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शिअद में बढ़ी रार, ब्रह्मपुरा बोले- सुखबीर प्रधान पद छोड़ दें तो फिर मजबूत होगी पार्टी

रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने कहा कि अगर सुखबीर अध्यक्ष पद छोड़ दें तो अकाली दल का भला हो सकता है। अकाली दल एक बार फिर मजबूत हो सकता है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 29 Oct 2018 02:36 PM (IST)Updated: Mon, 29 Oct 2018 02:36 PM (IST)
शिअद में बढ़ी रार, ब्रह्मपुरा बोले- सुखबीर प्रधान पद छोड़ दें तो फिर मजबूत होगी पार्टी

जेएनएन, अमृतसर। शिरोमणि अकाली दल की कलह थमने की बजाए बढ़ती जा रही है। इस कलह से परेशान होकर पार्टी के प्रधान पद से इस्‍तीफा देने के बयान पर सुखबीर सिंह बादल फंस गए हैं। सुखबीर ने टकसाली नेताओं के विरोध के बाद अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने का बयान देकर फंस गए हैं। पार्टी के अंदर बढ़ रह राजनीतिक संकट को लेकर पार्टी की कोर कमेटी की बैठक आज चंडीगढ़ में बुलाई गई है। उधर, सुखबीर के बयान का स्वागत करते हुए टकसाली अकाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने कहा कि अगर सुखबीर अध्यक्ष पद छोड़ दें तो अकाली दल का भला हो सकता है। अकाली दल एक बार फिर मजबूत हो सकता है। टकसाली नेता पार्टी को संभालने और दोबारा मजबूत बनाने के लिए पूरी तरह सक्षम है।

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उन्होंने कहा कि सुखबीर बादल कभी पार्टी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र नहीं देंगे। ब्रह्मपुरा ने कहा कि जब विधान सभा चुनाव में अकाली दल का बड़ा नुकसान हुआ था तो उस वक्त के शिअद नेताओं ने सुखबीर बादल को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की थी। उस वक्त भी सुखबीर ने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र नहीं दिया था। अब तो हालात कुछ और हैं। सुखबीर कभी अपने पद से त्यागपत्र नहीं देंगे। अगर सुखबीर पद से त्यागपत्र दे देंगे तो वह भी दिन रात एक करके अकाली दल को मजबूत बनाने के लिए मैदान में आ जाएंगे।

सुखबीर प्रधान बनने के लिए पंथक सिद्धांतों पर पूरा नहीं उतरते : सेखवां

अकाली दल के टकसाली नेता सेवा सिंह सेखवां ने भी सुखबीर के बयान का स्वागत किया है। सेखवां ने कहा कि अगर सुखबीर पद से त्यागपत्र दे देते हैं तो इस से अकाली दल फिर मजबूत होगा। असल में सुखबीर बादल अकाली दल के अध्यक्ष पद के लिए पंथक सिद्धांतों पर ही पूरा नहीं उतरते।

उन्‍होंने कहा कि जो व्यक्ति पंथक सिद्धांतों वाला ही न हो वह अकाली दल जैसी पंथक पार्टी को सही नेतृत्व कैसे दे सकता है। अकाली दल का अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो गुरु मर्यादा के अनुसार चलता हो। इसका जीवन भी गुरसिख वाला हो। सुखबीर बादल और बिक्रम मजीठिया के नेतृत्व में अकाली दल दिन ब दिन कमजोर ही हुआ है। अकाली दल सिर्फ कुछ हाथों की कठपुतली बन कर रह गया है। पार्टी के अंदर लोकतंत्र खत्म हो गया है।


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