जलियांवाला बाग-शहादत के 100 साल... विकास के लिए 115 करोड़ की घोषणा, मिला नहीं एक पैसा
सरकारों ने जलियांवाला विकास के लिए 115 करोड़ रुपये जारी करने की घोषणा की लेकिन मिला एक पैसा नहीं।
अमृतसर [रविंदर शर्मा]। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे होने पर केंद्र और राज्य सरकार वर्ष 2019 को शताब्दी वर्ष के रूप में मना रही है। सरकारों ने जलियांवाला विकास के लिए 115 करोड़ रुपये जारी करने की घोषणा की, लेकिन मिला एक पैसा नहीं। 13 अप्रैल को शताब्दी समारोह के अवसर पर एक फिर जलियांवाला बाग में स्मारक पर शहीदों को श्रद्धा के फूल चढ़ाकर याद किया जाएगा, लेकिन यादगार के जीर्णोंद्धार का लंबा इंतजार शायद ही इस शताब्दी वर्ष में खत्म हो पाए।
जलियांवाला बाग स्मारक पर दर्दनाक हादसे की डाक्यूमेंट्री फिल्म के अलावा बाग में लेजर शो और सोवीनार हाल का नवनिर्माण करवाकर इन्हें अप्रैल 2019 तक सुचारू रूप में शुरू करवाने की घोषणा की गई थी। साथ ही, बाग में रेस्टोरेंट, अजायब घर व अन्य स्मारक बनाए जाने की बात कही गई थी, लेकिन योजना सिर्फ जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट और एक्ट के बदलाव तक सिमट कर ही रह गई। हालात यह है कि बाग की ऐतिहासिक इमारत, दीवारें जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच रही हैं। हां शताब्दी समारोह को लेकर टूटे फव्वारे व लाइटों इत्यादि अल्प अवधि के लिए जरूर ठीक कर दिए गए हैं।
जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट के सचिव एसके मुखर्जी कहते हैं कि शताब्दी वर्ष मनाए जाने को लेकर केंद्र और पंजाब की सरकारों में चाहे बहुत उत्साह हो, मगर इसके लिए बहुत कुछ नहीं किया जा रहा। केंद्र सरकार ने इसके लिए 100 करोड़़ रुपये और पंजाब सरकार ने 15 करोड़ रुपये जारी करने की घोषणाएं की , मगर सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है। हमारे पास तो 115 करोड़ तो दूर 115 पैसे भी नहीं पहुंचे। हालांकि, इसके बाद भी बाग में देखभाल का काम चल रहा है।
पर्यटकों में भी नाराजगी
शहादत के गवाह इस बाग के इस हालात से यहां आने वाले पर्यटकों में भी नाराजगी है। कोलकाता से शहीदों की स्थली देखने पहुंचे सौरभ खेमका कहते हैं कि जलियांवाला बाग की हालत देखकर बहुत दुख हुआ। इस तरह के ऐतिहासिक स्थलों में शहीदों की याद को संजो कर रखने के लिए पूरा जोर लगा देना चाहिए। भागलपुर (बिहार) से यहां पहुंचे विष्णु देव ने बताया कि वह अपनी जिंदगी में पहली बार जलियांवाला बाग देख रहे हैं।
यहां आने का मुख्य कारण शताब्दी वर्ष का मनाया जाना है। यहां की हालत देखकर दुख होता है। अनुज शर्मा कहते हैं कि विदेश में तो इस तरह के स्मारकों पर सरकारें अरबों रुपये खर्च कर देती हैं, ताकि आने वाली पीढिय़ों को अपने शहीदों का पता चलता रहे। हमारी सरकार अभी तक यह ही तय कर पाई कि 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हुए कत्लेआम में कितने लोगों की जानें गईं।
ऐसी यादगारों से युवा पीढ़ी में पैदा होता है देशभक्ति का जज्बा
मोहाली से अपनी पत्नी और बेटी-दामाद के साथ जलियांवाला बाग पहुंचे कर्नल (सेवानिवृत्त ) एनएस बाजवा कहते हैं कि युवा पीढ़ी को इसका इतिहास जानना बहुत जरूरी है। युवा पीढ़ी को पता होना चाहिए कि आज से 100 साल पूर्व कैसे जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाकर सैकड़ों लोगों को शहीद किया। इसको जानने से देश की युवा पीढ़ी में देशभक्ति का जज्बा पैदा होता है।
अंग्रेज लेखक ने भी की थी कत्लेआम की निंदा
अंग्रेज लेखक डोनाल्ड के नामी ने 1938 में जलियांवाला बाग स्मारक की विजिटर बुक में लिखा है कि इस स्थान को देखने के बाद मुझे अपनी कौम पर शर्म महसूस हुई। मुझे लगता है कि जैसे जलियांवाला बाग गली में मेरी तरफ देखने वाला हर व्यक्ति मुझे हत्यारों के समुदाय का सदस्य समझ रहा हो। मुझे सभ्यता के नाम पर किए गए इस नृशंस कत्लेआम के कारण अपनेआप को अंग्रेज कहलाते हुए शर्म महसूस हुई। मुझे कट्टर कहलाने की तुलना में काफिर कहलवाना अधिक अच्छा लगता है।
जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिलाने वाली संस्था हुई गुम
जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर के सैनिकों की गोलियों से मारे गए लोगों पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली संस्था 'जागो इंडिया जागो' आजकल गुमनामी के दौर में है। हालांकि इस संस्था के अभियान के बाद केंद्र सरकार को मजबूर होकर 18 दिसंबर 2008 को जलियांवाला बाग के फ्रीडम फाइटरों की संख्या 381 से बढ़ा कर 501 करनी पड़ी। तब भारत सरकार ने 1980 पेंशन स्कीम के तहत 501 लोगों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा देते हुए इनके परिजनों को सारी सुविधाएं मुहैया करवाने के भी निर्देश दिए थे, लेकिन इन दिनों संस्था की तरफ से कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।
जागो इंडिया जागो के सचिव बौबी चौहान ने बताया कि आज पंजाब में कैबिनेट मंत्री के तौर पर नवजोत सिंह सिद्धू स्क्रालिंग स्ट्रीट को 'शहीदां दी गली' या 'फ्रीडम स्ट्रीट' का दर्जा दिलाने की मांग कर रहे हैं। तब कहां थे जब वे 2004 में पहली बार पटियाला से अमृतसर आए और बीजेपी की सीट से यहां सांसद बने। तब सिद्धू ने उनसे वादा किया था कि वे जलियांवाला बाग के शहीदों को शहीद का दर्जा दिए जाने के लिए सांसद में आवाज उठाएंगे। वे दो बार सांसद बने, लेकिन सिद्धू ने एक बार भी जलियांवाला बाग की आवाज संसद में नहीं उठाई। यही वजह है कि सहयोग न मिलने से संस्था का प्रयास भी पूरा नहीं हो पा रहा है।