हादसा या नरसंहार? मृत्यु भी रोई जार—जार
अमृतसर : जौड़ा फाटक नरसंहार का 'जनरल डायर' कौन? यह सवाल आज भी कल की तरह कायम है।
नितिन धीमान, अमृतसर
जौड़ा फाटक नरसंहार का 'जनरल डायर' कौन? यह सवाल आज भी कल की तरह कायम है। रेल प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है, वहीं पंजाब सरकार जांच के बाद मामले में कार्रवाई की बात कर रही है। जलते हुए रावण को देख रहे कई घरों के चिराग बुझ गए हैं। राजनेता और प्रशासकीय अधिकारी, घटना का कसूरवार कौन? यह पूछने पर बगलें झांकने लगते हैं। मासूम बच्चों की लाशों को सीने से लगाकर फूट फूट कर रो रहे लोग उस घड़ी को कोस रहे थे जब रावण का दहन देखने जोड़ा फाटक गए थे। घटना में कुल 59 लोगों की मौत की पुष्टि प्रशासन कर रहा है, जबकि लोगों का मानना है कि मरने वालों की संख्या 100 से अधिक हो सकती है। हैरानीजनक तथ्य यह है कि जिला प्रशासन ने दशहरा आयोजन से पहले न तो पड़ताल की और न ही सुरक्षा के बंदोबस्त। प्रशासन पहले सोया रहा, अब रात-रात जागकर मृतकों के परिवारों से शोक व घायलों क जिस्म पर संवेदना का मरहम लगाने का अर्थहीन प्रयास कर रहा है। घटना में मारे गए लोगों के अंग भंग हो चुके हैं। मृतकों के शवों की क्षत विक्षत तस्वीरें विचलित करने वाली हैं, इसलिए इन्हें दिखाना संभव नहीं। जरा सोचिए जिन मृतकों की तस्वीरों को हम और आप देख नहीं सकते, उनके परिजनों के दिल पर क्या बीतती होगी।
कटा हुआ सिर ट्रैक पर, धड़ अस्पताल में
बदकिस्मत पिता.. दशहरा मेले में 18 वर्षीय मनीष उर्फ आशु भी पहुंचा था। घटना के बाद परिवार वालों उसे तलाशने के लिए रेलवे ट्रैक पर पहुंचे। क्षत-विक्षत लाशों के बीच मनीष नहीं मिला। मनीष के पिता विपिन कुमार ने बताया कि हमने सिविल अस्पताल, गुरुनानक देव अस्पताल व निजी अस्पतालों में भी गए, पर उसके बारे में कुछ पता नहीं चल सका। इसके बाद मनीष की फोटो सोशल मीडिया पर भेजी गई। शनिवार सुबह पता चला कि रेलवे ट्रैक से एक युवक का कटा हुआ सिर बरामद हुआ है। यह सिर मनीष का था। विपिन कुमार ने बताया कि मनीष का धड़ गुरुनानक देव अस्पताल में था और सिर रेलवे ट्रैक पर। छोटे भाई रिशु ने बताया कि मनीष 12वीं कक्षा का छात्र था। शाम पांच बजे दशहरा देखने गया और इसके बाद लौटा नहीं।
मां अभी भी कर रही है बेटे के आने का इंतजार
जूते बनाकर परिवार का पेट पालने वाले विपिन कुमार के लिए बेटे की मौत का गम बहुत बड़ा है। वह अस्पताल में फूट-फूट कर रोए। साथ ही प्रशासन व सरकार को इस घटना के लिए कसूरवार बताया। कहा, मेरा सब कुछ लुट गया। पत्नी रेखा को अभी तक नहीं बताया कि उसके जिगर का टुकड़ा नहीं रहा। वह तो अभी भी मनीष के आने का इंतजार कर रही है।
संदीप के नन्हें फूल मुरझाए
अभागी मां . जोड़ा फाटक निवासी संदीप का आंचल सूना हो गया है। दुर्घटना में संदीप ने दो मासूम बच्चों के साथ-साथ अपने पिता को भी खो दिया। सिविल अस्पताल की ट्रॉमा वार्ड में एडमिट संदीप कल से ही कोमा में है। उसके पति जितेंद्र ¨सह ने बताया कि पत्नी संदीप और दो बच्चे तीन वर्षीय नीरज व छह वर्षीय सोनिया तथा सास मनजीत कौर व ससुर अभय दशहरा देखने गए थे। सभी रेलवे ट्रैक पर खड़े थे। अचानक रेल आई और लोग कटने लगे। संदीप ने दोनों बच्चों को धक्का मारकर पटरियां से दूर कर दिया और खुद भी कूद गई। इस बदकिस्मत मां के सिर पर गहरी चोट लगी और वह मौके पर ही बेहोश हो गई, जबकि दोनों बच्चे सोनिया तथा नीरज भीड़ के पैरों तले दबकर मौत की आगोश में समा गए। जितेंद्र ¨सह के अनुसार जिगर के टुकड़ों को सिविल अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने जांच के बाद ही उन्हें मृत करार कर दिया। आज अपने हाथों से बच्चों का अंतिम संस्कार करके आया हूं। घटना के वक्त संदीप के पिता अभय ट्रेन से कट गए और उनकी मौके पर मौत हो गई, जबकि संदीप की मां मनजीत कौर भगदड़ में गिरकर जख्मी हो गई। सूर्यास्त के बाद जला था रावण
पौराणिक मान्यता के अनुसार रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद के पुतलों को सूर्यास्त से पहने जलाना होता है, लेकिन जोड़ा फाटक में दशहरा कमेटी ने सूर्यास्त के बाद ही पुतले जलाए। यह देरी इसलिए हुई क्योंकि मुख्य अतिथि डॉ. नवजोत कौर सिद्धू को आने में विलम्ब हुआ था।
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खास बाक्स
रेलवे ट्रैक के आसपास थे पांच हजार लोग
शाम को जब नवजोत कौर सिद्धू आयोजन स्थल के मंच पर पहुंचीं, तो आयोजक मिट्ठू मदान ने उन्हें बताया था कि मेला स्थल पर हजारों लोग पहुंचे हैं। तकरीबन पांच हजार लोग तो रेलवे ट्रैक व इसके आसपास ही खड़े हैं। इसी दौरान मंच पर माइक पकड़कर एक छुटभैया नेता ने कहा कि ट्रैक से पांच सौ गाड़ियां भी गुजर जाएं तो कोई फर्क नहीं पड़ता। इस नेता की काली जुबान से निकले ये शब्द सच साबित हुए। रेल आई और लोगों को काटते हुए आगे बढ़ गई। प्रत्यक्षदर्शी बबलू ने बताया कि रावण जलाने का समय 5.30 बजे तय था, लेकिन यहां 7 बजे पुतलों को आग लगाई गई। यदि समय पर पुतला दहन कार्यक्रम कर दिया होता तो यह हृदय विदारक घटना घटित न होती। विवादों में रावण दहन के आयोजन
दशहरा दहन की अनुमति के लिए सरकारी नियम के अनुसार पुलिस विभाग, नगर निगम व प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से परमीशन लेना अनिवार्य है। मिट्ठू मदान के रावण दहन में पुलिस विभाग द्वारा परमीशन दिए जाने की बात सामने आई है, लेकिन शेष सरकारी विभागों को इस आयोजन की जानकारी नहीं दी गई। जोड़ा फाटक में 28 सालों से नियमों को ताक पर रखकर रावण दहन किया जा रहा है। पटरियों के समीप जल रहे पुतले देखने वाले लोग मौत की आगोश में समा गए। बात सिर्फ जोड़ा फाटक में दशहरा दहन की नहीं, अपितु पंजाब भर में हुए रावण दहन कार्यक्रम भी विवादों में हैं। लेकिन इन तीनों सरकारी विभागों की परमीशन किसी के पास नहीं थी। जोड़ा फाटक में हादसे के बाद अब प्रशासन जांच का दावा कर रहा है। पिता के साथ जख्मी हुए बच्चे
दो बच्चों के साथ जख्मी हुए ललित कुमार ने बताया कि ट्रेन के आते ही धक्का लगा। मैं और मेरे दो बच्चे लवकुश तथा संदीप पटरी के किनारे जा गिरे। मेरे हाथ में फैक्चर है और लवकुश के सिर पर गहरी चोट लगी। मैं और मेरे बच्चे सलामत हैं, लेकिन इस घटना में जिन परिवारों के चिराग बुझ गए, उनके बारे में सोचकर ही रूह कांप उठती है।
लोगों को कुचलते हुए निकल गई ट्रेन
बिहार के गोपालगंज के गांव समराल निवासी मतीलाल ने बताया कि ट्रेन आते ही चीखें मच गई। ट्रेन की रफ्तार इतनी थी किसी को समझने और संभलने का मौका नहीं मिला। मैं पटरी से कूदकर नीचे उतरा, लेकिन रेल की चपेट में आ गया। छाती की पसलियां टूट गई हैं।
नंदलाल का कट गया कान
बिहार के भागलपुरा जिले के गाव माल भंडारीडी निवासी नंदलाल भगत मेले में अकेले गए थे। हादसे से पहले ट्रैक पर खड़े थे। ट्रेन आई और लोग कटते गए। लोगों की धक्का-मुक्की के बीच वह ट्रैक की दूसरी तरफ गिर पड़े। इस दौरान उनका कान कट गया। पटाखों के शोर में नहीं सुनाई दिया ट्रेन का हॉर्न
10 वर्षीय विशाल अपने पापा राजेश के साथ मेला देखने गया था। भगदड़ में पिता का साथ छूट गया। भीड़ में दब गए, शायद इसलिए बच गए। पिता पुत्र दोनों सिविल अस्पताल में दाखिल हैं। राजेश के अनुसार पटाखों की आवाज के बीच हमें ट्रेन का हॉर्न सुनाई नहीं दिया।
दावे की पड़ताल, अस्पताल में न दवाएं न इलाज
पंजाब सरकार ने घायलों के निशुल्क इलाज का दावा किया, पर अमृतसर के सिविल अस्पताल व गुरुनानक देव अस्पताल में घायलों को सामान्य जीवनरक्षक दवाएं तक नहीं मिलीं। घायलों के परिजनों ने कहा कि डॉक्टरों ने सभी महंगी और ब्रांडेड दवाएं निजी मेडिकल स्टोर्स से मंगवाई हैं। मृतकों के शवों को सुरक्षित रखने के लिए गुरुनानक देव अस्पताल में बर्फ तक का प्रबंध नहीं था। जब लोगों ने इसका विरोध किया तो प्रशासन ने बर्फ की सिल्लियां मंगवाईं।
अस्पतालों के ब्लड बैंकों में खून का बंदोबस्त भी न था। ग्लब्ज तक बाहर से मंगवाए गए। शहर के रक्तदाताओं ने हिम्मत दिखाई और खून डोनेट कर दिया। सिविल अस्पताल में आईसीयू न होने की वजह से घायलों को गुरुनानक देव अस्पताल में शिफ्ट किया जाता रहा। सिविल अस्पताल में यदि उन्हें आईसीयू की सुविधा मिल जाती तो मौतों की गिनती कम हो सकती थी।
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आईएमए से संबंधित डॉक्टरों ने संभाली कमान
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इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अमृतसर के सरकारी व निजी अस्पतालों में एडमिट घायलों के उपचार के लिए जिले के समूह डॉक्टरों को झोंक दिया है। आईएमए के अध्यक्ष डॉ. अशोक उप्पल ने शुक्रवार रात जिले के समूह डॉक्टरों को घायलों के उपचार के निर्देश दिए। डॉ. उप्पल डाक्टरों की टीम के साथ गुरुनानक देव अस्पताल पहुंचे और आईसीयू में दाखिल मरीजों का ट्रीटमेंट किया।
बच्चों की मौत देख कांप उठे डॉक्टर
सिविल अस्पताल में कुल 37 लोगों ने दम तोड़ा है। मरने वालों में बच्चे व महिलाएं भी शामिल हैं। सिविल अस्पताल में तीन बच्चों को मृत घोषित करने वाले डॉ. संदीप अग्रवाल की आंखें आज नम थीं। उन्होंने बताया कि मैंने अपने करियर में कभी ऐसा मंजर नहंी देखा। एक बच्चे की खोपड़ी उड़ चुकी थी। वह दो साल का था। एक का नाक पिचक गया था। उसकी सांस बंद हो गई। सिविल अस्पताल में कुल आठ बच्चे आए थे, जिनमें से तीन की मौत हो गई। इसी प्रकार ईएनटी अस्पताल में लाए गए प्रेम कुमार नामक दस वर्षीय बच्चे की एक आंख डेमैज हुई हैं। डॉक्टरों ने उसका ऑपरेशन कर दिया है, पर आंख सलामत रहेगी यह कहना कठिन है।