CBI Investigation: जानें, महाराष्ट्र सरकार ने क्यों वापस ली सीबीआइ जांच की सामान्य सहमति, किसने क्या कहा
CBI Investigation अनिल देशमुख का कहना है कि सीबीआइ जैसी किसी संस्था का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इसे सुनिश्चित करने के लिए ही हमें दिल्ली पुलिस स्पेशल स्टेब्लिशमेंट एक्ट के ही नियमानुसार यह फैसला किया है।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। CBI Investigation: फर्जी टीआरपी केस की जांच भी कहीं सुशांत सिंह राजपूत मामले की राह पर ना चली जाए, इसलिए महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने सीबीआइ के लिए दी गई सामान्य सहमति (जनरल कंसेंट) वापस ले ली है। इस बात को वीरवार को राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने खुलकर स्वीकार भी किया।महाराष्ट्र सीबीआइ जांच की सामान्य सहमति वापस लेने वाला चौथा राज्य बन गया है। इससे पहले राजस्थान, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ये सहमति वापस ले चुके हैं। बुधवार को हुए इस निर्णय के बाद प्रेस से बात करते हुए राज्य के गृहमंत्री देशमुख ने कहा कि सीबीआइ अपनी जांच पूरे पेशेवर तरीके से करती है। इस संगठन पर राजनीतिक लाभ के लिए दबाव बनाया जाना कतई उचित नहीं है। इसलिए हमें सामान्य सहमति की वापसी का निर्णय करना पड़ा है।
देशमुख के अनुसार, ऐसी अफवाह थी कि टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) मामले का भी राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश हो रही है। इस मामले की जांच मुंबई पुलिस कर रही है। लेकिन ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश में भी दर्ज हुआ है। ऐसी कोशिश हो सकती है कि फर्जी टीआरपी से जुड़े सभी मामले उठाकर सीबीआइ को दे दिए जाएं। अनिल देशमुख का कहना है कि सीबीआइ जैसी किसी संस्था का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इसे सुनिश्चित करने के लिए ही हमें दिल्ली पुलिस स्पेशल स्टेब्लिशमेंट एक्ट के ही नियमानुसार, यह फैसला किया है। देशमुख के अनुसार, दिल्ली पुलिस विशेष संस्थापन अधिनियम, 1946 की धारा छह में ही यह अधिकार दिया गया है कि इस संस्था (सीबीआइ) का कोई सदस्य बिना राज्य की अनुमति के इसका उपयोग उस राज्य में नहीं कर सकता। इसी आधार पर राजस्थान, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल यह सहमति पहले ही वापस ले चुके हैं।
शिव सेना नेता संजय राउत का भी कहना है कि सीबीआइ जैसी केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग गैर भाजपा शासित प्रदेशों की छवि खराब करने के लिए किया जा रहा है, इसलिए महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार को यह सीबीआइ जांच की सामान्य सहमति वापस लेने का फैसला करना पड़ा है। राउत के अनुसार, जब सीबीआइ, प्रवर्तन निदेशालय, राष्ट्रीय महिला आयोग जैसी संस्थाएं, जिनके पास जांच करने का कुछ अधिकार है, जब गैर भाजपा शासित प्रदेशों को बदनाम करने का काम करने लगें, तो ऐसे निर्णय करने पड़ते हैं। ऐसा पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश व अन्य कई राज्यों के साथ हो चुका है।
सुशांत मामले की ओर इशारा करते हुए राउत कहते हैं कि पिछले कुछ महीनों में महाराष्ट्र के साथ ऐसा हो चुका है कि महाराष्ट्र पुलिस ने किसी मामले में जांच शुरू की, फिर एफआइआर किसी और राज्य में हो गई, फिर अचानक सीबीआइ उसमें प्रकट हो गई। हमारा धैर्य जवाब दे चुका है। जब महाराष्ट्र की पुलिस किसी मामले में निष्कर्ष पर पहुंचने वाली थी, उसी समय सीबीआइ किसी और राज्य में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर उस मामले की जांच अपने हाथ में लेने आ जाती है। ऐसा कब तक चलेगा ? महाराष्ट्र का भी अपना सम्मान है।