बच्चों को इंजीनियर व डॉक्टर बनाने का ख्वाब दे रहा तनाव
अमृतसर पंद्रह वर्षीय हिमांशु गहरे तनाव में चला गया। उसकी दिल की धड़कनें असामान्य हो गईं।
— अमृतसर में एग्जाम स्ट्रेस का शिकार बच्चे हुए रिपोर्ट
— गुरु नानक देव अस्पताल व निजी न्यूरोसाइक्रेट्री सेंटरों में प्रतिदिन चार से पांच बच्चे उपचार के लिए पहुंच रहे हैं
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जागरण संवाददाता, अमृतसर
पंद्रह वर्षीय हिमांशु गहरे तनाव में चला गया। उसकी दिल की धड़कनें असामान्य हो गईं। नींद नहीं आती और अचानक गुस्सा व गहरी उदासी छा जाती है। माता-पिता से चिल्लाकर बात करता है। 16 वर्षीय रोहित की हालत भी ऐसी है। ये दोनों किशोर देश के भविष्य निर्माता बनने से पहले ही अवसाद का शिकार हो गए। दरअसल, एग्जाम स्ट्रेस ने इन बच्चों को इस स्थिति में पहुंचा दिया है। प्लस टू की परीक्षा में अच्छे मार्क्स लाने का दबाव उन्हें तनाव का शिकार बना गया।
यह कहानी नहीं, अपितु इन दोनों बच्चों के साथ वास्तविक जीवन में घटित हुआ है। अमृतसर सहित पंजाब भर में एग्जाम स्ट्रेस का शिकार बच्चे रिपोर्ट हो रहे हैं। अमृतसर के निजी साइक्रेट्रिक सेंटर्स एवं गुरु नानक देव अस्पताल में प्रतिदिन औसतन चार से पांच बच्चे आ रहे हैं। इनके अभिभावकों का कहना है कि बच्चे के व्यवहार में तब्दीली आ गई है। वह चीजें उठाकर फेंकता है। चिल्लाकर बात करता है। रंजीत एवेन्यू स्थित डॉ. हरजोत ¨सह मक्कड़ न्यूरोसाइक्रेट्रिक सेंटर में ऐसे तीन बच्चे एडमिट हैं। बच्चों का उपचार कर रहे डॉ. हरजोत ¨सह मक्कड़ का कहना है कि वर्तमान में हमारी शिक्षा पद्धति बच्चों को गहरे तनाव में पहुंचा रहे हैं। अभिभावक यही चाहते हैं कि उनका बच्चा क्लास में फर्स्ट आए। कई अभिभावकों की यह चाह होती है कि उनका बच्चा स्कूल व जिले में अव्वल आए। इस इच्छा की पूर्ति के लिए अभिभावक अपने बच्चों को किताबी कीड़ा बना देते हैं। उन्हें हर वक्त किताबों में उलझाए रखते हैं। बच्चों को आउटडोर गतिविधियों जैसे पार्क ले जाना, गली में खेलने देना इत्यादि बंद कर देते हैं। बच्चा घर में कई कई घंटे तक किताबों पर नजर टिकाए रहता है। असल में बच्चों को करियर से पहले बचपन चाहिए। यदि हम उन्हें बचपन ही नहीं जीने देंगे तो निश्चित तौर पर उनका मानसिक विकास का क्रम बिगड़ जाएगा। हम बच्चों को प्रैक्टिकल नॉलेज नहीं दे रहे। उन्हें किताबें पढ़ा रहे हैं। अभिभावकों को समझना होगा कि बच्चों को अंकों से भरी मार्क्स शीट नहीं चाहिए, उन्हें ¨जदगी चाहिए। आज देश में किशोरों की आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। कारण यही है कि मां बाप उन्हें अच्छे मार्क्स लाने के लिए अत्यधिक दबाव बनाते हैं।
डॉ. मक्कड़ के अनुसार जो तीन बच्चे उनके पास एडमिट हैं वो डीप डिप्रेशन में जा चुके हैं। इनका इलाज जारी है। इनके अभिभावकों को साफ कहा है कि वे बच्चों पर पढ़ाई का बोझ न डालें। उन्हें स्वच्छंद होकर पढ़ने भी दें और खेलने भी दें। उन्हें इंजीनियर या डॉक्टर बनने को न कहें, वो जो बनना चाहते हैं उन्हें बनने दें। अपनी इच्छाएं उन पर कभी न थोपें।