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Maharashtra: जानिए, अजीत पवार ने एनसीपी से क्यों की बगावत और भाजपा से जा मिले

Ajit Pawar. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले अजीत पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शरद पवार के बाद दूसरे नंबर के नेता समझे जाते थे।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 26 Nov 2019 07:49 PM (IST)Updated: Tue, 26 Nov 2019 10:10 PM (IST)
Maharashtra: जानिए, अजीत पवार ने एनसीपी से क्यों की बगावत और भाजपा से जा मिले
Maharashtra: जानिए, अजीत पवार ने एनसीपी से क्यों की बगावत और भाजपा से जा मिले

मुंबई, ओम प्रकाश तिवारी। Ajit Pawar. गत 22 नवंबर की देर शाम तक राकांपा-कांग्रेस-शिवसेना की वाईबी चव्हाण सेंटर में चल रही बैठक का अहम हिस्सा रहे अजीत पवार ने कब राजभवन जाकर राकांपा विधायकों के समर्थन की चिट्ठी राज्यपाल को सौंप दी, किसी को पता ही नहीं चला। वह चिट्ठी मिलने के बाद ही राज्यपाल ने महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेजी। सुबह 5.47 पर राष्ट्रपति शासन हटा और आठ बजे देवेंद्र फड़णवीस मुख्यमंत्री पद की और अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेते नजर आ रहे थे।

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विधानसभा चुनाव से पहले अजीत पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शरद पवार के बाद दूसरे नंबर के नेता समझे जाते थे। टिकट के बंटवारे से लेकर प्रचार अभियान तक उन्हीं का बोलबाला रहता था। चुनकर आए ज्यादातर राकांपा विधायकों को टिकट अजीत पवार की सहमति से ही मिले थे।

जब शिवसेना-कांग्रेस-राकांपा की मिलीजुली सरकार बनाने की बात चली तो ‘दादा’ के नाम से मशहूर अजीत पवार कम से कम ढाई साल का मुख्यमंत्री पद राकांपा के लिए चाह रहे थे। क्योंकि राकांपा की सीट संख्या शिवसेना से मात्र दो कम है। लेकिन शरद पवार ने बैठक से बाहर निकलकर स्पष्ट घोषणा कर दी कि महाविकास आघाड़ी की सरकार में मुख्यमंत्री पद के लिए उद्धव ठाकरे के नाम पर सहमति बन गई है। मुख्यमंत्री पद तो दूर की बात, उपमुख्यमंत्री पद के लिए भी अजीत पवार को कोई संभावना नजर नहीं आ रही थी। तब उन्होंने पार्टी से बगावत करने की सोची।

उन्हें उम्मीद थी कि जिन विधायकों को टिकट देने और जिताने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई है, कम से कम वे तो उनका साथ देंगे। ऐसे विधायकों की संख्या चुनकर आए दो तिहाई विधायकों के लगभग थी। बाकी बचे विधायक बाद में साथ आ सकते थे। लेकिन अजीत पवार के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए उनके चाचा शरद पवार जिस तरह राकांपा विधायकों को संभालने में जुटे, उससे अजीत पवार की उम्मीदों पर पानी फिर गया।

वह जो सब्जबाग दिखाकर भाजपा के साथ आए थे, उन पर भी खरे नहीं उतरे। उन्होंने शपथ तो देवेंद्र फड़नवीस के साथ ली। लेकिन उनके साथ मंत्रालय जाकर कार्यभार नहीं संभाल सके। एक विदेशी प्रतिनिधिमंडल की बैठक में भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के बगल में रखी उनकी उपमुख्यमंत्री की कुर्सी खाली ही रही।

शपथ लेने के बाद से उनके साथ उनका समर्थक एक भी विधायक किसी मौके पर उनके साथ नहीं दिखा। सोमवार शाम ग्रैंड हयात होटल में हुए कांग्रेस-राकांपा-शिवसेना के शक्ति प्रदर्शन में अपने समर्थक विधायकों को देख उनका हौसला पहले ही पस्त हो चुका था। मंगलवार की सुबह जब सर्वोच्च न्यायालय ने खुले मतदान के जरिए बहुमत सिद्ध करने का फरमान जारी किया, तो रहा-सहा हौसला भी टूट गया। क्योंकि उनका समर्थक कोई विधायक खुलकर शरद पवार के विरुद्ध जाने की हिमाकत नहीं कर सकता था। इसके बाद ही उन्होंने मुख्यमंत्री निवास जाकर उपमुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को सौंप दिया। उनके इस्तीफे से हतबल मुख्यमंत्री फड़णवीस को भी एक घंटे बाद ही अपने त्यागपत्र की घोषणा करनी पड़ी।

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