पौधारोपण से रखें पर्यावरण का ख्याल, बनें मालामाल
पर्यावरण को बचाने के लिए अब लोगों में जागरूकता फैल रही है। पौधारोपण के प्रति लोगों में झुकाव बढ़ रहा है। पेड़ जहां हमको ऑक्सीजन के साथ घनी छाया देते है वहीं कमाई का साधन बनकर मालामाल भी करते है। ि
जागरण टीम, अमृतसर, तरनतारन : पर्यावरण को बचाने के लिए अब लोगों में जागरूकता फैल रही है। पौधारोपण के प्रति लोगों में झुकाव बढ़ रहा है। पेड़ जहां हमको ऑक्सीजन के साथ घनी छाया देते है वहीं कमाई का साधन बनकर मालामाल भी करते है। जिले के किसानों में परंपरागत खेती के साथ-साथ नई तकनीक से खेती करने की होड़ लगी हुई है। कुछ किसान खेती से कमाई करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का काम भी कर रहे हैं। खेती के साथ आम, जामुन, शहतूत के पेड़ लगाकर हरियाली व पर्यावरण प्रेमी होने का परिचय भी दे रहे हैं। ऐसा करके यह किसान प्रतिवर्ष लाखों की कमाई कर रहे हैं और पर्यावरण में सुधार करने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।
डिवीजनल जंगलात अधिकारी सुरजीत सिंह सहोता ने बताया कि किसान अपनी खेती वाली जमीन पर खेती के साथ-साथ एग्रो फोरेस्ट्री के तहत गेहूं और धान के पौधे लगा सकते हैं। इनमें शीशम, बेहड़ा, अर्जुन, आंवला, अमल्ताश, सीरस, कीकर के अलावा पापुलर और सफेदा शामिल हैं। इनसे किसान अपनी आय में काफी वृद्धि कर सकते हैं।
हरियाणाली के साथ मुनाफे का साधन हैं पौधे : बलविंदर
कत्थूनंगल के किसान बलविदर सिंह ने अपनी आठ एकड़ जमीन को हरियाली की चादर ओढ़ा रखी है। इस किसान ने 10 वर्षो की मेहनत के बाद इस जमीन पर 200 आम व 100, जामुन तथा इतने ही शहतूत के पेड़ लगाए हैं। इससे उसकी जमीन पर काफी हरियाली तो हो ही गई है। साथ ही अब वे इससे हजारों रुपये का मुनाफा भी कमा रहा है।
बंजर जमीन पर पौधारोपण से प्रतिवर्ष लाखों की कमाई
तीर्थपुर गांव के भूपिदर सिंह किसान ने अपनी चार एकड़ जमीन पर आंवला, नींबू और जामुन के पेड़ भी लगा रखे हैं। किसान इसी जमीन में पेड़ों के बीच गेहूं, आलू, प्याज, घिया, हलवा कद्दू, लहसुन व धनिया के साथ अन्य फसलों से प्रतिवर्ष पांच लाख से अधिक की कमाई ले रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ अमृतसर के जगजीत सिंह ने अपनी चार एकड़ लैंड में आम के करीब 150 पौधे लगा रखे हैं। इससे प्रति वर्ष करीब तीन लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं। किसान इस तरह से अपने खेतों में अलग-अलग तरह के प्रयास कर अपनी बंजर जमीन की हरियाली की चादर ओढ़ाकर उससे प्रतिवर्ष लाखों की कमाई कर पा रहे हैं।
तरनतारन में 50 तरह के लगाए जा रहे पौधे
बागबानी विभाग के सेवानिवृत्ति अधिकारी हरदयाल सिंह घरियाला की मानें तो तरनतारन जिले में करीब पचास प्रकार के पौधे लगाए जा रहे है। इनमें से अधिकांश पौधे वो है, जो इमारती लकड़ी के अलावा तरह-तरह के फल देने के साथ ऑक्सीजन भी प्रदान करते है। कुछ समय से पहाड़ी किक्कर, मधुकामनी, कनेर, चकरेसिया के पौधे भी आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलते है। एडवोकेट नवजोत कौर चब्बा कहती है कि उन्होंने अपने घर में चंदन के पांच पौधे लगा रखे है। ये पौधे अभी चौथे वर्ष में है। इसके अलावा घर में लगाए गए शहतूत के पौधे अब पेड़ का रूप धारण कर रहे है, जो हमें खाने के लिए फल के रूप में काली और सफेद गोहलें देते है।
नाख के बागों का प्रचलन ज्यादा
तरनतारन में नाख के 20 के करीब दो हजार एकड़ में विभिन्न स्थानों पर बाग है। पट्टी क्षेत्र में पुराने नाख के बाग कोलकाता, दिल्ली और मुंबई में भी प्रसिद्ध है। बाग मालिक राजेश शर्मा मिंटा की मानें तो दो एकड़ से लेकर बीस एकड़ के रकबे में नाख के बाग है। दो वर्ष के पौधे को नाख के बाग में लगाया जाता है, जो छह वर्ष पश्चात् फल देता है। इमारती लकड़ी के तौर पर टाहली, किक्कर, सागवान, अमलतास आदि भी दस वर्ष के दौरान कमाई का साधन बन जाती है। अमरूद के अलावा देसी बेर, लसूड़ा, बेलपत्र, देसी किक्कर, शेहतूत के पौधे भी तरनतारन में आम तौर पर लगाए जा रहे है।