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बसपा के लिए आसान नहीं अकेले उपचुनाव की परीक्षा, गठबंधन टूटने से वोटों का बिखराव तय

यूपी की विधानसभा की 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अकेले लड़ने की राह बसपा लिए कांटों भरी नजर आ रही है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 26 Jun 2019 09:37 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2019 07:37 AM (IST)
बसपा के लिए आसान नहीं अकेले उपचुनाव की परीक्षा, गठबंधन टूटने से वोटों का बिखराव तय
बसपा के लिए आसान नहीं अकेले उपचुनाव की परीक्षा, गठबंधन टूटने से वोटों का बिखराव तय

लखनऊ, जेएनएन। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी ने भले ही दस संसदीय क्षेत्रों पर नीला झंडा फहरा लिया हो, लेकिन विधानसभा की 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अकेले लड़ने की राह उसके लिए कांटों भरी नजर आ रही है। लगातार घटते जनाधार को रोक पाना और सपा को धकेल प्रदेश की राजनीति में दूसरा पायदान पाने की हसरत पूरी होना भी पार्टी के लिए आसान नहीं है।

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बसपा पहली बार उपचुनाव की परीक्षा में उतर रही है। जिन 12 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैैं उनमें से केवल एक सीट अंबेडकरनगर जिले की जलालपुर ही उसके पास रही है। अन्य 11 सीटों में से सपा के पास एक और भाजपा 10 पर काबिज रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो बसपा तीन क्षेत्रों में ही दूसरे स्थान पर रही, जबकि सपा भी तीन स्थानों पर मुख्य मुकाबले में थी। कांग्रेस ने भी गंगोह क्षेत्र में दूसरा स्थान पाया। ऐसे में उक्त सीटों पर बसपा को विशेष राहत मिल पाने की उम्मीद अधिक नहीं।

गठबंधन टूटने से मुस्लिमों में मायूसी

लोकसभा चुनाव में बसपा को संजीवनी गठबंधन के कारण ही मिली है। गठबंधन के चलते भाजपा को हराने के लिए मुस्लिम मतदाताओं में दुविधा नहीं थी। उन्होंने गठबंधन उम्मीदवारों को ही वोट दिए, जिसका नतीजा रहा कि गठबंधन के छह मुस्लिम सांसद निर्वाचित हुए, जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में सूबे से कोई मुस्लिम प्रत्याशी लोकसभा में नहीं पहुंच सका था।

मायावती के परिवार मोह से बढ़़ता असंतोष

2022 का पूर्वाभ्यास माने जाने वाले उपचुनाव से पहले मायावती द्वारा अपने भाई आनंद व भतीजे आकाश को पार्टी में दूसरे व तीसरे स्थान वाले ओहदे प्रदान करने से बसपा समर्थक संतुष्ट नहीं दिख रहे हैैं। दबी जुबान असंतुष्टों का कहना है कि दलित आंदोलनों में आनंद और आकाश की कोई भूमिका नहीं रही है और संघर्ष करने वालों को घर बैठा दिया गया है। दलित युवाओं में भीम आर्मी के प्रति तेजी से बढ़ता आकर्षण बसपा के लिए खतरे की घंटी है। भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर बसपा प्रमुख की मनमानी के खिलाफ मोर्चा भी खोल चुके हैैं। दलित चिंतक डॉ. चरण सिंह का दावा है कि वोटों के सौदागरों को समाज अब नकार रहा है।

इन सीटों पर होगा उपचुनाव

गंगोह (सहारनपुर), इगलास (अलीगढ़), रामपुर, टूंडला (फीरोजाबाद), गोविंदनगर (कानपुर), कैंट (लखनऊ), जैदपुर (बाराबंकी), मानिकपुर (चित्रकूट), बलहा (बहराइच), प्रतापगढ़, जलालपुर (अंबेडकरनगर), हमीरपुर।

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