पढ़िए- आखिर क्यों चर्चा में हैं देश की जानी मानी इतिहासकार, JNU से हो सकती है छुट्टी
जेएनयू से 87 वर्षीय इतिहासकार प्रोफेसर एमेरिटस रोमिला थापर की विदाई हो सकती है। जेएनयू के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इनका एमेरिटस स्टेट्स खत्म हो सकता है।
नई दिल्ली, जेएनएन। देश की जानी-मानी और प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (jawahar lal nehru university) प्रशासन ने सीवी मांगा था। उनसे सीवी इसलिए मांगा जा रहा है ताकि विचार किया जा सके कि JNU में उनकी सेवाएं एमेरिटा प्रोफेसर के रूप में जारी की जाएं या नहीं। उधर, बताया जा रहा है कि इससे नाराज रोमिला थापर ने सीवी देने से इनकार कर दिया है।
बता दें कि ऐसी स्थिति में जेएनयू से 87 वर्षीय इतिहासकार प्रोफेसर एमेरिटस रोमिला थापर की विदाई हो सकती है। जेएनयू के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इनका एमेरिटस स्टेट्स खत्म हो सकता है, क्योंकि, जेएनयू की अकादमिक परिषद (एसी) और कार्यकारी परिषद (इसी) में इस प्रोफेसरशिप के नियमों में कुछ बदलाव किए गए हैं। वहीं, जेएनयू शिक्षक संघ ने कहा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन रोमिला थापर की सेवाओं को खत्म करना चाहता है। रोमिला थापर को पत्र लिखकर उनके अकादमिक रिकॉर्ड का मूल्यांकन करने के लिए सीवी मांगा गया है।
जेएनयू प्रशासन ने रविवार देर शाम को बयान जारी कर कहा है कि जेएनयू के अधिनियम 32 के तहत प्रोफेसर एमेरिटस को नियुक्त करने की ऑथोरिटी जेएनयू की कार्यकारी परिषद को है। इसमें 75 वर्ष तक की आयु के सभी प्रोफेसर को एमेरिटस का स्वास्थ्य स्टेटस, उनकी उपलब्धता जैसे कई चीजों में परखा जाता है। इसके लिए एक सब कमेटी ऐसे प्रोफेसर का रिव्यू करती है। इसी नियम के तहत पत्र लिखा गया है। यह एक प्रक्रिया है जिसे एमआइटी और प्रिंसटन विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थान भी अपने यहां लागू करते हैं।
रोमिला थापर 1993 से जेएनयू में बतौर एमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर सेवाएं दे रही हैं, जबकि इससे पहले वह तकरीबन दो दशकों तक जेएनयू में ही प्रोफेसर रही हैं। जेएनयू रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार की ओर से बीते माह रोमिला थापर को इस संबंध में पत्र भेजा गया है। पत्र में यह भी कहा गया है कि जेएनयू प्रशासन ने उनके कामों के मूल्यांकन के लिए एक समिति गठित करने का फैसला लिया है। यह समिति इस पर अपनी रिपोर्ट देगी, उसके आधार पर उनकी सेवाओं को जारी रखने या नहीं रखने के बारे में कोई निर्णय लिया जाएगा।
समर्थन में आया जेएनयू शिक्षक संघ
जेएनयू शिक्षक संघ इस मामले में रोमिला थापर के समर्थन में आ गया है। उन्होंने इसे राजनीति के तहत अपमानित करने का आरोप लगाया। संघ के अध्यक्ष अतुल सूद और सचिव अविनाश ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन को इस मामले में रोमिला से माफी मांगने की वह मांग करते हैं। शिक्षक संघ ने दावा करते हुए कहा कि एमेरिटस प्रोफेसर के लिए रोमिला थापर का मनोयन एक सम्मान है, जो जीवन भर के लिए उन्हें जेएनयू के निर्माण में उनकी सेवाओं के बदले दिया गया है। शिक्षक संघ ने आरोप लगाते हुए कहा की 23 अगस्त 2018 को कार्यकारी परिषद के बैठक के स्वीकृत प्रस्ताव में यह फैसला लिया गया था कि 75 वर्ष की आयु के पार जाने के बाद एमेरिटस प्रोफेसर का अनुभव व अन्य चीजों का मूल्यांकन किया जाएगा। उनके स्वास्थ्य , उपलब्धता जैसी चीजों को परखा जाएगा , जिससे इस पद पर अन्य योग्य लोगों को भी शामिल किया जा सके। हमने इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताई थी।
क्या होता है एमेरिटस प्रोफेसर
किसी संकाय की ओर से प्रस्तावित सेवानिवृत्त ख्याति प्राप्त व्यक्तियों नामों को कार्यकारी परिषद (ईसी) और अकादमिक परिषद (एसी) की मंजूरी के बाद एमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर मनोनीत किया जाता है। ये शोधार्थियों को पढ़ाने के साथ ही उन्हें सुपरवाइज कर सकते हैं, लेकिन विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें कोई वित्तीय लाभ नहीं दिया जाता है।
जासं, नई दिल्ली: जेएनयू छात्र संघ में तीसरा मोर्चा बनने की संभावना धूमिल हो गई है। एनएसयूआइ, राजद छात्र संगठन व बापसा ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है, क्योंकि इन तीनों के बीच अंत समय तक गठबंधन को लेकर बातचीत किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी। इन छात्र दलों से जुड़े लोगों ने बताया कि इसके बाद तीनों ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। छात्र राजद के नेता जयंत जिग्यांशु ने निराशा जताते हुए कहा कि वे लोग गठबंधन के पक्ष में थे। वह इसके लिए अध्यक्ष का पद छोड़ने को तैयार थे। वहीं, बापसा को अध्यक्ष पद और एनएसयूआइ को उपाध्यक्ष देने की बात थी, पर बात नहीं बनी। वहीं, गठबंधन न हो पाने का ठिकरा राजद छात्र संगठन व बापसा पर फोड़ते हुए एनएसयूआइ के जेएनयू प्रभारी सन्नी मेहता ने कहा कि ये दोनों शुरू से ही गठबंधन नहीं चाह रहे थे।
रोमिला थापर का प्रोफाइल
रोमिला थापर वामपंथी इतिहासकार हैं तथा इनके अध्ययन का मुख्य विषय ‘प्राचीन भारतीय इतिहास’ रहा है। इनका जन्म 30 नवंबर 1931 को लखनऊ में हुआ था। इस समय वह दिल्ली में रह रही हैं। पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज से एएल बशम के मार्गदर्शन में 1958 में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की। रोमिला थापर ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में प्रोफेसर के पद पर कार्य किया। इससे पहले वह रीडर के पद पर डीयू और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएं दे चुकी हैं। अभी वह जेएनयू में प्रोफेसर एमेरिटस के पद पर हैं। उन्होंने द पास्ट बिफोर अस : हिस्टोरिकल ट्रेडिशंस ऑफ अर्ली नार्थ इंडिया, द आर्यन : रिका¨स्टग कंस्ट्रक्टस, अर्ली इंडिया, ए हिस्ट्री ऑफ इंडिया और अशोका एंड द डिक्लाइन ऑफ द मौर्याज इनकी लिखी हुई पुस्तकें हैं। हाल ही में ‘सोमनाथ मंदिर’ के इतिहास पर लेख लिखा है। रोमिला कॉर्नेल विवि, पेन्सिलवेनिया विवि और पेरिस में कॉलेज डी फ्रांस में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। वह 1983 में भारतीय इतिहास कांग्रेस की जनरल प्रेसिडेंट और 1999 में ब्रिटिश अकादमी की कॉरेस्पों¨डग फेलो चुनी गई थीं। क्लूज पुरस्कार (द अमेरिकन नोबेल) पाने के साथ उन्हें दो बार पद्म विभूषण की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।