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सावधानः पटाखों का धुआं इंसानों का निकालेगा दम, कोरोना को देगा सांस Amritsar News

दीपोत्सव के शुभागमन में महज पांच दिन शेष हैं। निसंदेह यह पर्व सुख समृद्धि और खुशी का प्रतीक है। धन और वैभव की कामना पूर्ति का दिवस भी लेकिन वर्तमान में प्रदूषण रूपी जहर वायुमंडल में फैलाना घातक साबित हो सकता है।

By Edited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 11:21 PM (IST)Updated: Tue, 10 Nov 2020 08:46 AM (IST)
दीपोत्सव के शुभागमन में महज पांच दिन शेष हैं।

अमृतसर, जेएनएन।  दीपोत्सव के शुभागमन में महज पांच दिन शेष हैं। निसंदेह, यह पर्व सुख, समृद्धि और खुशी का प्रतीक है। धन और वैभव की कामना पूर्ति का दिवस भी, लेकिन वर्तमान में प्रदूषण रूपी जहर वायुमंडल में फैलाना घातक साबित हो सकता है। दीपावली पर करोड़ों नहीं, अरबों रुपयों के पटाखे फूंककर एक माह तक न सिर्फ लोगों का दम घुटेगा, बल्कि यह धुआं कोरोना वायरस को भी सांसें देकर उसे फिर से बढ़ा सकता है। यह अजीब तो लगेगा, पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने संभावना जताई है कि पटाखों से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण कोरोना को सांस दे सकता है। इसलिए दीपावली पर दीप जलाएं, पर्यावरण नहीं। पंजाब सहित अमृतसर में धुएं की अजीबो-गरीब चादर दिख रही है। यह पराली जलाने की वजह से है, लेकिन यदि दीपावली पर पटाखों के कर्णभेदी शोर से प्रदूषण पैदा हुआ तो इस चादर की परत और गहरी हो जाएगी। विशेषज्ञों की मानें तो प्रतिवर्ष दीपावली के एक माह तक धुएं की यह चादर बरकरार रहती है। इससे टीबी, अस्थमा, सीओपीडी इत्यादि रोगों के मरीजों की संख्या में अपत्याशित ढंग से वृद्धि होती है।

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वाहनों व फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषण एक्यूआइ में सुधार होने ही नहीं देता

टीबी अस्पताल के चेस्ट एंड टीबी रोग विशेषज्ञ डा. एनसी काजल का कहना है कि पटाखों से निकलने वाले धुएं में अमृतसर का एक्यूआई वैसे ही 200 के आसपास रहता है। लाकडाडन के दिनों में इसमें अपेक्षित सुधार हुआ। यह 50 से 60 के बीच पहुंच गया था। वाहनों व फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषण एक्यूआइ में सुधार होने ही नहीं देता। दीपावली की रात पटाखों से निकलने वाले धुएं से यह प्रदूषण 300 तक चला जाता है। इसलिए इस बार ग्रीन पटाखों से दीपावली मनाकर पर्यावरण को बचाएं, कोरोना को सांसें न दें।

वायु और ध्वनि प्रदूषण का प्रसार करते हैं पटाखे

रेस्पिरेटी डिजीज के विशेषज्ञ डा. नवीन पांधी का कहना है कि पटाखों में कापर, मैग्नेशियम, सोडियम, कैडियम, जिंक, नाइट्रेट और नाइट्राइट जैसे खतरनाक रसायनों का प्रयोग किया जाता है। वायु प्रदूषण तो होता ही है, ध्वनि प्रदूषण भी घुलता है। अधिकांश पटाखों में 125 डेसीबल से ज्यादा आवाज होती है। इससे इंसान कुछ पल के लिए बहरा हो सकता है। पटाखों की चिंगारी से लोग झुलसते हैं। सांस, त्वचा रोग व हार्ट अटैक का शिकार हो जाते हैं। आगजनी की घटनाएं तो अनगिनत होती हैं।

ग्रीन पटाखों से पर्यावरण बचेगा

सुखद खबर यह है कि इस बार गुरुनगरी के पटाखा कारोबारी ग्रीन पटाखों की बिक्री को तरजीह दे रहे हैं। ये पटाखे कुछ महंगे जरूर हैं, लेकिन इससे पर्यावरण को ज्यादा क्षति नहीं पहुचंती। इन पटाखों के फूटने से इसमें से पानी की बूंदें निकलती हैं, जो हानिकारक तत्वों को अपने भीतर ही समेट लेती हैं। न्यू अमृतसर में पटाखा स्टाल लगाए गए हैं। इनमें ज्यादातर कारोबारी ग्रीन पटाखे ही बेच रहे हैं।

जागरण की अपील... दीप जलाएं, पर्यावरण नहीं

इस दीपावली खतरनाक पटाखे न चलाएं। ग्रीन पटाखें ही चलाएं और दीप जलाकर खुशियां मनाएं। कोरोना काल में कोरोना संक्रमित मरीजों का उत्साहवर्धन करने के लिए जिस प्रकार घर के चौबारे पर खड़े होकर थालियां बजाईं, दीपावली पर भी ऐसा ही करें। याद रखिए, वातावरण शुद्ध रहेगा, तो ही इंसान का अस्तित्व बचेगा।


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