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जलियांवाला बाग नरसंहार- क्रूरता के सौ साल, वार्तालाप में बताए अनछुए पहलू

अमृतसर 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार क्रूरता का काला अध्याय था। क्रांति की मशाल लेकर पहुचे क्रांतिवीरों पर क्रूर अंग्रेज प्रशासक जनरल डायर ने फायर करने का आदेश देकर अपनी मानसिक कुंठा शांत की थी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Jan 2019 01:24 AM (IST)Updated: Sun, 20 Jan 2019 01:24 AM (IST)
जलियांवाला बाग नरसंहार- क्रूरता के सौ साल, वार्तालाप में बताए अनछुए पहलू

— जलियांवाला बाग : क्रूरता के सौ साल पर दैनिक जागरण ने करवाया 'वार्तालाप' कार्यक्रम

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— दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक अमित शर्मा, महाप्रबंधक नीरज शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी व वरिष्ठ लेखिका किश्वर देसाई ने रखे विचार

फोटो — 20 से 45

जागरण संवाददाता, अमृतसर

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार क्रूरता का काला अध्याय था। क्रांति की मशाल लेकर पहुचे क्रांतिवीरों पर क्रूर अंग्रेज प्रशासक जनरल डायर ने फायर करने का आदेश देकर अपनी मानसिक कुंठा शांत की थी। यह एक ऐसी घटना थी जिसने देश में बच्चे, युवाओं, बुजुर्गों का हृदय उद्वेलित कर दिया। उनके दिलों में क्रांति की मशाल प्रज्जवलित कर दी। जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल को हुआ नरसंहार ब्रिटिश हुकूमत की सुनियोजित साजिश थी। इस ऐतिहासिक तारीख से पहले और बाद में अमृतसर में बहुत कुछ हुआ, जिनसे अधिकतर लोग अपरिचित हैं। विश्व के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले'दैनिक जागरण'समाचार पत्र ने जलियांवाला बाग की घटना और स्वतंत्रता संग्राम को धार देने वाली जो घटनाएं अमृतसर में हुईं, उससे आम जनमानस को अवगत करवाने के लिए शनिवार को जलियांवाला बाग में'क्रूरता के सौ साल'विषय पर 'वार्तालाप- दृश्य, दर्शन, दृष्टिकोण' कार्यक्रम का आयोजन किया। प्रसिद्ध लेखक किश्वर देसाई व वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने जलियांवाला बाग कांड से पहले और बाद में हुई घटनाओं का उल्लेख किया। कार्यक्रम में दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक अमित शर्मा, महाप्रबंधक नीरज शर्मा, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला सहित शहर के प्रमुख नागरिक सम्मिलित हुए।

जलियांवाला बाग नरसंहार क्यों हुआ? ब्रिटिश हुकूमत ने जनरल डायर को ही इस काम के लिए क्यों चुना? क्यों इस नरसंहार से पहले महात्मा गांधी, सैफुद्दीन व सत्यपाल जैसे महान राष्ट्रभक्तों को जेल में बंद कर दिया गया? ऐसा क्या हुआ था जो अंग्रेज बौखला गए और क्यों 13 अप्रैल को एक साथ हजारों निहत्थे लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया गया? इन सभी तथ्यों को प्रमाणिकता से अपनी 'जलियांवाला बाग 1919- क्रूरता के सौ साल' में वर्णित करने वाली लेखिका किश्वर देसाई ने 'वार्तालाप' के मंच पर कहा कि ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में रॉलेट एक्ट लागू करने की तैयारी कर ली थी। इस एक्ट के लागू होने से अपील-दलील व वकील के बिना ही लोगों को जेल में भेजने का प्रावधान था। रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी के आह्वान पर देश भर में सत्याग्रह आंदोलन की रूपरेखा तय हो चुकी थी। लोग अपने-अपने क्षेत्र में सत्याग्रह के लिए तैयार थे। अमृतसर में जलियांवाला बाग में आंदोलन करने का फैसला हुआ था। 6 अप्रैल को दिल्ली, अमृतसर व अहमदाबाद में आंदोलन शुरू भी हो चुका था। अमृतसर में हुए प्रदर्शन के बाद डीसी अर¨वद ¨हदू-मूसलमानों व सिखों की एकजुटता देखकर घबरा गया। उसे डर था कि 1857 की तरह अमृतसर में कहीं क्रांति की ज्वाला न धधक उठे।

9 अप्रैल को अमृतसर में रामनवमी की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इसमें भी सभी धर्मों के लोग सम्मिलित हुए। डीसी अर¨वद तब भी घबराया था। उस समय पंजाब का गवर्नर जनरल माइकल ओडवायर था। उसने एक ऑर्डर जारी किया, जिसके तहत महात्मा गांधी को अरेस्ट कर लिया गया। वहीं सैफुदीन किचलू व सत्यापाल भी गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि ये नेता इस आंदोलन का हिस्सा बनें, क्योंकि इनके नेतृत्व में ¨हदू-मूसलमान व सिख एकजुट थे। देशभक्त अपने नेताओं को रिहा करवाने के लिए डीसी अर¨वद के बंगले की ओर जा रहे थे, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें रास्ते में रोक लिया। इन पर गोलियों की बौछार की गई। काफी लोग मारे गए। इसके बाद गुस्साए लोगों ने पांच ब्रिटिश लोगों की हत्या कर दी। 11 अप्रैल को जनरल ओडवायर के ऑर्डर पर अमृतसर में आर्मी बुला ली गई। ओडवायर चाहता था कि पांच ब्रिटिशियन की मौत का बदला भारतीयों की मौत से लिया जाए। 11 अप्रैल की रात जनरल डायर अमृतसर आया। वह इतना क्रूर प्रशासक था कि उसने अमृतसर के खूह कौड़ियां की तंग गली में क्रॉ¨लग ऑर्डर जारी किया था। असल में इस गली में एक ब्रिटिश महिला को लोगों ने मारने की कोशिश की थी। अस्पताल में दाखिल इस महिला से जनरल डायर मिला तो उसकी हालत देखकर क्रोध से भर उठा। उसने गली में क्रॉ¨लग ऑर्डर यानी की रेंग कर गली से गुजरने का आदेश जारी कर दिया। जो इस आदेश का पालन नहीं करता, उसे कौड़ों से पीटा जाता। इस गली में औरतें घर में कैद होकर रह गईं। एक बच्ची रोती थी कि अंग्रेज मुझे भी मार देंगे। अंग्रेज पेट्रो¨लग करते समय लोगों के कबूतर लेकर उन्हें तंदूर पर पकाकर खाते थे। यह बच्ची देखती और डर जाती। एक दिन इस बच्ची ने डर और दहशत की वजह से प्राण त्याग दिए।

13 अप्रैल को जनरल डायर ने सुनियोजित ढंग से जलियांवाला बाग में पहुंचे लोगों पर गोलियां दागीं। लोगों को बताया गया कि यह गोलियां 'फोकी' हैं, आपको कुछ नहीं होगा। लोगों को गुमराह करके जनरल डायर ने खूनी खेल खेला। लाशें के ढेर बनते गए। लोग दबते गए। किश्वर देसाई ने कहा कि ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जिनके विषय में आम जनमानस को जानकारी नहीं। इस पुस्तक में हर उस घटना का उल्लेख किया गया है जो 13 अप्रैल से पहले घटी। जलियांवाला बाग एक ऐसी पावन धरती है, जहां वीरों का रक्त बहा। यह पिकनिक स्पॉट नहीं। इस पुस्तक की एक प्रति जिला लाइब्रेरी में रखी जाएगी।

वरिष्ठ पत्रकार हषर्वधन त्रिपाठी ने कहा कि अमृतसर में अप्रैल 1919 के दो सप्ताह में बहुत कुछ हुआ, जिसका संपूर्ण उल्लेख कहीं नहीं मिलता।? ब्रिटिश हुकूमत दहशत भरा संदेश देना चाहती थी। सत्याग्रह आंदोलन सिर्फ रॉलेट एक्ट के विरोध में था। लोग अंग्रेजों को भगाना नहीं चाहते थे। सिर्फ चाहते थे कि उनका शोषण व उत्पीड़न बंद किया जाए। जलियांवाला बाग कांड के बाद जब ब्रिटिश हुकूमत की कमेटी बैठी तो माइकल ओडवायर ने कहा था जो पांच अंग्रेज मारे गए, उनकी मौत का बदला लेने के लिए जलियांवाला बाग नरसंहार को अंजाम दिया गया। किश्वर देसाई की पुस्तक दस्तावेजों पर आधारित है। यह कहानी नहीं एक साझा दर्द है। ¨हदुस्तान और पाकिस्तान का दर्द है। आज की युवा पीढ़ी इस पवित्र भूमि का इतिहास समझ लेगी तो उसे मालूम होगा कि हमें आजादी कैसे मिली। जलियांवाला बाग में लोग आते हैं। फोटो ¨खचवाते हैं और चले जाते हैं। लोग इसकी महत्ता समझें। इस धरती पर आते ही हमारा सिर झुक जाना चाहिए। स्वतंत्रता संग्राम में भारत माता की जय, वंदेमातरम् की गूंज गूंजीं, लेकिन आज इन पावन वाक्यों पर राजनीति होती है। हर्षवर्धन त्रिपाठी ने दैनिक जागरण का आभार किया और कहा कि यह 'वार्तालाप' देश की भावी पीढ़ी को इतिहास समझाने में सहायी होगा।

सामाजिक सरोकारों का प्रहरी है जागरण : अमित शर्मा

दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक अमित शर्मा ने कहा कि दैनिक जागरण सामाजिक सरोकारों का प्रहरी है। इन्हीं सरोकारों से जुड़ा हम विषय है वार्तालाप। वार्तालाप की शुरूआत डेढ़ वर्ष पूर्व हुई थी। 2018 में लुधियाना में भी वार्तालाप कार्यक्रम करवाया गया। जलियांवाला बाग एक ऐतिहासिक स्थल है। यहां विश्वभर से लोग पहुंचते हैं। जलियांवाला बाग पर लिखी पुस्तक निश्चित ही नई पीढ़ी को अपने इतिहास से अवगत करवाएगी।

प्रेरणा को नमन : नीरज शर्मा

दैनिक जागरण के महाप्रबंधक नीरज शर्मा ने कहा कि जलियांवाला बाग- क्रूरता के सौ साल का उल्लेख करती यह पुस्तक स्वतंत्रता संग्राम की उस घटना की याद दिलाती है जिसमें अपने अपनों ने देश के लिए खून अर्पित किया। दैनिक जागरण की शुरूआत भी 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हुई थी। इस पुस्तक को लिखने वाली किश्वर देसाई की प्रेरणा को हम नमन करते हैं। वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी का भी आभार जिन्होंने इस घटना का सजीव वर्णन किया।

क्रांतिवीरों की शौर्यगाथा से परिचित हो युवा पीढ़ी : लक्ष्मीकांता चावला

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने कहा कि हमारी मानसिकता अभी भी गुलामी की है। आज जरूरत है जलियांवाला बाग के शहीदों की वीरगाथा को जानने और समझने की। देश का बच्चा-बच्चा जब क्रांतिवीरों की शौर्यगाथा से परिचित होगा तो कोई ताकत भारत की ओर आंख उठाकर नहीं देख पाएगी।

दैनिक जागरण वार्तालाप लेखकों और पाठकों के संवाद का ऐसा मंच है जहां बातचीत की भाषा ¨हदी होती है, क्योंकि ¨हदी हैं हम, ¨हदुस्तान हमारा। इस कार्यक्रम में जीएसटी विभाग से अनिल खन्ना, किरण खन्ना, विश्व ¨हदू परिषद से राकेश मदान, सर्बजीत शैंटी, राजकुमार जूडो, राजन मेहरा, रमन कुमार, अर¨वद भट्टी, डॉ. राकेश शर्मा, सुमित प्रधान, प्रभजोत कौर, जलियांवाला बाग शहीद परिवार समिति के प्रधान महेश बहल, अशोक शर्मा, अर¨वदर भट्टी, दलजीत सोना, बबिता जसवाल, किला गो¨बदगढ़ से सुनील जाखड़, टोनी कलेर सहित विभिन्न कॉलेजों के विद्यार्थी उपस्थित थे।


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