलविंदर सिंह वर्ष 2008 से अब तक हैप्पी सीडर के साथ फसल की बुआई करते आ रहे हैं। उनकी इस उपलब्धि के चलते उन्हें कई सम्मान भी हासिल हो चुके हैं।

उन्होंने दस साल पहले खेत में धान के पराली को आग लगानी बंद कर दी थी। इसके साथ जहां इस किसान की जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ी है। वहीं वातावरण भी प्रदूषित होने से बचा है। किसान पलविंदर के पास अपनी पांच एकड़ जमीन है, जबकि 15 एकड़ जमीन ठेके पर भी ली है। इस तरह वो 20 एकड़ क्षेत्रफल में गेहूं-धान की फसल, आलू और सूरजमुखी फसलों की भी बुआई करते आ रहे हैं।

पलविंदर ने हैप्पी सीडर मशीन के पीछे प्रेशर व्हीलर लगवाया है। इससे मशीन की कार्यकुशलता में विस्तार हुआ है। पहले जहां एक एकड़ को जोतने में दो घंटे का समय लगता था। अब इस मशीन की सहायता के साथ एक से डेढ़ घंटे का समय लग रहा है। कई खेती माहिर, विदेशी वैज्ञानिक भी पलविंदर के खेत का दौरा कर चुके हैं ।

पहले सफल किसान

कृषि विभाग के अनुसार पलविंदर सिंह जिले के पहले किसान हैं, जिसने अपनी कंबाइन के पीछे स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम लगवाया। इस एसएमएस प्रणाली से पराली को खेतों में एक समान बिखेर दिया जाता है। इस तकनीक के साथ फसल में घास भी कम पैदा होती है। कीटनाशकों पर होने वाले खर्च को कम किया जा सकता है। साथ भूजल की बचत भी होती है।

पलविंदर सिंह कृषि विभाग और पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना की तकनीक को अपने खेतों में अपनाकर दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है। उसने 2006 में पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी, लुधियाना से मशरूम की खेती संबंधित और साल 2009 में केंद्रीय बागबानी संस्था, लखनऊ से फल की संभाल बारे प्रशिक्षण हासिल किया। साल 2013 में डबङ्क्षलग फूड प्रोडक्शन विषय पर नई दिल्ली में हुई इंटरनेशनल कांफ्रेंस में पंजाब का प्रतिनिधित्व भी किया। उसने साल 2013 में बेल्जियम के ब्रसल्ज में बायो-रिफाइनिंग तकनीक पर हुई वर्कशॉप में भाग लिया। साल 2015 में उसे हैदराबाद में इनोवेटिव राइस फार्मर के अवॉर्ड से नवाजा गया। (इनपुटः गुरप्रेम लहरी व प्रदीप शाही)

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