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मेडिसिन डॉक्टर लौटा, मगर डायलिसिस सेंटर नहीं हुआ शुरू

अमृतसर केंद्र सरकार द्वारा डायलिसिस सेवा निशुल्क करने की घोषणा के बाद किडनी फैल्योर का शिकार मरीजों को यह आस बंधी थी कि अब आर्थिक तंगहाली उनके उपचार में आड़े नहीं आएगी।

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Sep 2018 08:40 PM (IST)Updated: Sat, 29 Sep 2018 08:40 PM (IST)
मेडिसिन डॉक्टर लौटा, मगर डायलिसिस सेंटर नहीं हुआ शुरू

नितिन धीमान, अमृतसर

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केंद्र सरकार द्वारा डायलिसिस सेवा निशुल्क करने की घोषणा के बाद किडनी फैल्योर का शिकार मरीजों को यह आस बंधी थी कि अब आर्थिक तंगहाली उनके उपचार में आड़े नहीं आएगी। वर्ष 2017 में सरकार ने देश के सभी सरकारी अस्पतालों में डायलिसिस सेवा निशुल्क कर दी। सरकार ने नियम बनाया था कि मरीजों को डायलिसिस किट भी अस्पताल में ही निशुल्क मिलेगी। इन तमाम घोषणाओं का शुरू-शुरू में तो पालन हुआ, पर बाद में सरकारी घोषणा सरकारी गति से रेंगने लगी। अमृतसर का सिविल अस्पताल इसका प्रत्यक्ष बड़ा उदाहरण है। यहां पिछले तीन महीनों से डायलिसिस सेवा बंद है। डायलिसिस यूनिट में अत्याधुनिक मशीनें हैं, प्रशिक्षित स्टाफ भी, पर एक सरकारी या यूं कहिए कागजी औपचारिकता पूरी न होने की वजह से यूनिट बंद है।

तीन माह पूर्व सिविल अस्पताल में कार्यरत मेडिसिन डॉक्टर म¨नदर ¨सह के स्थानांतरण के बाद मरीजों का दर्द बढ़ गया। मरीजों की कराह भरी पुकार सुनने के बाद अस्पताल प्रशासन ने एक अन्य मेडिसिन डॉक्टर को सरकारी मेडिकल कॉलेज में डायलिसिस का कामकाज सीखने भेजा, पर यह डॉक्टर दस दिन में ही लौट आया। डायलिसिस मशीन का प्रशिक्षण काल एक माह का था, लेकिन इस डॉक्टर के पास एमडी मेडिसिन की डिग्री नहीं थी, ऐसे में मेडिकल कॉलेज ने उसे सर्टिफिकेट प्रदान नहीं किया। सर्टिफिकेट के बगैर मेडिसिन डॉक्टर डायलिसिस यूनिट का प्रभार नहीं देख सकता। असल में मेडिसिन डॉक्टर का काम केवल इतना है कि वह मरीजों की फाइल पर हस्ताक्षर कर डायलिसिस करने की स्वीकृति स्टाफ को प्रदान करे। मेडिसिन डॉक्टर को सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए यूनिट संचालित करने का प्रशिक्षण लेना पड़ता है और सर्टिफिकेट भी। सरकारी नियम पड़ रहा मरीजों पर भारी

सिविल अस्पताल में कार्यरत डॉ. कुणाल मेडिसिन डॉक्टर हैं, लेकिन उनके पास एमडी मेडिसिन की डिग्री नहीं। असल में डायलिसिस यूनिट संचालित करने के लिए एमडी मेडिसिन की डिग्री अनिवार्य है। यह सरकारी नियम है और यही नियम किडनी फैल्योर का शिकार मरीजों का दर्द बढ़ा रहा है। मेडिकल कॉलेज स्थित डायलिसिस यूनिट में प्रशिक्षण प्राप्त कर लौटे डॉ. कुणाल को सर्टिफिकेट नहीं दिया गया। मेडिकल कॉलेज स्थित डायलिसिस यूनिट के प्रोफेसर ने साफ किया कि डॉ. कुणाल के पास एमडी की डिग्री नहीं है और इसके बगैर हम सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकते। दूसरी तरफ डॉ. कुणाल ने एमडी की परीक्षा दी थी, लेकिन एक सब्जेक्ट में अनुत्तीर्ण होने की वजह से अब उन्हें पूरक परीक्षा देनी पड़ेगी। यह परीक्षा नवंबर माह में होगी। यदि सरकार नवंबर माह तक एमडी मेडिसिन डॉक्टर की व्यवस्था नहीं कर पाती तो यह मरीजों के लिए हितकारी नहीं होगा। मानांवाला, अजनाला व बाबा बकाला से मंगवा रहे हैं एमडी मेडिसिन

सिविल अस्पताल के सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉ. रा¨जदर अरोड़ा का कहना है कि यह बहुत ही विकट समस्या है कि हम सब कुछ होते हुए भी किडनी पेशेंट्स का डायलिसिस नहीं करवा पा रहे। मैंने उच्चाधिकारियों से बात की है कि सिविल अस्पताल अजनाला, मानांवाला व बाबा बकाला में एमडी मेडिसिन डॉक्टर हैं। इन तीनों डॉक्टरों को सप्ताह में दो-दो दिन भी सिविल अस्पताल अमृतसर में तैनात किया जाए तो डायलिसिस यूनिट पूर्व की भांति चलाया जा सकता है। उम्मीद है कि जल्द ही इस पर अमल होगा। दो की जान गई, 90 मरीजों की ¨जदगी खतरे में

डायलिसिस यूनिट बंद रहने से पिछले दो महीनों में दो लोगों की मौत हो गई है। मृतकों में एक 65 वर्षीय वृद्ध व एक 14 वर्षीय किशोर शामिल हैं। दोनों की किडनियां फेल थीं और सिविल अस्पताल से डायलिसिस करवा रहे थे। यूनिट बंद होने के बाद से ही इनका ट्रीटमेंट नहीं हो सका। आर्थिक रूप से कमजोर थे, इसलिए निजी डायलिसिस सेंटरों से ट्रीटमेंट नहीं करवा पाए। इन दो मौतों के बाद यह स्पष्ट है कि बाकी 90 मरीजों की ¨जदगी भी खतरे में हैं।

साधना का तप भी अधूरा

बटाला रोड निवासी साधना का तप अधूरा रह गया है। उसका पति किडनी रोग से जूझ रहे हैं। साधना उसका डायलिसिस करवाकर उसकी सांसें सहेजने की कोशिश में जुटी थी। वह बताती हैं कि घर में कमाने वाला कोई नहीं। लोग से उधार मांग कर पति का डायलिसिस करवा रही हूं। अब मैं थक चुकी हूं। दो बार सिविल सर्जन से मिलकर अपनी व्यथा सुना चुके हैं। सरकार हमारी पुकार सुने और सिविल अस्पताल का डायलिसिस केंद्र शुरू करे।


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