बौखलाए पाक ने साहित्य को भी सरहद में बांटा, भारत से बंद किया पुस्तकों का आदान-प्रदान
पाकिस्तान ने भारत से साहित्यिक सांंझ समाप्त कर ली है। पाकिस्तान का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब पूरा देश श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व की तैयारियों में जुटा है।
जेएनएन, अमृतसर। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद बौखलाए पाकिस्तान ने अब एक ऐसी हरकत की है, जो अकल्पनीय है। पाकिस्तान ने भारत से साहित्यिक सांंझ समाप्त कर ली है। पाकिस्तान का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब पूरा देश श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व की तैयारियों में जुटा है। पाक के इस फैसले ने दोनों देशों के साहित्यकारों के दर्द पर नमक छिड़कने का काम किया है।
पाकिस्तान से आने वाली पुस्तकें यूं तो पंजाब सहित देश के कई राज्यों में जाती थीं। ज्यादातर साहित्यिक पुस्तकें श्री हरिमंदिर साहिब और कादियां में जाती रही हैं। खास बात यह है कि हर साल 14 अगस्त को दोनों देशों के साहित्यकार सरहद पर शांति का दीप जलाकर साहित्यिक पुस्तकों का आदान-प्रदान करते रहे हैं।
1992 में शुरू हुआ था पुस्तकों का आदान-प्रदान
दरअसल, पाकिस्तान और भारत के बीच पुस्तकों का आदान-प्रदान 1992 में शुरू हुआ था। पाकिस्तान में शाहमुखी लिपि में साहित्य प्रकाशित होता है। इनमें सोहेल मैगजीन, मां बोली, पंज दरिया व सांझ इत्यादि साहित्य उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार भारत से चिराग, शबद, हुण व प्रवचन जैसी पुस्तकें पाकिस्तान भेजी जाती हैं। भारत में पाकिस्तान से आने वाली पुस्तकों को गुरमुखी में अनुवाद किया जाता है, जबकि पाकिस्तान में भारतीय पुस्तकों का शाहमुखी में अनुवाद होता है।
पाक साहित्यकार की वापस भेजीं प्रतियां
कश्मीर मुद्दे पर बौखलाए पाकिस्तान ने 22 अगस्त को कस्टम विभाग को निर्देश दिया था कि वाघा बॉर्डर से पुस्तकों का आदान-प्रदान बंद किया जाए। हाल ही में पाकिस्तानी साहित्यकार इहसान एच नदीम ने भारतीय पाठकों के लिए 70 प्रतियां भेजनी चाहीं, लेकिन पाकिस्तान डाक विभाग ने यह प्रतियां वापस भेज दीं। पाकिस्तान ने अपने साहित्यकारों को सूचित कर दिया है कि भारत के साथ पुस्तकों का आदान-प्रदान बंद कर दिया गया है।
दोनों देशों के साहित्यकारों में हुआ था मौखिक समझौता
साहित्यकार दीप दविंदर सिंह का कहना है कि तकरीबन दो दशक पूर्व भारत-पाकिस्तान के बीच शुरू हुआ पुस्तकों का आदान-प्रदान बंद होने से उन्हें गहरा आघात पहुंचा है। मुझे याद है कि 1992 में पंजाब में केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा ने चेतना मार्च निकाला था। अटारी सीमा पर इस मार्च की समापित हुई। पाकिस्तान के लेखक उस तरफ आए थे। तभी दोनों मुल्कों के साहित्यकारों के बीच यह मौखिक समझौता हुआ था कि हम अपना साहित्य आपको देंगे और आप हमें।
अब सवाल यह था कि पाकिस्तानी साहित्य जो शाहमुखी में है उसे भारत के साहित्यकार कैसे पढ़ें। इस समस्या का समाधान उस वक्त प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. जगतार सिंह, जतिंदर पाल सिंह जौली व पलविंदर सिंह ने किया था। उन्होंने पाकिस्तान से आने वाली पुस्तकों का गुरुमुखी में लिप्यंतरण किया। पंजाबी भाषा सीखने में प्रयुक्त होने वाला कायदा भी गुरुमुखी से शाहमुखी में अनुवाद किया गया। यह बेहद अफसोसनाक है कि पाकिस्तान ने साहित्य के सफर पर रोक लगा दी है।
समाचारों का होता है आदान-प्रदान, लेकिन पुस्तकों का नहीं
डाक विभाग के सीनियर सुपरिंटेंडेंट आफ पोस्ट मक्खन सिंह का कहना है कि पाकिस्तान से अटारी सीमा के माध्यम से साहित्यिक पुस्तकें दिल्ली पहुंचती थीं। इसके बाद देश से कई हिस्सों में वितरित की जाती थीं। अब पुस्तकें भेजना बंद कर दिया है। वहीं बीएसएफ के आला अधिकारी ने कहा कि रोजाना शाम को दोनों देशों के बीच समाचार पत्रों का आदान-प्रदान तो जारी है, मगर पाकिस्तान की ओर से साहित्यिक पुस्तकें नहीं आ रही हैं।नाटककार केवल धालीवाल का कहना है कि यह बहुत ही दुखद है।
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