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MP में BJP के पास ब्राह्मण नेताओं का टोटा, किसी की प्रदेशव्यापी छवि नहीं तो कोई सर्वमान्य नहीं

मध्यप्रदेश कैबिनेट में छह ब्राह्मण मंत्री है।लेकिन जानकारों का मानना है कि इनमें से किसी की न तो प्रदेशव्यापी छवि है न ही कोई सर्वमान्य है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 07 Feb 2018 06:48 PM (IST)Updated: Thu, 08 Feb 2018 09:16 AM (IST)
MP में BJP के पास ब्राह्मण नेताओं का टोटा, किसी की प्रदेशव्यापी छवि नहीं तो कोई सर्वमान्य नहीं
MP में BJP के पास ब्राह्मण नेताओं का टोटा, किसी की प्रदेशव्यापी छवि नहीं तो कोई सर्वमान्य नहीं

भोपाल,[धनंजय प्रताप सिंह] । भारतीय जनता पार्टी इन दिनों मध्यप्रदेश में ब्राह्मण नेताओं की कमी से जूझ रही है। पार्टी के पास पहले पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, पूर्व कैबिनेट मंत्री अनूप मिश्रा, लक्ष्मीकांत शर्मा और पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा जैसे प्रदेशव्यापी पहचान रखने वाले ब्राह्मण वर्ग के सर्वमान्य नेता थे, जो अब बुजुर्गीयत और हाशिए पर पहुंच जाने से निष्क्रिय हो गए हैं। सरकार में भी छह ब्राह्मण मंत्री हैं, लेकिन ब्राह्मण वर्ग का सर्वमान्य नेता कोई नहीं बन पाया। अब संगठन और सरकार दोनों में ही कोई कद्दावर ब्राह्मण नेता नहीं बचा है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव सामने हैं, जिसकी तैयारी के लिए अब पार्टी चाहती है कि इस कमी को पूरा किया जाए।

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प्रदेश भाजपा में लंबे समय से जातीय और भौगोलिक असंतुलन बना हुआ है।उपचुनाव को देखकर पार्टी ने पिछड़ा वर्ग की नाराजगी दूर करने के लिए तीन विधायकों को मंत्री बना दिया, जबकि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से आते हैं। क्षत्रिय वर्ग से प्रदेश में नरेंद्रसिंह तोमर, नंदकुमार सिंह चौहान और कप्तान सिंह सोलंकी, भूपेंद्र सिंह जैसे धाकड़ नाम शामिल हैं, लेकिन ब्राह्मण वर्ग में बड़े नेताओं का टोटा है। पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी प्रदेश में भाजपा के आधार स्तंभ माने जाते थे। 2014 तक वे भोपाल के सांसद रहे। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष रहने के साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी वे कई पदों पर रहे। 2003 में उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए ही भाजपा सत्ता में आई थी पर अब वे सक्रिय नहीं हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे के निधन के बाद केंद्र में प्रदेश का ब्राह्मण प्रतिनिधित्व खत्म हो गया है।

हाशिए पर अनूप-लक्ष्मीकांत

2013 से पहले तक अनूप मिश्रा और लक्ष्मीकांत शर्मा प्रदेश सरकार में मंत्री होने के साथ ही ब्राह्मण वर्ग में खासी पैठ रखा करते थे, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद से अनूप मिश्रा प्रदेश की राजनीति से दूर हो गए। अब वे सांसद जरूर हैं, लेकिन प्रदेश में कम सक्रिय हैं। व्यापमं घोटाले में नाम आने और जेल जाने के बाद लक्ष्मीकांत शर्मा स्वयं ही भाजपा की सक्रिय राजनीति से दूर हो गए। शर्मा की ब्राह्मण वर्ग में खासी पैठ हुआ करती थी। ब्राह्मण नेता रघुनंदन शर्मा से भी भाजपा संगठन ने दूरी बना रखी है। प्रभात झा मप्र भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे, अब राज्यसभा सदस्य हैं पर बिहार का मूल निवासी होने के कारण वे ब्राह्मण वर्ग में जनाधार वाले नेता नहीं बन पाए। पिछली विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष रहे चौधरी राकेशसिंह चतुर्वेदी को भाजपा ने शामिल जरूर किया पर उनका उपयोग नहीं किया।

छह मंत्री में कोई नहीं बन पाया ब्राह्मण चेहरा

शिवराज कैबिनेट में भी देखा जाए तो छह ब्राह्मण मंत्री हैं। जिनमें गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, अर्चना चिटनिस, राजेंद्र शुक्ल, दीपक जोशी, संजय पाठक शामिल हैं। भाजपा के नेता कहते हैं कि भार्गव पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं पिछले डेढ़ दशक से मंत्री हैं पर वे बुंदेलखंड से बाहर नहीं निकल पाए। नरोत्तम मिश्रा उत्तरप्रदेश और गुजरात चुनाव में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर पद-कद बढ़ाने के दावेदार बने हुए हैं। उनके केंद्रीय स्तर पर भी मधुर संबंध हैं। राजेंद्र शुक्ल ने भी स्वयं को सिर्फ विंध्य की राजनीति तक समेटा हुआ है। अर्चना चिटनिस पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बृजमोहन मिश्र की बेटी हैं। लंबे समय से मंत्री हैं। मालवा-निमाड़ के साथ पूरे प्रदेश में पहचान बनाने में सक्रिय हैं। बावजूद इसके कैबिनेट का कोई भी ऐसा सर्वमान्य चेहरा नहीं, जिसे ब्राह्मण वर्ग का प्रतिनिधि माना जाए।

'जातिगत राजनीति नहीं करती भाजपा'

भाजपा योग्यता के आधार पर नेतृत्व का हमेशा स्वागत करती है। जातिगत राजनीति में भाजपा की कभी रुचि नहीं रही और न ही ये देशहित में है। यही कारण है कि भाजपा में सभी वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। आगे भी यही दृष्टिकोण प्रदेशहित में रहेगा-  डॉ. विनय सहस्रबुद्धे, प्रदेश प्रभारी महासचिव, भाजपा

कर्मचारियों को साधने की कोशिश

राज्य के खजाने की खस्ता हालत के बावजूद सरकार चुनावी साल में कर्मचारियों को साधने के लिए खजाने का मुंह खोलने से पीछे नहीं हटेगी। अध्यापकों को वेतनमान देने के बाद पंचायत सचिवों को छठवां वेतनमान देकर सरकार ने इसके संकेत भी दे दिए हैं। मंत्रालयीन अधिकारी-कर्मचारी, लिपिक वर्ग, वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी, संविदा कर्मचारी, अतिथि विद्वान सहित अन्य कर्मचारियों की मांगों के समाधान पर मंथन तेज हो गया है। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी जमावट शुरू कर दी है। इसके तहत एक-एक कर सभी नाराज वर्गों को सरकार के पाले में लाने की रणनीति पर मुख्यमंत्री सचिवालय काम कर रहा है।

कृषि विस्तार अधिकारियों को फायदा तय

सूत्रों का कहना है कि कृषि कर्मण पुरस्कार हो या फिर भावांतर भुगतान योजना, इनके सफल क्रियान्वयन में विभागीय कर्मचारियों का बड़ा योगदान रहा है। वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी लंबे समय से वेतन विसंगति को दूर करने की मांग उठा रहे हैं। इन्होंने सरकार को एक बार फिर आंदोलन जैसे कदम उठाने की चेतावनी पिछले पखवाड़े दी थी, लेकिन उच्च स्तरीय चर्चा के बाद आगे बढ़ते कदम को थाम लिया। बताया जा रहा है कि इन्हें सर्वेयर के समान वेतन देने पर सहमति बन गई है।

संविदा का कोटा हो सकता है तय

करीब ढाई लाख संविदा कर्मचारी इन दिनों नियमितीकरण की मांग को लेकर आंदोलित हैं। मुख्यमंत्री के साथ दो दौर की चर्चा हो चुकी है पर निर्णय अभी नहीं हुआ है। बताया जा रहा है कि इनके लिए रिक्त पदों की भर्ती में अनुभव के आधार पर कोटा तय हो सकता है। अतिथि विद्वानों को भी इसी तरह संविदा शिक्षक की भर्ती में 25 प्रतिशत का कोटा दिया गया है। मंत्रालयीन कर्मचारियों को साधने के लिए अनुभाग अधिकारी और निज सचिवों की वेतन विसंगति के साथ लिपिक वर्ग की समस्याओं को दूर करने का भरोसा मुख्यमंत्री स्वयं दिला चुके हैं।

सत्ता विरोधी लहर की चिंता

सूत्रों के मुताबिक सरकार ने एक फार्मूला तय कर लिया है कि सत्ता विरोधी लहर को हवा नहीं देने दी जाएगी। यही वजह है कि जो वर्ग नाराज हैं, उन्हें मनाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। दरअसल, सरकार में बैठे लोगों का यह मानना है कि यदि कर्मचारी वर्ग नाराज होता है और सरकार की मुखालफत करता है तो उसकी जड़ में जाकर समस्या को दूर किया जाए। इसमें खजाना कहीं आड़े नहीं आने दिया जाएगा। इसको लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं वित्त मंत्री जयंत मलैया और अपर मुख्य सचिव वित्त एपी श्रीवास्तव के सीधे संपर्क में हैं।

इस मुद्दे पर राज्य कर्मचारी कल्याण समित के अध्यक्ष रमेश चंद्र शर्मा ने सीधी बात की। 

सवाल- चुनाव नजदीक आते ही सरकार को कर्मचारियों की चिंता सताने लगी?

जवाब- हमारे यहां दुर्भाग्य से हर छह माह में चुनाव होते हैं। ऐसा होता तो कर्मचारियों को सातवां वेतनमान इतने पहले से क्यों देते। दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का नियमितीकरण, आकस्मिकता निधि के कर्मचारियों को समयमान-वेतनमान, अध्यापकों को वेतनमान, क्रमोन्न्ति जैसे फैसले तो काफी पहले लिए गए हैं।

सवाल- अध्यापक और पंचायत सचिवों को लेकर फैसले तो अभी हुए पर मांगें काफी पुरानी हैं।

जवाब- अध्यापकों को छठवां वेतनमान काफी पहले दिया जा चुका है। पंचायत सचिवों को सिर्फ वेतनमान अभी दिया है। अनुकंपा नियुक्ति का फैसला तो पहले हो गया था, बस लाभ दिए जाने की तारीख में बदलाव हुआ है।

सवाल- संविदा कर्मचारी, अतिथि विद्वान नाराज चल रहे हैं।

जवाब- संविदा कर्मचारियों को लेकर भी मुख्यमंत्री से चर्चा हुई है। अलग वेतन सुविधा, रिक्त पदों के ऊपर कोटा हो जाए, इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। अतिथि विद्वानों को अनुभव के आधार पर 25 प्रतिशत पदों का कोटा भर्ती में दे रहे हैं।

सवाल- सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने पर विचार हो रहा है?

जवाब- कई कर्मचारी संगठनों के सुझाव आते हैं। इस बारे में भी आया था। हमने उसे आगे बढ़ा दिया है। वैसे भी पदोन्न्ति के पद खाली होते जा रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो अनुभवी लोग मिल जाएंगे।

साथ में वैभव श्रीधर 


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