शराब व सिगरेट की लत से ज्यादा खतरनाक है सोशल मीडिया एडीक्शन
अमृतसर तकनीक के इस युग में अपनी बात कहने और सुनाने का सशक्त माध्यम बन चुका है सोशल मीडिया।
जागरण संवाददाता, अमृतसर
तकनीक के इस युग में अपनी बात कहने और सुनाने का सशक्त माध्यम बन चुका है सोशल मीडिया। सोशल मीडिया जितना रचिकर और लाभकारी है, उससे कहीं ज्यादा इसके नकारात्मक प्रभाव भी दिख रहे हैं। सोशल मीडिया की लत शराब और धूम्रपान से भी ज्यादा खतरनाक है। यह तथ्य अमृतसर के मनोचिकित्सक डॉ. हरजोत ¨सह मक्कड़ ने एक अध्ययन के जुटाए हैं। वीरवार को पत्रकारों से बातचीत करते हए डॉ. मक्कड़ ने कहा कि इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि सोशल मीडिया के ज्यादा प्रयोग से तनाव और डिप्रेशन बढ़ता है। यही नहीं इससे नींद भी प्रभावित होती है। कई बार इंसान को अपनी छवि को लेकर भी शंका पैदा हो जाती है। खासकर युवा जो हर बात को बड़ी कैच करते हैं, उनमें तनाव का स्तर बढ़ने लगता है।
डॉ. मक्कड़ के अनुसार सोशल मीडिया की वजह से युवा वर्तमान में रहना छोड़ देते हैं। सत्तर प्रतिशत युवा ऐसे हैं जो एक पल के लिए भी मोबाइल को खुद से दूर नहीं होने देते। दिन रात उन्हें मोबाइल के साथ मशगूल रहना पसंद है। उनके लिए यह एक लत बन जाती है, जिसे छोड़ना उनके वश में नहीं रहता। जो युवा अथवा टीनेजर अपना ज्यादा समय सोशल मीडिया का उपयोग करने लगा रहे हैं उनमें एडीएचडी (एटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिस्ऑर्डर) नामक मानसिक विकार का खतरा अधिक दिखाई दिया। सोशल मीडिया के साथ-साथ ही मोबाइल फोन या अन्य डिजिटल उपकरण इस्तेमाल करना भी किशोरों के लिए बेहद ही गंभीर हो सकता है। कई बार स्कूली बच्चे अपने दैनिक कार्यों और अपनी पढ़ाई पर पूरी तरह से ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं। यह एक प्रकार का मानसिक विकार है, जिसे एडीएचडी कहा जाता है। एडीएचडी एक मानसिक समस्या है, जिसमें बच्चे किसी विषय या वस्तु पर ध्यान लगाने में परेशानी महसूस करते है। उनका ध्यान बार-बार भटकने लगता है।
जो किशोर मोबाइल या डिजिटल डिवाइस का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं उनमें एडीएचडी की संभावना अधिक देखने को मिलती है। सोशल मीडिया पर पोस्ट करना, मैसेज भेजना, अपलोड करना आदि उन्हें तनाव का शिकार बनाता है। असल में तनाव की एक मुख्य वजह यह भी है कि कई बार अपलोड की गई पोस्ट को लाइक या कमेंट नहीं मिलते। सोशल मीडिया एडिक्शन से बचने के लिए यह जरूरी है कि जागरूकता के जरिए सोशल मीडिया से संतुलित संबंध बनाया जाए। बहुत जरूरी होने पर ही सोशल मीडिया का प्रयोग करें, वरना यह तो एक ऐसा समुंदर है जिसकी कोई गहराई नहीं। युवा इसमें फंसता चला जाता है और फिर बाहर नहीं निकल पाता।