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जानिए- कैसे रणदीप सुरजेवाला के नहले पर कैप्टन अजय सिंह यादव ने मारा दहला

रणदीप सुरजेवाला ने घर पहुंचते ही कहा कि ‘कप्तान साहब चिरंजीव राव ने तो आपका नाम ही पीछे छोड़ दिया।’। इस पर कप्तान कहां चूकने वाले थे।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 11:10 AM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 11:10 AM (IST)
जानिए- कैसे रणदीप सुरजेवाला के नहले पर कैप्टन अजय सिंह यादव ने मारा दहला

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। अपने सवालों से आए दिन विरोधियों की घेराबंदी करने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला हास-परिहास से जुड़े एक मामले में अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता कप्तान अजय सिंह यादव से गच्चा खा गए। यह अलग बात है कि गच्चा खाकर भी सुरजेवाला के चेहरे पर मुस्कान थी। हालांकि मौका कप्तान की वयोवृद्ध मां शांति देवी के निधन पर शोक प्रकट करने का था, मगर बात कुछ ऐसी हुई कि शोक के अवसर पर भी लोग ठहाका मारकर हंस पड़े। दरअसल, जब सुरजेवाला कप्तान के घर पहुंचे तो बाहर उनके विधायक बेटे चिरंजीव राव के नाम के साइन बोर्ड ही अधिक लगे दिख रहे थे। सुरजेवाला ने घर पहुंचते ही कहा कि, ‘कप्तान साहब, चिरंजीव राव ने तो आपका नाम ही पीछे छोड़ दिया।’। इस पर कप्तान कहां चूकने वाले थे। तपाक से बोले-आपने भी तो राजनीति में अपने भी तो पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला काे पीछे छोड़ दिया।

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चंदे के हिसाब का है खास अंदाज

सेक्टर एक वाले इंजीनियर नेता (सतीश खोला) भी अपनी कार्यप्रणाली को लेकर अक्सर चर्चा में रहते हैं। कोरोना महामारी के बाद लोगों ने दिल खोलकर सरकार, प्रशासन व रेडक्रास सोसायटी के खजाने में पैसा जमा करवाया। खोला कई दिन लोगों से कहते रहे कि प्रशासन को चंदे का हिसाब देना चाहिए, मगर हिसाब देने वाले से सीधे हिसाब मांगने की हिम्मत नहीं हुई। उधेड़बुन में फंसे खोला ने एक दिन सोशल मीडिया पर एक पोस्ट कर दी, जिसमें लिख दिया कि कोरोना संकट में मेहनत के साथ अच्छे प्रबंध करने वाले जिला प्रशासन को अब इस दौरान मिले चंदे का हिसाब भी सार्वजनिक कर देना चाहिए। इससे प्रशासन का लोगों में सम्मान बढ़ेगा, मगर जल्दी ही यह पोस्ट गायब हो गई। लोगों को चंदे का हिसाब मांगने का खोला का यह खास अंदाज खूब भाया, मगर केवल एक दिन हिसाब मांगकर चुप्पी साधना समझ नहीं आ रहा है।

राव इंद्रजीत सिंह ने चिपका दी ऑक्सीजन ट्यूब

मनोहर की पहली पारी में जब कोसली के तत्कालीन विधायक बिक्रम सिंह ठेकेदार राव इंद्रजीत की कृपा से मंत्री बने थे, तब हर तरफ उनके भाग्य की चर्चा थी। उनका पहले ही प्रयास में भाजपा जैसी पार्टी से टिकट पाना, पहली ही बार राव बिरेंद्र सिंह के मंझले बेटे को उनके गढ़ कोसली में हराकर विधायक बनना, भाजपा लहर में पहली बार जीतकर मंत्री पद मिलना...। सब सपने जैसा था। किसी ने उन्हें भाग्यवान कहा तो किसी ने भाग्य वाले नेताजी। चौपालों पर हर कोई यह कह रहा था कि भई भाग्य हो तो बिक्रम सिंह जैसा, मगर भाग्य रूठना शुरू हुआ तो बिक्रम हाशिए पर चले गए। राजनीति की बारीकी समझने वाले कह रहे हैं कि यह भाग्य का नहीं राव का खेल है। जिस ट्यूब से राजनीति में ताकतवर रहने की आक्सीजन आ रही थी, उसको राव ने पिचका दिया। अब बिक्रम में दम हो तो खोल ले आक्सीजन ट्यूब।

थैली संभालकर रखते हैं ओपी यादव

मनोहर की दूसरी पारी में जिन विधायकों की गिनती भाग्यशाली में होती है, उनमें से एक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री ओमप्रकाश यादव भी है। मंत्री बनने की चर्चा बेशक पूर्व आइएएस राव अभय सिंह के नाम की थी, मगर राव इंद्रजीत की कृपा कुछ ऐसी हुई कि आइएएस पीछे रह गए और अपने एडीओ साहब आगे आ गए। नए-नए मंत्री बने तो सामाजिक संस्थाओं में भी उन्हें बुलाने की होड़ रही। एक जगह पर जब ओपी यादव ने अपने गुरु राव इंद्रजीत सिंह की मौजूदगी में एक संस्था को 21 लाख रुपये देने की घोषणा की तो गुरु राव ने मुस्कराकर नसीहत दी कि पैसा कई जगह देना होता है। जरा संभलकर। नसीहत का असर हुआ। ओपी अाजकल पैसे वाली थैली जरा संभालकर रखते हैं। घोषणा करते समय थोड़ा सा सावधान रहते हैं। लॉकडाउन में उन्हें यह फायदा हुआ है कि खजाना अधिक खाली नहीं करना पड़ रहा है।


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