West Bengal : केंद्र का कोई भी फैसला ममता को रास नहीं आ रहा, सीएए के बाद अब एनपीआर पर रार
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का कोई भी फैसला तृणमूल प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को रास नहीं आ रहा है।
कोलकाता, जेएनएन। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का कोई भी फैसला तृणमूल प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को रास नहीं आ रहा है। केंद्र सरकार ने तय किया है कि असम को छोड़कर देश भर में 2020 में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) अपडेट किया जाएगा, लेकिन इसके पहले ही ममता सरकार ने इस पर काम रोक दिया है। इस मामले पर सभी संबंधित विभागों को ममता सरकार ने विधिवत सकरुलर जारी कर दिया है।
ध्यान रहे कि एनपीआर देश के सभी सामान्य निवासियों का दस्तावेज है और नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत स्थानीय, परगना, जिला, राज्य और देश स्तर पर इसे तैयार किया जाता है। कोई भी निवासी जो पिछले छह माह या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में निवास करता है या अगले छह माह तक वहां निवास करने की इच्छा रखता है उसे एनपीआर में अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराना होता है। फिर सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ममता को इस फैसले से परेशानी क्या है? वह भी तब जब न तो किसी से कोई दस्तावेज मांगा जा रहा है और न ही इससे किसी की कोई क्षति होने वाली है।
नागरिकों की यह गिनती तो देश की व्यवस्था चलाने के लिए जरूरी भी है। इससे भविष्य की योजनाओं को क्रियान्वित करने में सहूलियत ही मिलनी है। इससे सबसे ज्यादा लाभ देश के गरीबों-वंचितों को मिलता है। अब अप्रैल से सितंबर, 2020 के बीच देश भर में घरों की गिनती के दौरान एनपीआर के लिए डाटा भी एकत्रित किए जाएंगे, लेकिन ममता के विरोध के चलते बंगाल इससे अछूता रहेगा।
हद यह कि पश्चिम बंगाल में जनगणना का भी काम ठप है। देश के गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को कहा भी ‘यदि एनपीआर को लेकर कोई आशंका होती तो राज्य सरकारें अधिसूचना क्यों जारी करतीं।’ उन्होंने कहा कि ‘राज्य सरकारों को इस पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। किसी भी नागरिक को कोई दस्तावेज या जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।’ वहीं तृणमूल ने एनपीआर को लेकर साफ कहा है कि सरकार जनता को बेवकूफ बना रही है। क्योंकि एनआरसी से पहले का कदम एनपीआर है। ऐसे में रार होना तय है।
लगता यही है कि ममता कोई भी समर्थन या विरोध नीतिगत नहीं, बल्कि राजनीतिक गोल को लक्ष्य कर करती हैं। तभी तो नोटबंदी, जीएसटी, एनआरसी, सीएए समेत हर मुद्दे के विरोध में मुखर रहीं। सीएए पर तो लगातार उन्होंने रैली और सभाएं की हैं। इसके लिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से जनमत संग्रह कराने तक की बेजा मांग कर डाली। वे सरकारी खर्चे पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विज्ञापन दे रही थीं।
अच्छा हुआ कि हाईकोर्ट ने त्वरित सुनवाई करते हुए उस पर रोक लगाई। अब एनपीआर उनके लिए नया मुद्दा है। इसको लेकर शुरू में वह असमंजस में थीं और तैयारी भी शुरू कीं, लेकिन मोदी सरकार के विरोध को और तेज हवा देने के लिए उन्होंने एनपीआर का काम रोक दिया। दरअसल वह बंगाल ही नहीं पूरे देश में मोदी विरोध में खुद को सबसे आगे साबित करना चाहती हैं। एनपीआर अपडेट किया जाएगा, लेकिन ममता सरकार ने इस पर काम रोक दिया है। लगता है वह मोदी विरोध में खुद को सबसे आगे साबित करना चाहती हैं।