जमात-ए-इस्लाम पर कसा शिकंजा, पीडीपी को द. कश्मीर में मजबूत करने में रही अहम भूमिका
कश्मीर के कट्टरपंथी अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी (जेके) पर प्रतिबंध के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने शिकंजा कसा लिया लेकिन सियासी दल इसे सियासत चमकाने के अवसर तौर पर देख रहे हैं।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। कश्मीर के कट्टरपंथी अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी (जेके) पर प्रतिबंध के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने शुक्रवार को शिकंजा और कस लिया लेकिन कश्मीर के सियासी दल इसे सियासत चमकाने के बड़े अवसर के तौर पर देख रहे हैं। अलगाववादियों के सुर में सुर मिलाती रही पीडीपी तो इस अवसर को भुनाने में जुटी ही है, कभी जमात की कट्टर विरोधी रही नेशनल कांफ्रेंस प्रतिबंध के खिलाफ खड़ी दिखी। इसके अलावा जमात के समर्थन से अपनी सियासत चमकाने वाले कई दलों के दर्जनभर से अधिक नेताओं को अपनी राह तय करनी है। यही नेता मुख्यधारा के सियासी दलों में शामिल हो जमात का एजेंडा आगे बढ़ाते रहे हैं।
कट्टरपंथी सियासत के साथ-साथ आतंकवादी संगठनों के लिए अधिकतर कैडर जमात से ही आ रहा था। सूत्रों की मानें तो आतंकी संगठनों से यही गठजोड़ जमात पर प्रतिबंध का प्रमुख कारण ही बना। आतंकी संगठनों की तरह ही कश्मीर में मुख्यधारा से लेकर अलगाववादी सियासत तक जमात का कैडर घुसपैठ कर चुका था। कभी जमात नेकां की एकमात्र सियासी दुश्मन थी और दोनों के समर्थकों में कई बार टकराव भी हुआ। बाद में जमायत उनके संगठन में भी घुसपैठ करने में सफल रही। पीडीपी को जमायत के परोक्ष समर्थन सदैव चर्चा में रहा है। दक्षिण कश्मीर में पीडीपी का कब्जा जमाने में जमात के कैडर ने खास मदद की। यही स्थिति उत्तरी कश्मीर के चार से छह विधानसभा क्षेत्रों में हैं। इसका ही परिणाम है कि इन सीटों पर बीते दो दशक में नेकां अपनी जीत का परचम लहराने में नाकाम रही है।
अलगाववादी खेमे के सियासी दलों में काफी कैडर और कई प्रमुख नेता जमात-ए-इस्लामी से जुड़े रहे हैं या फिर जमात के आशीर्वाद से सियासत को आगे बढ़ाते रहे। यासीन मलिक, शौकत बख्शी, शकील बख्खी, शब्बीर शाह, मुख्तार वाजा, कट्टरपंथी सईद अली शाह गिलानी, नईम खान, मोहम्मद अशरफ सहराई, मसर्रत आलम, शाहिद उल इस्लाम समेत सभी प्रमुख नेता जमाती रह चुके हैं। जमात 1990 के बाद चुनाव में नहीं उतरी पर उसका अपना सियासी एजेंडा रहा। वर्ष 2002 और उसके बाद हुए चुनावों में जमात ने कभी भी स्पष्ट रुप से चुनाव बहिष्कार का एलान नहीं किया।
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ डॉ. अजय चुरंगु के मुताबिक, जमात अलगाववादी से लेकर मुख्यधारा की सियासत में काफी जगह बना चुकी है। शुरुआत में मजहबी गतिविधियों और सामाजिक कार्यों के आधार पर सियासत और प्रशासन में अपनी पैठ मजबूत बनाई। वह एक समय कश्मीर में नेकां के वर्चस्व को चुनौती देने वाला एकमात्र संगठन था। जमात का राजनीतिक एजेंडा रहा है। यह सभी जानते हैं। वह चुनावी सियासत में हिस्सा लेती रही है और जब उसे लगा कि वह अपने झंडे के साथ चुनावी सियासत में पूरी तरह कामयाब नहीं होगी तो उसने विभिन्न राजनीतिक दलों में अपनी पैठ बनाई। जमात पर प्रतिबंध आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान नेकां, पीडीपी, पीडीएफ, एआइपी जैसे दलों का बड़ा मुद्दा होगा। सभी इस प्रतिबंध को हटाने का यकीन दिलाते हुए वोट मांगेंगे।
आतंकी संगठनों से सीधा नाता
जमायत-ए-इस्लामी की आतंकी हिंसा में भूमिका को लेकर बहस हो सकती है, लेकिन कश्मीर में अलगाववाद व अलगाववाद की नींव पर खड़ी मुख्यधारा की सियासत में उसकी भूमिका से नहीं नकार सकता। जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध का आभास एक सप्ताह पहले ही मिल गया था। सामान्य तौर पर कहा जा सकता है कि आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का बड़ा कैडर जमात से किसी न किसी तरह जुड़ा रहा है। लश्कर, जैश, अल उमर, अल-बदर, हरकत, जेकेएलएफ समेत कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों का अधिकांश स्थानीय कैडर जमात की पृष्ठभूमि रखता है।
जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध से बौखलाहट
जमात ए इस्लामी कश्मीर पर केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए प्रतिबंध को लेकर स्थानीय राजनीतिक दल सहमत नहीं हैं। सभी इसे रियासत में लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए कह रहे हैं कि इससे हालात सुधरेंगे नहीं बल्कि बिगड़ेंगे। केंद्र को अपना फैसला वापस लेना चाहिए। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन, नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर सहित अन्य नेताओं ने प्रतिबंध पर एतराज जताया है।
गौरतलब है कि वीरवार रात केंद्र सरकार ने जमात ए इस्लामी को जम्मू कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर पांच साल के लिए प्रतिबंधित करने का फैसला किया है।
लोकतंत्र विचारों की लड़ाई : महबूबा
महबूबा मुफ्ती ने ट्वीटर पर लिखा है कि केंद्र सरकार क्यों जमात ए इस्लामी से असहज महसूस करती है। नफरत और अशांति फैलाने वाले अतिवादी हिंदू समूहों को माहौल खराब करने की छूट दी जा रही है, लेकिन कश्मीरियों के लिए दिन रात काम करने वाले संगठन को प्रतिबंधित कर दिया है। क्या भाजपा विरोधी होना राष्ट्र विरोधी है? एक अन्य ट्वीट में महबूबा ने कहा कि लोकतंत्र तो विचारों की लड़ाई है।
मैं प्रतिबंध को हटाने का समर्थन करता हूं : सज्जाद लोन
सज्जाद गनी लोन ने भी जमात पर प्रतिबंध का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि जमात पर प्रतिबंध क्यों? इस संगठन ने हमें कई योग्य, दूरदर्शी नेता व विधायक दिए हैं। इस संगठन को कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है। मैं प्रतिबंध को हटाने का समर्थन करता हूं।
जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी अनुचित : अली मोहम्मद सागर
नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी अनुचित है। किसी विचारधारा को आप लोगों को जेलों में बंद कर समाप्त नहीं कर सकते। किसी भी विचारधारा का मुकाबला विचारधारा और तर्क से ही किया जा सकता है।
पाबंदी लोकतंत्र की भावना के खिलाफ : गुलाम हसन
डेमोक्रेटिक पार्टी नेशनलिस्ट (डीपीएन) के चेयरमैन व पूर्व कृषि मंत्री गुलाम हसन मीर ने कहा कि यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। जमात ए इस्लामी की राजनीतिक विचारधारा बेशक रियासत की बहुसंख्यक आबादी की विचारधारा से अलग हो, लेकिन उसका यह मतलब नहीं कि उस पर पाबंदी लगाई जाए।
कश्मीर में इससे शांति बहाल नहीं होगी : हकीम मोहम्मद यासीन
पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के चेयरमैन हकीम मोहम्मद यासीन ने कहा कि प्रतिबंध औचित्यहीन है। इससे कश्मीर में शांति बहाल नहीं होगी। आप लोगों को बंद कर सकते हैं,उनकी सोच को नहीं। जमात पर पाबंदी और उसके नेताओं व कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को आप जायज नहीं ठहरा सकते।
समाज में अच्छा संदेश नहीं जाएगा : तारीगामी
माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता मोहम्मद यूसुफ तारीगामी ने कहा कि जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध लोकतंत्र के खिलाफ है। इसका समाज में कोई अच्छा संदेश नहीं जाएगा। बेशक हमारे भी जमात के साथ वैचारिक मतभेद हैं, लेकिन पाबंदी राजनीति से प्रेरित है। पहले भी जमात पर पाबंदी लगाई जा चुकी है। उसका फायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हुआ है।
राजनीतिक कारणों से प्रतिबंध लगाया गया : हाजी मोहम्मद
कश्मीर इकोनामिक एलांयस के चेयरमैन हाजी मोहम्मद यासीन खान ने कहा कि जमायत ए इस्लामी एक मजहबी और सामाजिक संगठन है। इस पर राजनीतिक कारणों से प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि यह आरएसएस के खिलाफ है। केंद्र को अपना यह फैसला वापस लेना चाहिए।