जहां शराब बंदी को लेकर आंदोलन वहीं वसुंधरा सरकार ने खोली फैक्ट्री
राजस्थान के जिन दो जिलों में शराब बंदी को लेकर आंदोलन हुए उन्ही में भाजपा सरकार ने शराब की फैक्ट्री लगाने की मंजूरी दे दी। वहीं वर्तमान सरकार ने शराब की दुकानों की संख्या बढ़ा दी है।
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान के जिन दो जिलों में शराब बंदी को लेकर आंदोलन हुए,उन्ही में पूववर्ती भाजपा सरकार ने शराब की फैक्ट्री लगाने की मंजूरी दे दी। वहीं अब वर्तमान कांग्रेस सरकार ने शराब की दुकानों की संख्या बढ़ा दी है। राज्य के आदिवासियों और सहरिया परिवारों में गरीबी और बिखराव का सबसे बड़ा कारण शराब को माना जाता है।
यह माना जाता है कि शराब की लत के चलते आदिवासी और सहरिया समाज शैक्षणिक और आर्थिक दृष्टि से काफी पीछे है। आदिवासी बहुल बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों में आदिवासियों के उत्थान के लिए समाजवादी नेता मामा बालेश्वर ने कई सालो तक संघर्ष किया। वहीं सहरिया इलाकों में देश के प्रमुख स्वयंसेवी संगठन जागरूकता फैलाने में जुटे है,लेकिन राजस्व के चक्कर में सरकार इन दोनों ही इलाकों में शराब के धंधे को बढ़ावा दे रही है।
पहले तो वसुंधरा राजे सरकार ने विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले बांसवाड़ा और सहरिया बहुल बांरा जिलों में दो शराब की फैक्ट्रियां लगाने की मंजूरी दी,वहीं अब कांग्रेस सरकार ने बांसवाड़ा में शराब की दुकानों में संख्या बढ़ा दी है।
उधर फैक्ट्री का विरोध भी तेज होता जा रहा है। आदिवासियों के बीच काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनों और महिलाओं ने सरकार को चेतावनी दी है कि 15 दिन में फैक्ट्री की अनुमति निरस्त नहीं की गई तो उग्र आंदोलन किया जाएगा।
लोग कर रहे आंदोलन,सरकार ने दिया विशेष पैकेज
बांसवाड़ा और बांरा जिलों के लोग विशेषकर महिलाएं शराब बंदी के लिए पिछले एक साल से आंदोलन कर रही है। आंदोलन के चलते शराब की कुछ दुकानें बंद भी करनी पड़ी,लेकिन फिर भी तत्कालीन भाजपा सरकार ने बांसवाड़ा जिले के गनोड़ा और बांरा जिले के गुवाड़ी-माजहरी में शराब बनाने की फैक्टी लगाने को मंजूरी दे दी। फैक्ट्री लगाने वाली दो फर्मों को विशेष पैकेज भी दिया गया।
पैकेज में सस्ती दर पर जमीन आवंटन और राज्य के करों में रियायत शामिल है। बांसवाड़ा में लगने वाली फैक्ट्री में 90 किलोलीटर प्रतिदिन शराब उत्पादन क्षमता तय की गई और बांरा में लगने वाली फैक्ट्री की उत्पादन क्षमता 170 किलोलीटर तय की गई है । दोनों की लागत करीब पौने दो सौ करोड़ रूपए बताई जा रही है। सरकार से रियायत लेते समय फैक्ट्री प्रतिनिधियों ने दावा किया था कि वे 100-100 स्किल्ड और नॉन स्किल्ड लोगों को रोजगार देंगे। दोनों जिलों में अनाज की भरतपुर पैदावार होती है।
आदिवासी और सहरिया बहुल इलाकों में फैक्ट्री लगाने का कारण
बांसवाड़ा जिले में करीब 80 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। आदिवासियों में शराब का उपयोग बड़ी मात्रा में होता है। ये लोग वैध शराब के साथ ही हथकड़ शराब का भी सेवन करते है। वैध शराब की बिक्री में बांसवाड़ा जिला प्रदेश में सबसे आगे है। पिछले साल शराब की बिक्री से सरकार को इस जिले से 127 करोड़ रूपए का राजस्व मिला था,इस साल करीब 135 करोड़ मिलने की उम्मीद आबकारी विभाग के अधिकारियों को है। इस क्षेत्र में पानी की अधिकता और अनाज उत्पादन बड़ी मात्रा में होने के कारण फैक्ट्री लगाई गई है।
वहीं सहरिया बहुल बांरा में फैक्ट्री लगाने का प्रमुख कारण उपभोग करने वालों की अधिकता और अनाज का भरपुर उत्पादन है। बांसवाड़ा के जिला आबकारी अधिकारी हरफूल चंदेलिया का कहना है कि इस साल शराब की दुकानों की संख्या अवैध शराब के कारोबार को रोकने के लिए बढ़ाई गई है। इस साल 11 दुकाने जिले में बढ़ाई गई है।