जिदा सिस्टम का दोष, मां-बेटी दोनों खामोश
सिविल अस्पताल में तड़प-तड़प कर दम तोड़ने वाली गर्भवती महिला व उसकी कोख में पल रही बच्ची की मौत ने व्यवस्था का कड़वा सच उजागर किया है।
नितिन धीमान, अमृतसर : सिविल अस्पताल में तड़प-तड़प कर दम तोड़ने वाली गर्भवती महिला व उसकी कोख में पल रही बच्ची की मौत ने व्यवस्था का कड़वा सच उजागर किया है। छह घंटे तक महिला तड़पी, पर संवेदना शून्य गायनी डॉक्टरों ने उसे हाथ तक नहीं लगाया। मंगलवार को अस्पताल प्रशासन ने मृतका की कोख से मृत बच्ची को निकाला। मां के शव का पोस्टमार्टम किया गया, जबकि बच्ची के शव का मेडिकल परीक्षण के लिए लेबोरेट्री भेज दिया गया। संभवत: यह सब कुछ इसलिए किया जा रहा है ताकि डॉक्टर अपनी गर्दन बचा सकें। सवाल यह है कि कोख से मृत बच्ची निकालने वाले डॉक्टर तब क्यों नहीं हरकत में आए जब उसकी मां प्रसव पीड़ा से छटपटा रही थी और उसके परिजन डॉक्टरों से गुहार लगा रहे थे कि डिलीवरी कर दें?
मंगलवार को पांच डॉक्टरों का बोर्ड बनाकर मृतका के शव का पोस्टमार्टम किया गया। वहीं अस्पताल प्रशासन ने गायनी विभाग की डॉक्टरों को तलब कर पूछताछ की है। हालांकि गायनी डॉक्टरों ने क्या जवाब दिया, इस पर कोई अधिकारी बोलने को तैयार नहीं।
मृतका के भाई हीरा सिंह के अनुसार यदि कल डॉक्टर मेरी बहन की छटपटाहट देख लेते तो आज वह जीवित होती। जब वह जीवित थी तो कोई आगे नहीं आया, मरने के बाद अस्पताल का स्टाफ उसका शव पोस्टमार्टम हाउस ले गए। यह कैसा अस्पताल, जहां जीवित लोगों की कदर नहीं की जाती। 21 वर्षीय बहन चली गई। उसकी कोख में पल रही बच्ची भी जान गंवा बैठी। कसूरवार कौन? बहन का शव तो मिल गया, पर बच्ची का शव देने से डॉक्टरों ने इंकार किया। कहा—इसकी लेबोरेट्री जांच करवाएंगे।
सिसक रही जननी शिशु सुरक्षा योजना
यह पहली बार नहीं हुआ। सिविल अस्पताल के गायनी विभाग में गर्भवती महिलाओं को हमेशा ही डॉक्टरों के तिरस्कार का शिकार बनना पड़ता है। यहां कार्यरत डाक्टर अक्सर ही गर्भवती महिलाओं को नौवें महीने में रेफर कर गुरुनानक देव अस्पताल भेज देते हैं। तर्क देते हैं कि केस बिगड़ चुका है, इसलिए यहां डिलीवरी नहीं हो पाएगी। कई गर्भवती महिलाओं की गुरुनानक देव अस्पताल पहुंचने से पहले मौत हो चुकी है। दूसरी तरफ रात के वक्त गायनी वॉर्ड में गायनी डॉक्टर नहीं आतीं। रेफर कर दिया जाता है।
प्रो. चावला ने सेक्रेट्री को लिखा पत्र
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने स्वास्थ्य विभाग के सचिव अनुराग अग्रवाल को पत्र लिखकर इस घटना के कसूरवार डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की अपील की है। उन्होंने कहा कि यह बहुत दुखदायी घटना है। इसकी जांच की जानी चाहिए।