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दस साल से पराली को खेत में जोत कर सतनाम सिंह पा रहे फसल का अधिक झाड़

। जिला प्रशासन की ओर से साडा पिड साडी जिम्मेदारी अभियान के तहत पराली को आग न लगाने को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 01:08 AM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 05:11 AM (IST)
दस साल से पराली को खेत में जोत कर सतनाम सिंह पा रहे फसल का अधिक झाड़
दस साल से पराली को खेत में जोत कर सतनाम सिंह पा रहे फसल का अधिक झाड़

जागरण संवाददाता, अमृतसर

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जिला प्रशासन की ओर से 'साडा पिड, साडी जिम्मेदारी' अभियान के तहत पराली को आग न लगाने को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है।

वहीं, तहसील अजनाला के गांव राजिया के रहने वाले किसान सतनाम सिंह दस साल से धान की पराली को खेत में ही जोतते आ रहे हैं और इससे वह फसल का अच्छा झाड़ भी प्राप्त कर रहे है। सतनाम सिंह अन्य किसानों को भी पराली जलाने के बजाय उसे खेत में जोतने की सलाह दे रहे हैं। 18 एकड़ भूमि पर कृषि करने वाले सतनाम सिंह कहते हैं कि जबसे उन्होंने पराली को खेत में मिलाने शुरू किया है, फसल के उत्पादन में डेढ़ गुणा वृद्धि हुई है। सरकार की ओर से दी गई हिदायतों का वह पूरी तरह पालन करते हुए कृषि कर आ रहे हैं। इसके सार्थक परिणाम भी सामने आए हैं।

उन्होंने कहा कि आने वाली पीढि़यों को स्वच्छ पर्यावरण देने के लिए हमें पराली को आग लगाना बंद करना होगा। दस साल में उन्होंने धान की पराली और गेहूं की नाड़ को एक बार भी आग नहीं लगाई। इससे अंदरूनी खुशी मिलती है। पराली को खेत में ही जोत कर खेती करने का एक और फायदा भी हुआ है, पहले जहां ज्यादा खाद इस्तेमाल होती है, अब इसकी मात्रा आधी रह गई है। जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ गई है। वहीं खेत में पराली को आग न लगाने से मित्र कीट भी बचे रहते हैं और फसल को बीमारियां भी कम लगती हैं। वह नई फसल से पहले हैपी सीडर और एमबी पलो का उपयोग करते आ रहे हैं। सभी किसानों को चाहिए कि धान की पराली और गेहूं की नाड़ को आग लगाना छोड़ दें और पर्यावरण के संरक्षण में भागीदार बनें।


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