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पावर लिफ्टिग से मुकाम हासिल कर बदली परिवार की सोच

रेलवे में कार्य कर रही रीमा कुमारी ने कभी नहीं सोचा था कि स्पो‌र्ट्स ही उन्हें इतना आगे लेकर चली जाएगी उसके आत्मविश्वास ने उसे आगे बढ़ा दिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 23 Oct 2019 11:16 PM (IST)Updated: Wed, 23 Oct 2019 11:16 PM (IST)
पावर लिफ्टिग से मुकाम हासिल कर बदली परिवार की सोच

संस, बठिडा : रेलवे में कार्य कर रही रीमा कुमारी ने कभी नहीं सोचा था कि स्पो‌र्ट्स ही उन्हें इतना आगे लेकर चली जाएगी, उसके आत्मविश्वास ने उसे आगे बढ़ा दिया। इसके साथ ही उसने अपने परिवार की सोच बदलकर रख दी। रीमा कुमारी गांव भाईरुपा में पैदा हुई। इनके परिवार में वह पांच भाई बहन हैं। पिता रामनारायण बीएसएनएल में कार्यरत हैं। जब वह स्कूल में थी। उनको भाईरुपा के कोच जसविदर सिंह का साथ मिला। उसने उनके प्रशिक्षण में पावर लिफ्टिग की तैयारी की। उसके बाद उन्होंने स्कूल स्तर पर तीन बार नेशनल खेलने का रिकॉर्ड बनाया। इसके बाद इनका परिवार शहर के परस राम नगर में रहने लगा। उन्होंने बताया कि जब वह स्पो‌र्ट्स में थी, तब उनको परिवार का साथ इतना नहीं मिलता था, जितना उसे मिलना चाहिए था। लेकिन उनके मन में खेल के लिए अलग ही भावना थी। मुझे अपनी स्पो‌र्ट्स गतिविधियों के कारण ही रेलवे में नौकरी मिली है। खेलों के दम पर जब उसे रेलवे में नौकरी मिल गई तो उसके परिवार को उस पर गर्व महसूस होने लगा। कई बार बना चुकी हैं रिकॉर्ड

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रीमा कुमारी ने पावर लिफ्टिग में स्कूल के समय पर ही पैर जमा लिए थे। इसके बाद उन्होंने सरकारी राजिदरा कॉलेज में दाखिला लिया और तीसरे साल तक ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी की खेलों में भाग लिया। जिसमें दो गोल्ड व एक सिलवर मेडल हासिल किया। जूनियर नेशनल में भी तीन बार भाग लिया। जिसमें दो गोल्ड व एक सिल्वर मेडल हासिल किया। जबकि सीनियर नेशनल गेम में 180 किलो वेट उठाने का रिकॉर्ड बनाया। बच्चों को देती हैं वेट लिफ्टिग की कोचिग

रीमा कुमारी ने बताया कि वह अब करीब डेढ वर्ष से बीकानेर में रेलवे में नौकरी कर रही हैं। लेकिन उसके मन में खेलने का क्रेज बहुत ज्यादा है। इसलिए वह जब भी जॉब से छुट्टी मिलती है, तो वह बच्चों को वेट लिफ्टिग की कोचिग देती हैं। वह लड़कियों को खेलों में भाग लेने के लिए भी प्रेरित करती हैं। परिवार की सोच को बदलकर आगे बढ़ी

जब मैं वेट लिफ्टिग करती थी, तो उन्हें विभिन्न जगहों पर जाना पड़ता था। उनके परिवार को यह सब अच्छा नहीं लगता था। घर वालों का साथ भी नहीं मिलता था। लेकिन जब उसे स्पो‌र्ट्स कोटे में ही रेलवे में नौकरी मिल गई तो परिवार गर्व महसूस करने लगा। अब उनका पूरा परिवार खेल के प्रति सहयोग देता है। उसके परिवार की सोच में भी बदलाव आ गया है।


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