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डिब्बा बंद दूध खतरनाक, मुश्किल से बची बच्ची की जान

अमृतसर शुरू से ही कहा जाता रहा है कि मां का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है, लेकिन कई महिलाएं छाती के संक्रमण का शिकार होने की वजह से शिशुओं को स्तनपान नहीं करवा पातीं। ऐसी ही स्थिति कामकाजी महिलाओं के साथ भी है। ऐसे हालात में शिशुओं को डिब्बा बंद दूध पिलाया जाता है, लेकिन पाउडर के रूप में मिलने वाला डिब्बा बंद दूध शिशुओं की जान जोखिम में डाल सकता है। ऐसा ही वाकया गुरदासपुर के गांव चाऊ पो में रहने वाली तीन महीने की ब'ची अनुरीत के साथ हुआ है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Apr 2018 09:44 PM (IST)Updated: Sun, 22 Apr 2018 09:44 PM (IST)
डिब्बा बंद दूध खतरनाक, मुश्किल से बची बच्ची की जान
डिब्बा बंद दूध खतरनाक, मुश्किल से बची बच्ची की जान

जागरण संवाददाता, अमृतसर

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शुरू से ही कहा जाता रहा है कि मां का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है, लेकिन कई महिलाएं छाती के संक्रमण का शिकार होने की वजह से शिशुओं को स्तनपान नहीं करवा पातीं। ऐसी ही स्थिति कामकाजी महिलाओं के साथ भी है। ऐसे हालात में शिशुओं को डिब्बा बंद दूध पिलाया जाता है, लेकिन पाउडर के रूप में मिलने वाला डिब्बा बंद दूध शिशुओं की जान जोखिम में डाल सकता है। ऐसा ही वाकया गुरदासपुर के गांव चाऊ पो में रहने वाली तीन महीने की बच्ची अनुरीत के साथ हुआ है।

बच्ची की मां मनदीप कौर को चेस्ट इंफेशन थी। इस वजह से वह बच्ची को स्तनपान नहीं करवा पाई। ऐसे में बच्ची को डिब्बा बंद दूध का सेवन करवाया गया। इस दूध ने अनुरीत के पेट और फूड पाइप में जख्म बना दिए, परिणामस्वरूप उसे खून की उल्टियां होने लगीं। शौच के जरिए भी खून निकलने लगा। तीन महीने की अनुरीत को गुरदासपुर के एक निजी अस्पताल में दिखाया गया, पर डॉक्टरों की समझ में मर्ज न आया। इसके बाद उसे अमृतसर के मजीठा रोड स्थित डॉ. नरेश ग्रोवर अस्पताल में लाया गया। यहां लाते हुए अनुरीत बेहोश हो गई। उसे 103 डिग्री बुखार भी था। डॉक्टरों ने जब स्पेशल टेस्ट किए गए तो पता चला कि बच्ची को डिब्बाबंद दूध दिया जा रहा था, जिसकी वजह से उसके पेट व फूड पाइप में जख्म उभर आए हैं। इन्हीं जख्मों की वजह से उसे खून की उल्टियां व शौच में रक्त आ रहा है। डॉक्टर ने तत्काल हाइड्रोलिक मिल्क का प्रबंध किया और बच्ची को पिलाया गया। इसके बाद ट्रीटमेंट का प्रोसेस शुरू हुआ। ट्रीटमेंट के बाद यह बच्ची खतरे से बाहर है।

रविवार को पत्रकार सम्मेलन के दौरान डॉ. नरेश ग्रोवर ने बताया कि यदि अनुरीत को लगातार डिब्बाबंद दूध अथवा गाय का दूध पिलाया जाता रहा तो उसकी ¨जदगी खतरे में पड़ सकती थी। विश्व में 2 से 5 प्रतिशत बच्चे मिल्क एलर्जी का शिकार होते हैं। उन्होंने बताया कि सभी को खून की उलटियां नहीं आती। कुछ की त्वचा पर दाने उभर आते हैं। पेट फूल जाता है या नींद नहीं आती और वे रोते रहते हैं। खून की उलटियां आने का यह मामला बहुत ही रेयर है। संक्रमण की वजह से महिलाएं बच्चों को स्तनपान नहीं करवा सकतीं तो उन्हें हाइड्रोलिक मिल्क पिलाया जाए। इससे बच्चे को मिल्क एलर्जी नहीं होती। यह मिल्क हल्की से कड़वाहट युक्त होता है, इसलिए इसमें चीनी मिश्रित की जा सकती है। डॉ. ग्रोवर ने कहा कि भारत में मिल्क बैंकों का चलन तो है, लेकिन यह हर जिले तक पहुंच नहीं कर सके। सरकार हर जिले में मिल्क बैंक स्थापित करे। इन बैंकों में वे महिलाएं अपना दूध स्टोर करवाएं जिनके स्तनों में अत्यधिक दूध निकलता है। डॉ. ग्रोवर ने कहा कि अनुरीत जैसे बच्चों को एक साल तक हाइड्रोलिक मिल्क पिलाना जरूरी है। हालांकि छह महीने बाद उसे गेहूं अथवा चावल से निर्मित खाद्य पदार्थ भी दिए जा सकते हैं।

क्या होते हैं जख्म

बच्चे की फूड पाइप केवल मां के दूध के सेवन के लिए होती है। जब बच्चे को डिब्बाबंद दूध मिलता है तो इसमें मिश्रित प्रोटीन बच्चे के शरीर में पहुंच जाता है। कई बार यह प्रोटीन एलर्जी का कारण बनता है। ऐसे बच्चों को गाय, भैंस, बकरी आदि का दूध नहीं दिया जा सकता। हां, घोड़ी का दूध पिला सकते हैं, पर यह आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकता।


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