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शिक्षक विधायक चुनाव : सपा की सरकार आई तो पुरानी पेंशन नीति को किया जाएगा बहाल

सपा ने इस बार भी बरेली मुरादाबाद सीट से संजय मिश्रा पर ही दांव लगाया है। वह इस सीट पर अभी तक काबिज थे। उनका कहना है कि अगर वह जीते तो समान कार्य-समान वेतन की नीति पर काम करेंगे।

By Sant ShuklaEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2020 10:41 PM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 05:41 PM (IST)
उन्होंने दैनिक जागरण से चर्चा करते हुए अपनी प्राथमिकताओं को गिनाया,

 बरेली, जेएनएन। सपा ने इस बार भी बरेली मुरादाबाद सीट से संजय मिश्रा पर ही दांव लगाया है। वह इस सीट पर अभी तक काबिज थे। हालांकि पार्टी में खींचतान के बावजूद वह अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर वह जीते तो समान कार्य-समान वेतन की नीति पर काम करेंगे। उन्होंने दैनिक जागरण से चर्चा करते हुए जहां अपनी प्राथमिकताओं को गिनाया, वहीं बीजेपी सरकार पर निशाना साधने से भी नहीं चूके। पेश है उनसे बातचीत के अंश। 

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सवाल - आप छह साल शिक्षक विधायक रहे, क्या चुनौतियां रही?
जवाब - भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे पर संस्कृत और संस्कृत विद्यालय रहे। लेकिन पूरे प्रदेश के 80 फीसदी विद्यालयों में ताले लग चुके हैं। मेरे लिए चुनौती थी कि इन्हें कैसे बचाऊ। मदरसों में 52 महीने से शिक्षकों को मानदेय नहीं मिला है। सरकार निर्दयी है। रोजी देकर रोटी के लिए मोहताज कर दिया है।

सवाल - शिक्षकों के लिए आगे की रणनीति क्या है?
जवाब - उत्तर प्रदेश के 21 हजार वित्तविहीन विद्यालयों के 3.5 लाख शिक्षक, 42 हजार शिक्षणेत्तर कर्मचारी, 63 हजार शिक्षणेत्तर कर्मचारी चतुर्थ श्रेणी कार्यरत है। उन्हें समान कार्य का समान वेतन दिलाना मेरा उद्देश्य है।

सवाल - नरेश उत्तम पिछले दिनों बरेली आए। कोई खास चर्चा हुई, जिसका फायदा शिक्षकों को मिले।
जवाब - मेरी पार्टी और मैने विधान परिषद में पुरानी पेंशन का मुद्दा उठाया था। आपको बता देना चाहता हूं कि दो दिन पहले प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने घोषणा की है। हमारी सरकार बनेगी तो हम पुरानी पेंशन नीति ही बहाल करेंगे।

सवाल - आपके कार्यकाल में शिक्षकों को ऐसे कौन से फायदे मिले, जिसके चलते आपको दोबारा चुना जाए?
जवाब - मेरा तो इतिहास रहा है। इन्होंने 2012 शिक्षकों के मानदेय की घोषणा की, लेकिन 2014 में नहीं दिया। मैं चुनकर आया, सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया। सरकार को मजबूरन वित्त विहीन शिक्षकों को मानदेय देना पड़ा। मेरे छह साल के कार्यकाल में चाहे, वित्त विहिन के प्रधानाचार्यों को केंद्र व्यवस्थापक बनाना रहा हो, चाहे शिक्षकों को प्रयोगात्मक परीक्षक बनाना रहा हो। मैने सड़क से सदन तक संघर्ष करके आज वित्त विहीन शिक्षकों का सिर गर्व से ऊंचा किया है। आपको बता देना चाहता हूं कि 55 रुपये से 75 रुपये क्रीडाशुल्क के नाम पर वित्त विहीन विद्यालयों से जो अवैध वसूली होती थी। उसको बंद कराने का प्रयास मैने ही किया था।  

सवाल - वित्त विहीन शिक्षकों पर सभी प्रत्याशियों को बहुत जोर है?
जवाब - सदन में जीतकर आने के बाद मैने देखा कि माध्यमिक शिक्षकों की पैरवी और वित्त विहीन को मतदाता सूची से बाहर करने की साजिश करने वाले अब वित्त विहीन शिक्षकों को ही सब कुछ मानने पर मजबूर हो गए हैं। मैने वित्त विहीन का वोट बचाने के लिए प्रयास किया। यही मेरी अब तक की जीत है।


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