नया विवाद: राज्यपाल बोले, दिल्ली की सुनता तो लोन जम्मू कश्मीर का सीएम होता; फिर दी सफाई
राज्य विधानसभा भंग होने के बाद सियासी जंग और बढ़ गई है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान से अब एक नया विवाद खड़ा हो गया है।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। राज्य विधानसभा भंग होने के बाद सियासी जंग और बढ़ गई है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान से अब एक नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्यपाल ने ग्वालियर में कहा कि अगर मैं दिल्ली की सुनता तो सज्जाद गनी लोन जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री होता। बेईमान होने का दाग न लगे, इसलिए मैंने विधानसभा को भंग कर दिया।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और कांग्रेस ने राज्यपाल के इस बयान पर दिल्ली सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि इस पूरे प्रकरण में जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने की दिल्ली की साजिश उजागर हो गई है। विवाद बढ़ता देख राजभवन की ओर से मंगलवार शाम एक बयान जारी कर कहा गया कि दिल्ली के दबाव में नहीं, राज्यपाल ने निष्पक्ष रहते हुए विधानसभा को भंग किया है। इससे पहले सुबह जम्मू में एक कार्यक्रम में राज्यपाल ने इतना जरूर कहा कि तबादले का डर बना रहता है, पता नहीं कब तबादला हो जाए।
विधानसभा के भंग करने पर उठा सवाल
राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 21 नवंबर को बीते पांच माह से निलंबित राज्य विधानसभा को भंग कर दिया था। उन्होंने यह कदम पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती द्वारा कांग्रेस व नेकां के समर्थन और पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन द्वारा भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने के पेश किए गए दावों के तुरंत बाद उठाया था। इससे राज्य में एक नयी सियासी बहस और विवाद शुरू हो गया है। राज्यपाल पर आरोप लग रहा है कि उन्होंने भाजपा की सरकार न बनते देख ही विधानसभा को भंग किया है।
बेईमान के तौर पर याद नहीं किया जाना चाहता
ग्वालियर में गत दिनों एक विश्वविद्यालय के समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि मैं नहीं चाहता था कि मुझे इतिहास के पन्नों में एक बेईमान व्यक्ति के तौर पर याद किया जाए। जब सरकार बनाने के दावे पेश किए जाने की बात हो रही थी, अगर उस समय मैं दिल्ली में फोन कर राय मांगता तो वह मुझे सज्जाद लोन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने को कह सकते थे। इसलिए मैंने दिल्ली की सलाह नहीं ली और जो सही लगा वही किया।
सत्यपाल मलिक ने कहा कि सज्जाद गनी लोन ने सरकार बनाने का जो पत्र भेजा था, वह मेरे निजी सहायक के नाम पर नहीं था। उन्होंने यह पत्र पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा के पीए को भेजा था। इसी तरह महबूबा किसी को मेरे पास भेजकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती थीं। सोशल मीडिया पर सरकारें नहीं बनतीं। कश्मीर मसले के समाधान में युवाओं की भूमिका का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने कहा कि इसे फारूक, अब्दुल्ला, मुफ्ती या हुर्रियत नहीं बल्कि कश्मीरी नौजवान ही हल कर सकता है।
राजभवन ने दी सफाई
विवाद बढ़ता देख राजभवन ने मंगलवार शाम एक बयान जारी कर कहा कि राज्यपाल ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। विधानसभा को भंग करने का फैसला राज्यपाल ने निष्पक्ष रहते हुए अपनी सूझबूझ से लिया है। उनपर केंद्र के हस्तक्षेप का कोई दबाव नहीं था। कुछ न्यूज चैनल राज्यपाल के बयान की अपने तरीके से गलत व्याख्या कर उसे पेश कर रहे हैं और यह साबित करना चाहते हैं कि उनपर केंद्र सरकार का दबाव था। राज्यपाल ने ऐसा कुछ नहीं कहा है और न ही उनपर किसी तरह का दबाव था।
दिल्ली की तरफ न देखने पर राज्यपाल को मुबारकबाद : उमर
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर 'हैंडल पर लिखा, दिल्ली की तरफ न देखने और न दिल्ली का निर्देश लेने के लिए राज्यपाल सत्यपाल मलिक को मेरी मुबारकबाद। मुझे नहीं पता कि आखिर क्या हुआ जो राज्यपाल ने ग्वालियर में इतना बड़ा खुलासा किया है। हमें तो सिर्फ यही मालूम है कि भाजपा और उसके एजेंट विधायकों की खरीद, धन के इस्तेमाल और दल-बदल को यकीनी बनाकर अपनी सरकार बनाने के लिए हताश थे। हमें यह भी नहीं मालूम था कि एक राजनीतिक पृष्ठभूमि वाला राज्यपाल केंद्र के खिलाफ भी जा सकता है।
अच्छा लगा राज्यपाल ने दिल्ली का हुक्म मानने से इन्कार किया : महबूबा
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया में लिखा, 'फैक्स मशीन का मुद्दा छोड़ दीजिए, लेकिन यह जानकर अच्छा लगा कि राज्यपाल ने दिल्ली का हुक्म मानने से इन्कार कर दिया। राज्य में लोकतंत्र के इतिहास को देखते हुए यह एक एतिहासिक फैसला है।
बिल्ली थैले से बाहर आ गई : जीए मीर
प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीए मीर ने कहा, 'अब तो बिल्ली थैले से बाहर आ गई है। राज्यपाल ने हमारे उस दावे को सही ठहराया है कि केंद्र सज्जाद गनी लोन को जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बनाना चाहता था। सिर्फ पीडीपी को नेकां व कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने से रोकने के लिए ही राज्यपाल को यह कदम उठाना पड़ा है। संविधान के मुताबिक, राज्यपाल को महबूबा मुफ्ती को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना था, लेकिन केंद्र से ऐसा न करने का दबाव था और उन्होंने विधानसभा भंग करने का गैर संवैधानिक कदम उठाया। मलिक का बार-बार बयान बदलना राज्यपाल की प्रतिष्ठा को ही नुकसान पहुंचाना है।
'राज्यपाल का यह कहना कि अगर वह दिल्ली की सलाह लेते तो सज्जाद अहमद लोन की सरकार बनानी पड़ती। यह बहुत गंभीर बात है। इस पर दिल्ली को जवाब देना चाहिए। इस पूरे प्रकरण में जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने की दिल्ली की साजिश उजागर हो गई है।
-देवेंद्र सिंह राणा, नेकां के प्रांतीय अध्यक्ष