डिजिटल एक्सरे व अल्ट्रासाउंड मशीनों पर चढ़ी सरकारी बेरुखी की धूल
वर्तमान में ¨जदगी तकनीक पर निर्भर है। तकनीकी का सर्वाधिक लाभ चिकित्सा जगत को मिला है। पलक झपकते ही मरीजों की जांच करके बीमारी डायग्नोस करने वाली आधुनिक मशीनें निजी व सरकारी अस्पतालों की शोभा बढ़ा रही हैं।
नितिन धीमान, अमृतसर : वर्तमान में ¨जदगी तकनीक पर निर्भर है। तकनीकी का सर्वाधिक लाभ चिकित्सा जगत को मिला है। पलक झपकते ही मरीजों की जांच करके बीमारी डायग्नोस करने वाली आधुनिक मशीनें निजी व सरकारी अस्पतालों की शोभा बढ़ा रही हैं। अमृतसर के गुरु नानक देव अस्पताल (जीएनडीएच) में ऐसी ही डिजिटल एक्सरे व अल्ट्रासाउंड मशीनें उपलब्ध हैं। एक निजी कंपनी की ओर से तीन करोड़ मूल्य की ये मशीनें अस्पताल को दान स्वरूप मिली हैं। दुर्भाग्यवश चार माह पूर्व अस्पताल में पहुंचीं इन दोनों मशीनों का स्विच ऑफ है। कागजी कार्रवाई में उलझे विभागीय अधिकारी अभी भी मशीनों को चलवाने में असमर्थ साबित हुए हैं।
दरअसल, निजी कंपनी ने जीएनडीएच में स्थित रेडियो डायग्नोस्टिक सेंटर की कार्यप्रणाली की समीक्षा करने के बाद डिजिटल एक्सरे व अल्ट्रासाउंड मशीनें निशुल्क उपलब्ध करवाई थीं। कंपनी ने अगले पांच वर्ष तक इन मशीनों के मेन्टेनेस का खर्च उठाने की भी बात कही। निजी कंपनी की इस दरियादिली पर सरकार की बेरुखी भारी पड़ गई। सरकार ने चार महीनों से इन मशीनों के लिए छोटी फिल्मों की व्यवस्था नहीं की। रेडियो डायग्नोस्टिक विभाग में पड़ी ये मशीनें धूल फांक रही हैं। स्थानीय अधिकारी सरकार से फिल्में मांग रहे हैं, पर चंडीगढ़ बैठे अधिकारी कागजी प्रक्रिया का हवाला देते हुए फिलहाल टाल रहे हैं।
डिजिटल मशीनों के लिए फिल्में न आने की एक बड़ी वजह बताई जा रही है। सरकारी अधिकारी तर्क देते हैं कि पीजीआइ चंडीगढ़ व एम्स दिल्ली द्वारा जिस कंपनी से फिल्में खरीदी जाती हैं, उनके बीच अभी कांट्रेक्ट नहीं हुआ। जैसे ही यह प्रक्रिया पूरी होगी, गुरु नानक देव अस्पताल के लिए भी इसी निजी कंपनी से फिल्में खरीदी जाएंगी। अब सवाल यह है कि जब तक रेट कांट्रेक्ट नहीं होता तब तक क्या मरीजों को सरकारी अस्पताल में इन महंगे टेस्टों की सुविधा नहीं मिल पाएगी? निश्चित ही उन्हें निजी डायग्नोस्टिक सेंटरों में जाकर महंगे टेस्ट करवाने पड़ेंगे।
यूजर चार्जेस न मिलने से बढ़ी परेशानी
मेडिकल शिक्षा एवं खोज विभाग द्वारा संचालित जीएनडीएच में मरीजों के उपचार की एवज में लिए जाने वाला सरकारी शुल्क सीधे विभाग के अकाउंट में ट्रांसफर होता है। इस राशि से एक पैसा भी अस्पताल प्रशासन अपनी मर्जी से खर्च नहीं कर पाता। यही वजह है कि छोटी—मोटी जरूरतों के लिए अस्पताल प्रशासन को विभाग के आगे हाथ फैलाना पड़ता है। यदि यूजर चार्जेज खर्च करने की अनुमति अस्पताल प्रशासन को मिल जाए तो निश्चित ही डिजिटल मशीनों की फिल्में भी स्थानीय स्तर पर खरीदी जा सकती हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित सिविल अस्पताल में यूजर चार्जेज खर्च करने की व्यवस्था लागू है। अधिकारियों का तर्क— फिल्मों का इंतजार
सरकारी मेडिकल कॉलेज की ¨प्रसिपल डॉ. सुजाता शर्मा का कहना है कि फिल्में मंगवाने के लिए गुरुनानक देव अस्पताल के मेडिकल सुप¨रटेंडेंट विभाग से लगातार संपर्क कर रहे हैं। उन्होंने प्रपोजल बनाकर भेजा है। वहीं मेडिकल सुप¨रटेंडेंट डॉ. सु¨रदर पाल ने कहा कि वह विभाग को इस विषय से अवगत करवा चुके हैं। जल्द ही फिल्में उपलब्ध होंगी। रेडियो डायग्नोस्टिक सेंटर के प्रभारी डॉ. रमेश चंद्र कहते हैं कि काफी जद्दोजहद के बाद ये मशीनें हमें मिली हैं। इन्हें शुरू करवाने के लिए प्रयासरत हैं। फिलहाल मरीजों को पुरानी एक्सरे व अल्ट्रासाउंड मशीनों के जरिए रिपोर्ट दी जा रही है। हालांकि नई मशीनें शुरू हो जाएं तो मरीजों को टेस्ट करवाने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।