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परिवार चलाने के लिए करना पड़ेगा कुछ और काम

सोनू उप्पल बरनाला लंका दहन के साथ ही तीनों भाइयों रावण कुंभकरण व मेघनाथ के वध से ज

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 07:30 AM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 07:30 AM (IST)
परिवार चलाने के लिए करना पड़ेगा कुछ और काम

सोनू उप्पल, बरनाला : लंका दहन के साथ ही तीनों भाइयों रावण, कुंभकरण व मेघनाथ के वध से जहां दुनिया भर में लोगों को बुराई पर अच्छाई की हुई वहीं अहंकार के अंत का ज्ञान हासिल किया। बुराई पर अच्छाई की हुई जीत के साथ दुनिया भर में हर वर्ष दशहरा मेला को लेकर रावण, कुंभकरण व मेघनाथ के पुतलों को जलाकर दशहरा मनाया जा रहा है। कारीगरों द्वारा बनाए पुतले बेशक दशहरा मेला में लोगों के लिए आकर्षक होते हैं, परंतु इस बात की तरफ ध्यान नहीं देते हैं। इस प्रथा को कोटकपूरा के निवासी राजिदर सिंह अपने दादा के समय से पहले तीन पीढि़यों से चलाते आ रहे हैं, अब राजिदर सिंह तीसरी पीढ़ी के हैं, जो कि पुतला बना रहे हैं।

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पुतला कारीगर राजिंदर सिंह निवासी हंडिआया ने बताया कि वह विगत 36 वर्षों से अपने पिता के साथ इस काम को कर रहे है, परंतु इसी काम में उनके पिता 65 वर्ष व उनके दादा 75 वर्ष का जीवन गुजर गया। उन्होंने बताया कि दशहरा के समय पुतले बनाने से ही उनके परिवार का गुजारा होता था। पुतले की उंचाई के अनुसार दाम मिलता है, 10 हजार रुपये में फीट के हिसाब से कीमत आकी जात है। परंतु इस बार कोरोना के कारण उनको बड़े आर्डर नहीं मिले। जिससे होने वाला डेढ़ से दो लाख का मुनाफा नहीं हो पाया। इस बार बरनाला में उनके द्वारा दशहरा मेला को लेकर 45 फीट के पुतले 22 एकड़ दशहरा ग्राउंड के लिए, महलकला में एक 30 फीट के, धनौला में 30 फीट के एक पुतलों सहित आस-पास के क्षेत्र में भी पुतलों को आर्डर पर मात्र चार पुतले बनाए हैं। उन्होने बताया कि इस सीजन दौरान उन्हे सभी खर्चा निकाल करके एक जगह से 50 हजार के करीब रूपए बनते है, जिसको वह दिहाड़ी मजदूर में बांट करके बचे रूपए से गुजारा चलाते है। दशहरा मेला के सीजन में पुतले बनाने के बाद उनके पिता जी द्वारा चलाए जा रहे ढाबा पर काम करके अपना परिवार का गुजारा चलाते है। परंतु कोरोना के कारण ना तो ढाबा व ना ही दशहरा का सीजन अच्छे से लग पाया।


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