लैब टेक्नीशियन बोले, अधिकारियों का बचाने का हो रहा प्रयास
जांच कमेटी ने ब्लड बैंक बठिडा में तैनात ठेके पर भर्ती चार लैब टेक्नीशियन को आरोपित ठहराया है।
जासं, बठिडा : बीते सात नवंबर को थैलेसीमिया पीड़ित 13 वर्षीय बच्चे को एचआइवी पाजिटिव रक्त चढ़ाने के मामले में जांच कमेटी ने ब्लड बैंक बठिडा में तैनात ठेके पर भर्ती चार लैब टेक्नीशियन को आरोपित ठहराया है। उनके खिलाफ विभागीय व कानूनी कार्रवाई करने के लिए उच्चाधिकारियों को लिखा है। इसके बाद अब लैब टेक्नीशियन व पैरा मेडिकल स्टाफ ने शुक्रवार को ब्लड बैंक व लैब का काम बंद कर प्रदर्शन किया। वहीं चेतावनी दी है कि अगर मामले की निष्पक्ष जांच कर असल आरोपितों की पहचान कर कार्रवाई नहीं की जाती है तो वह सिविल अस्पताल में लैब का काम बंद करने के साथ ब्लड बैंक में रक्तदान, जांच व ब्लड इश्यू करने का काम पूरी तरह से बंद कर देंगे। वहीं कर्मचारियों ने ब्लड जांच करने व इश्यू करने के दौरान तकनीकि पहलुओं की कमी के लिए जिम्मेवार अधिकारियों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है।
ब्लड बैंक कर्मियों ने आरोप लगाया कि सिविल अस्पताल के आला अधिकारी, जिसमें सीएमओ से लेकर एसएमओ व ब्लड बैंक की देखरेख करने वाले अधिकारी अपना दामन बचाने व अपने चहेतों को इस मामले से बाहर निकालने के लिए निचले स्तर के कर्मचारियों, जिसमें लैब टेक्नीशियन शामिल है, उनको बलि का बकरा बनाया जा रहा है। उन्होंने पिछले दिनों चंडीगढ़ से आई जांच टीम व सिविल अस्पताल बठिडा में एसएमओ की रहनुमाई में बनी कमेटी की तरफ से की गई जांच को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि पूरे मामले की उच्चस्तरीय सरकारी एजेंसी से जांच करवाई जाए। पूरे मामले में एसएमओ व सीएमओ की भी होनी चाहिए जांच
लैब टेक्नीशियन व आरोपित ठहराए कर्मियों का कहना है कि उन्हें जांच कमेटी की रिपोर्ट पर विश्वास नहीं है। वह लंबे समय से काम कर रहे हैं। तनदेही से काम करने के बावजूद उनके काम पर बिना कारण शंका जताई जा रही है। सिविल अस्पताल में ब्लड में गंभीर बीमारी की जांच करने वाली एलाइजा मशीन छह माह से खराब थी। कई बार अधिकारियों को लिखकर दिया। अब 28 अक्टूबर को जाकर मशीन सही करवाई है, अब भी मशीन सही ढंग से काम नहीं कर रही। बिना ट्रेनिग वाला टेस्ट नहीं कर सकता, लेकिन जो लोग लगाए गए हैं उन्हें कोई ट्रेनिग नहीं दी गई है। जबकि उन्हें डेपुटेशन पर लाकर ब्लड बैंक में तैनात किया गया है। उन्होंने बताया कि नवंबर को थैलेसीमिया पीड़ित बच्चा जोकि एचआइवी पाजिटिव आया, वह सिविल अस्पताल में उपचार के दौरान नहीं आया है। पूर्व ढाई साल से बच्चे का टेस्ट ही नहीं करवाया गया था। सात नवंबर को उन्होंने ने संतर्कता के तहत उसके रक्त की जांच करवाई। एचआइवी टेस्ट का काम डाक्टर का था। जांच कमेटी ने निष्पक्ष जांच नहीं की व असली आरोपितों को बचाने के लिए ठेके पर भर्ती लैब टेक्नीशियन पर गाज गिराई जा रही है। मामले में आरोपित ठहराए गए अजय शर्मा दूसरे सेंटर से आया था, जबकि उसे लैब का अनुभव नही था। कर्मियों ने कहा कि पूरे मामले में एसएमओ व सीएमओ की भी जांच होनी चाहिए।
सीसीटीवी कैमरों को लेकर
भी उठे सवाल
सिविल अस्पताल के पूरे परिसर में 30 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। लेकिन इन दिनों सिर्फ ओपीडी ब्लाक व इमरजेंसी वार्ड, कोरोना आइसोलेशन में कैमरे चल रहे हैं। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि ब्लड बैंक के अंदर कैमरा क्यों नहीं लगाया। इससे पूर्व एक सीसीटीवी कैमरा लगाया गया था, लेकिन इमारत की रेनोवेशन के कारण इसे भी हटा दिया गया। परंतु उक्त घटनाक्रम के बाद वीरवार को अचानक अस्पताल प्रबंधक हरकत में आया और ब्लड बैंक के बाहर स्ट्रीट लाइट व ब्लड बैंक के अंदर चार सीसीटीवी कैमरे लगाए गए। प्रबंधन ने कैमरे तो लगा दिए लेकिन इसमें डीवीआर कम रैम की लगाई है। इसमें केवल कुछ घंटों का ही बैकअप रह सकता है। विरोध कर रहे कर्मियों ने अस्पताल की इस मंशा पर भी सवाल उठाए हैं कि आखिर सरकारी खजाने से लगने वाले कैमरों में डीवीआर कम रैम की क्यों लगाई गई। जबकि सामान्य तौर पर एक से डेढ़ माह का बैकअप होना जरूरी है।