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सिविल में किडनियों की तरह फेल हुई डायलिसिस योजना

प्रतिवर्ष 14 मार्च को व‌र्ल्ड किडनी-डे मनाया जाता है। यह दिवस इसलिए मनाया जाता है ताकि इस खतरनाक रोग के संदर्भ में लोगों को जागरूक किया जा सके।

By JagranEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 12:03 AM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 12:03 AM (IST)
सिविल में किडनियों की तरह फेल हुई डायलिसिस योजना

नितिन धीमान, अमृतसर

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प्रतिवर्ष 14 मार्च को व‌र्ल्ड किडनी-डे मनाया जाता है। यह दिवस इसलिए मनाया जाता है ताकि इस खतरनाक रोग के संदर्भ में लोगों को जागरूक किया जा सके। दूसरी तरफ सरकार का नकारात्मक और उपेक्षित रवैया किडनी पेशेंट्स को खून के आंसू रुला रहा है। सरकार की बेरुखी का आलम यह है कि सिविल अस्पताल अमृतसर में डायलिसिस सेवा पूरी तरह ठप है। इस वजह से छह किडनी पेशेंट्स की मौत भी हो चुकी है।

दरअसल, किडनी खराब होने पर मरीजों को हर सप्ताह डायलिसिस करवाना पड़ता है। सिविल अस्पताल में डायलिसिस यूनिट तो है, लेकिन मेडिसिन डॉक्टर नहीं। यूनिट छह माह से बंद है। यूनिट में हर माह करीब 90 किडनी मरीजों का डायलिसिस होता था। वर्ष 2017 में अचानक स्वास्थ्य विभाग ने यहां कार्यरत मेडिसिन डॉ. मनिदर सिंह का स्थानांतरण गुरदासपुर कर दिया। डॉ. मनिदर सिंह मेडिसिन ओपीडी में मरीजों की जांच के साथ-साथ डायलिसिस यूनिट का संचालन भी करते थे। स्वास्थ्य विभाग ने उनके स्थान पर डॉ. कुणाल को मेडिसिन डॉक्टर नियुक्त किया। उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज स्थित डायलिसिस विभाग में प्रशिक्षण के लिए भेजा, लेकिन उनके पास एमडी मेडिसिन की डिग्री नहीं थी। इस कारण मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने उन्हें सर्टिफिकेट प्रदान नहीं किया। सर्टिफिकेट के बगैर मेडिसिन डॉक्टर डायलिसिस यूनिट का प्रभार नहीं देख सकते। इन सारी अनियमितताओं अथवा अनदेखी के चलते सिविल अस्पताल में पूर्व में डायलिसिस करवा रहे छह किडनी पेशेंट्स की मौत भी हो चुकी है। मृतकों में एक 13 वर्षीय किशोर भी शामिल था। निजी अस्पतालों में खर्च करने पड़ रहे 3500 रुपये

असल में मेडिसिन डॉक्टर का काम केवल इतना है कि वह किडनी पेशेंट्स की फाइल पर हस्ताक्षर कर डायलिसिस की स्वीकृति स्टाफ को प्रदान करे। छह माह बीत जाने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग डायलिसिस यूनिट शुरू करने की दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठा रहा। ऐसी स्थिति में मरीजों का डायलिसिस यानी रक्तशोधन नहीं हो पा रहा। ये मरीज निजी अस्पतालों में डायलिसिस करवाने के लिए हर बार 3500 रुपये खर्च करने को मजबूर हैं, जबकि सिविल अस्पताल में यह सुविधा निशुल्क है।

पति को बचाने के लिए घर के बर्तन तक बेच डाले

बटाला रोड निवासी भावना के पति की दोनों किडनियां फेल हैं। उनका उपचार सिविल अस्पताल से ही चल रहा था, पर डायलिसिस यूनिट बंद होने की वजह से भावना मुसीबत में आ गई। बताती हैं कि पति का इलाज करवाने के लिए घर के बर्तन तक बेचने पड़ गए। बच्चों का स्कूल छूट गया। महीने में चार बार पति का डायलिसिस होता है। 15 से 20 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कोई सुनवाई नहीं करते।

गुरु नानक देव अस्पताल में भी मरीजों को खरीदनी पड़ रही किट

गुरुनानक देव अस्पताल में भी हालात ठीक नहीं हैं। यहां स्थित डायलिसिस यूनिट में मरीजों के डायलिसिस तो किए जा रहे हैं, पर अस्पताल प्रशासन उन्हें डायलिसिस किट खरीदकर लाने को मजबूर कर रहा है। हालांकि केंद्र का आदेश है कि किट अस्पताल ही देगा। 700 रुपये की किट खरीद पाना हर मरीज के लिए आसान नहीं। यही वजह है कि कई मरीज डायलिसिस नहीं करवा पाते और दम तोड़ देते हैं। ऐसे लोगों की मौत का रिकॉर्ड भी स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है।

इसी माह ज्वाइन करेंगे मेडिसि डॉक्टर : सीएस

हमने मेडिसिन डॉक्टर की व्यवस्था कर ली है। डॉक्टर फिलहाल ट्रेनिग पर है। ट्रेनिग पूरी होने के बाद वह इसी माह से डायलिसिस सेंटर का संचालन शुरू करेंगे।

-डॉ. हरदीप सिंह घई, सिविल सर्जन, अमृतसर।


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