स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से जीएनडीएच भी होगा स्मार्ट
गुरु नानक देव अस्पताल को सौर ऊर्जा से जगमगाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत शहर की सरकारी इमारतों पर सोलर सिस्टम इंस्टॉल करने के लिए केंद्र सरकार ने 10.4 करोड़ की राशि जारी की है।
— सोलर सिस्टम से जगमगाएगा गुरु नानक देव अस्पताल
— गुरुनानक देव अस्पताल में करोड़ो रुपयों की लागत से सोलर सिस्टम लगाने की तैयारी
— केंद्र सरकार द्वारा भेजा गया है सोलर सिस्टम
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नितिन धीमान, अमृतसर : गुरु नानक देव अस्पताल को सौर ऊर्जा से जगमगाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत शहर की सरकारी इमारतों पर सोलर सिस्टम इंस्टॉल करने के लिए केंद्र सरकार ने 10.4 करोड़ की राशि जारी की है। इस राशि से नगर सुधार ट्रस्ट, नगर निगम कार्यालय में सोलर पैनल से बिजली आपूर्ति शुरू हो चुकी हैं। अब केंद्र सरकार ने गुरु नानक देव अस्पताल में सोलर प्लांट की मशीनरी भेज दी है। इससे अस्पताल में चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति रहेगी। सोलर पैनल को बॉक्स से निकालने का काम भी शुरू हो गया।
दरअसल, केंद्र सरकार ने गुरु नानक देव अस्पताल को बिजली आपूर्ति के लिए आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से सोलर प्लांट का सामान भेजा है। सोलर प्लांट से मेडिसिन, सर्जिकल, ऑपरेशन थिएटर, गायनी वार्ड सहित तमाम विभाग जगमगाएंगे। अस्पताल के साथ सटे सरकारी मेडिकल कॉलेज में भी सौर ऊर्जा से ही विद्युत का प्रवाह होगा। खास बात यह है कि जीएनडीएच में हॉटलाइन प्रणाली से जुड़ा है, पर कई बार तकनीकी खराबी की वजह से हॉटलाइन से भी बिजली की आपूर्ति नहीं हो पाती। बिजली गुल होने की सूरत में डॉक्टरों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता रहा है। गर्मी में तो मरीजों का हाल बेहाल हो जाता है। कई मर्तबा ऑपरेशन थिएटर में बिजली गुल हो जाती है।
दूसरी तरफ गुरु नानक देव अस्पताल में पावरकॉम द्वारा की जाती विद्युत आपूर्ति की मद में प्रतिमाह 35 से 40 लाख रुपये बिल आ जाता है। यह भारी-भरकम राशि पावरकॉम के खाते में जमा करवाई जाती है।
सोलर सिस्टम इंस्टाल होने से जहां विद्युत आपूर्ति निरंतर जारी रहेगी, वहीं अस्पताल प्रशासन की लाखों रुपयों की भी बचत होगी। यह राशि अस्पताल के विकास कार्यों में खर्च की जाएगी। व्यवस्थागत खामियां भी दूर करे सरकार
सोलर सिस्टम इंस्टाल करना सकारात्मक पक्ष है, लेकिन इसके विपरीत अस्पताल में जहां दवाओं का भारी अभाव है, वहीं चिकित्सा उपकरण भी अपनी आयु सीमा पूरी कर चुके हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि सोलर प्लांट जरूरी है या फिर मरीजों के लिए दवाएं या चिकित्सा उपकरण।
अस्पताल में 282 प्रकार की दवाएं केंद्र सरकार द्वारा भेजना स्वीकृत किया गया है, लेकिन यहां 40 प्रकार की दवाएं ही उपलब्ध हैं। अस्पताल में पिछले तीन सालों से ग्लूकोज प्लांट बंद है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2012 में अस्पताल में इंस्टाल किया गया ऑक्सीजन प्लांट भी सरकार शुरू नहीं करवा पाई। यदि यह प्लांट शुरू हो जाता तो ऑक्सीजन का उत्पादन अस्पताल में ही होता और प्रतिमाह 20 लाख रुपये की ऑक्सीजन अस्पताल प्रशासन को न खरीदनी पड़ती। सभी वॉर्डों में डॉक्टरों की कमी है। ऑपरेशन थिएटर में चिकित्सा उपकरण बूढ़े हो चुके हैं। अस्पताल में पोर्टेबल एक्सरे मशीनें नहीं। एमआरआइ व सीटी स्केन की फिल्में खत्म हो चुकी हैं। न्यू लिटिल केयर सेंटर में असाध्य रोगों से पीड़ित नवजात शिशुओं को वेंटीलेटर नहीं मिल पाता। वहीं फोटोथैरेपी मशीनें खराब हो चुकी हैं। पीडिएट्रिक वार्ड की सीलिग जगह-जगह से उखड़ गई है। खामियां दूर कर रहे हैं : एमएस
अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. रमन शर्मा का कहना है कि सोलर प्लांट से अस्पताल में बिजली आपूर्ति होगी। इससे बिजली की मद में खर्च होने वाली लाखों रुपयों की राशि की बचत होगी। अस्पताल में जो खामियां हैं उसके संदर्भ में विभाग को जानकारी दी जा चुकी है। हम प्रयास कर रहे हैं कि मरीजों को हर प्रकार की सुविधा मिले।