गांव उप्पली व कट्टू में दो किसान 6 साल से नहीं जलाते पराली
गांव उप्पली व कट्टू में दो किसान विगत 7 वर्षों से नहीं जलाते परालीगांव उप्पली व कट्टू में दो किसान विगत 7 वर्षों से नहीं जलाते परालीगांव उप्पली व कट्टू में दो किसान विगत 7 वर्षों से नहीं जलाते परालीगांव उप्पली व कट्टू में दो किसान विगत 7 वर्षों से नहीं जलाते परालीगांव उप्पली व कट्टू में दो किसान विगत 7 वर्षों से नहीं जलाते पराली
सोनू उप्पल, बरनाला : जिला बरनाला के गांव उप्पली व गांव कट्टू में विगत 6 वर्षों से दो किसान धान के सीजन के बाद खेतों में से निकलने वाली पराली को जलाने की जगह अपने खेत में ही मिलाकर उसको खाद बनाकर खेत में पैदावार बढ़ा रहे हैं। जिला बरनाला के दोनों किसानों बलजीत ¨सह बराड़ पुत्र बंत ¨सह व गांव कट्टू के निवासी गुलजार ¨सह पुत्र इंद्र ¨सह द्वारा जहां पराली को ना जलाकर पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दिया जा रहा है, वहीं यह किसान बिना किसी राजनीतिक नेता व सरकार द्वारा सम्मान व जागरूकता के इस तरह का महान कार्य करने में जुटे हुए है। बलजीत ने पढ़ाई छोड़ कर दी थी किसानी
किसान बलजीत ¨सह बराड़ ने दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए बताया कि 1993 में वह 11वीं कक्षा में श्री मस्तुआना साहब में पढ़ाई करता था, परंतु उनके पिता की बीमारी व घर की गरीबी के चलते उन्होने 11वीं कक्षा के बाद पढ़ाई को छोड़ खेतीबाड़ी का काम शुरू कर दिया। उनके पिता की बीमारी पर भारी खर्च के कारण उसके सिर पर एक लाख के करीब कर्ज चढ़ गया था। उसके पास साढ़े तीन एकड़ जमीन है, जिसमें उसने अपनी मेहनत से खेतीवाड़ी करके उपजाऊ बनाया व जमीन को साढ़े तीन एकड़ से 6 एकड़ किया। 20 वर्ष की आयु में ही खेतीबाड़ी करने लग गया था व विगत 24 वर्षों से वह खेती कर रहे है। उन्होने बताया कि पहले पराली जलाने का नुकसान व इसके सदुउपयोग के बारे में ज्ञान प्राप्त ना होने के कारण वह पराली को जलाया करते थे, परंतु जैसे उनको इसके नुकसान व पराली को खेतों में खाद के रूप में बीजने के लाभ का पता चला तो वह विगत 6 वर्षों से पराली को ना जलाकर खेत में उसको खाद्द बनाकर उपयोग करते है। पराली जलाने से कम होती है उर्वरा शक्ति
खेतों में पराली जलाने से जमीन की उपजाऊ शक्ति व जमीन में पैदावार कम हो जाती है। उन्होने बताया कि पराली को खेत में जलाने से उसमें शामिल ¨जक, कॉपर, आयरन आदि तत्व नष्ट हो जाते है। पराली व झाड़ में कई तरह से अमूल्य तत्व शामिल होते है, परंतु जलने से वह सभी खत्म हो जाते है। इन पौष्टिक तत्वों के नष्ट होने से खाद ज्यादा मात्रा में डालना पड़ता है, जिससे खर्चा में बढ़ोतरी होती है। उनकी तरफ से हर वर्ष सीजन के समय में तीन से चार सेमिनार लोगों को जागरूक करने के लिए लगाए जाते है, परंतु उनको इस कार्य व वातावरण में अपना सहयोग देने के लिए अभी तक किसी भी राजनीतिक व सरकारी अधिकारी की तरफ से हौसला बढ़ाने के लिए सम्मानित नही किया गया है। पराली नहीं जलाने के लिए कर रहे प्रेरित
किसान बलजीत ¨सह द्वारा अपने गांव में 300 किला में पराली नही जलाकर जहां किसानों के जागरूक किया, वहीं किसानों को ज्यादा से ज्यादा हैप्पी सीड़र दिलाने के लिए कंपनी से खुद की एजेंसी ले किसानों से हैप्पी सीड़र मुहैया करवाया जा रहा है। किसान बलजीत अब तक 50 किसानों को जागरूक करके पराली जलाने से रोक चुका है व सेमिनार लगाकर जागरूक कर रहा है।
इसी तरह गांव कटू के निवासी गुलजार ¨सह पुत्र इंद्र ¨सह ने दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए बताया कि उनके पास 20 एकड़ जमीन है व जिसमें वह 18 एकड़ में खेती करते है। उन्होने कहा कि वह विगत 10 वर्षों से खेतों में पराली को जलाने की वजह उसकों खेतों में ही खाद बनाकर ड़ाल देते है, जोकि भविष्य में खाद्द का काम करने के साथ उपजाऊ शक्ति बढ़ाते है। उन्होने कहा कि पराली के अंदर ¨जक, कॉपर, आयरन, सिलीकॉन होने से इससे खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है व खाद भी कम डालना पड़ता है। उन्होने कहा कि वह विगत 48 वर्षों से खेती कर रहे है व उन्होने अपने खेती में पराली ना जलाने के लिए लोगों को समय समय पर जागरूक भी किया है व जिससे प्रेरित होकर अजैब ¨सह पुत्र गुरदेव ¨सह, लाभ ¨सह पुत्र गुरदेव ¨सह, ¨भदर ¨सह, रणजीत ¨सह, बयंत ¨सह पुत्र धन ¨सह, दर्शन पुत्र शमशेर ¨सह ने पराली ना जलाने का प्रण लिया है। उन्होने बताया कि पराली जलाने से खेत के माइक्रो न्यूरिक नाम का तत्व नष्ट हो जाता है।