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Ramvilas Paswan 60 साल बाद उस गुरु से मिल हो गए थे भावुक, जिनसे पढ़ने नदी पार कर जाते थे स्‍कूल

बिहार में वरिष्‍ठ दलित नेता और मोदी सरकार में उपभोक्ता मंत्री रहे रामविलास पासवान अब हमारे बीच नहीं रहे। ये किस्‍सा एक साल पहले का है जब वे करीब 60 साल बाद अपने पहले गुरु कन्हैया लाल से मिले थे। इस मुलाकात में पासवान भावुक हो गए थे।

By Vijay KumarEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2020 10:21 PM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2020 10:21 PM (IST)
Ramvilas Paswan 60 साल बाद उस गुरु से मिल हो गए थे भावुक, जिनसे पढ़ने नदी पार कर जाते थे स्‍कूल
दलितों के मज़बूत नेता के तौर पर उभरे राम विलास पासवान

जेएनएन, नई दिल्‍ली। बिहार में वरिष्‍ठ दलित नेता और मोदी सरकार में उपभोक्ता मंत्री रहे रामविलास पासवान अब हमारे बीच नहीं रहे। ये किस्‍सा एक साल पहले का है, जब वे करीब 60 साल बाद अपने पहले गुरु कन्हैया लाल से मिले थे। इस मुलाकात में पासवान भावुक हो गए थे। कन्‍हैया लाल से उन्‍होंने चौथी कक्षा तक शिक्षा की प्राप्त की थी। उनसे पढ़ने के लिए पासवान रोज नदी पारकर स्कूल जाते थे।

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कन्‍हैया लाल बिहार के समस्तीपुर जिले के नरहर के निवासी हैं। रामविलास ने बताया था कि गुरु कन्हैया प्रसाद ने ही 1954 में उनकी 'खल्ली छुआई' की रस्म को पूरा किया था। मुलाकात के बाद ट्वीट कर पासवान ने यह भी बताया था कि कन्हैया लाल ने हाथ पकड़कर उन्‍हें चॉक से लिखना सिखाया था। रामविलास पासवान को ये अफसोस भी रहा कि वे अपने गुरु के बेटे को नौकरी नहीं दिला पाए। 

प्रयोग और रोमांच से भरी थी जिंदगी

राम विलास पासवान पहले की जिंदगी प्रयोग और रोमांच से भरी थी। कॉलेज में रहते हुए पासवान अपने साथियों के साथ हर साल नौ अगस्त को भूमि मुक्ति आंदोलन करते हुए 'धरती चोरों-धरती छोड़ो' के नारे के साथ जेल जरूर जाते थे। यह राजनीतिक यात्रा की शुरूआत थी। जेल से बाहर आने के लिए कभी जमानत नहीं मांगते थे। 14 अक्टूबर से पहले जेल से छूटना नहीं चाहते थे। इसके पीछे की एक रोचक दास्तां भी है। बकौल, पासवान 14 अक्टूबर को जेल में जाड़े का मौसम घोषित हो जाता था, तब सभी कैदियों को गरम कपड़ा मिल जाता था। इसमें पैंट, शर्ट, कोट और कंबल बांटा जाता था।

दलितों के मज़बूत नेता के तौर पर उभरे

राजनीतिक जीवन में उतरे रामविलास पासवान, कांशीराम और मायावती की लोकप्रियता के दौर में भी, बिहार के दलितों के मज़बूत नेता के तौर पर लंबे समय तक टिके रहे। उनकी खूबी यह थी कि दलित उन्हें अपना मानते थे और अगड़ी जाति भी उन्हें नेता के रूप में स्वीकारती थी। पहली पढ़ाई मदरसे से शुरू करने वाले पासवान का अल्पसंख्यक प्रेम दिखावा या सिर्फ राजनीतिक नहीं कहा जा सकता था। राजनीति की परख इतनी थी कि वह आने वाले वक्त को पहचानते थे और भविष्य का फैसला अक्सर सौ फीसदी दुरुस्त होता था।


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