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Bihar Assembly Elections 2020 : पूर्वी चंपारण के गोविंदगंज विधानसभा सीट पर दल नहीं शख्सियत का रहा है महत्व

Bihar Assembly Elections 2020 पूर्वी चंपारण के गोविंदगंज विधानसभा सीट से गैर ब्राह्मण विधायक बनने का श्रेय राय हरिशंकर शर्मा व योगेंद्र पांडेय के नाम।1985 में विधायक रमाशंकर पांडेय को निर्दलीय योगेंद्र पांडेय ने किया था परास्त।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sat, 26 Sep 2020 09:56 PM (IST)Updated: Sat, 26 Sep 2020 09:56 PM (IST)
Bihar Assembly Elections 2020 : पूर्वी चंपारण के गोविंदगंज विधानसभा सीट पर दल नहीं शख्सियत का रहा है महत्व
रमाशंकर पांडेय को किसान नेता योगेंद्र पांडेय ने बिना किसी बैनर निर्दलीय हरा दिया।

पूर्वी चंपारण, अनिल तिवारी। गंडक और नारायणी की गोद में बसी पूर्वी चंपारण की गोविंदगंज विधानसभा सीट। यहां दल नहीं, शख्सियत मायने रखती है। नदी के छाडऩ पाकर यहां के खेत ही नहीं, राजनीतिक जमीन भी उर्वर बनती रही है। देश में गणतांत्रिक व्यवस्था लागू होने के साथ ही गोविंदगंज क्षेत्र अस्तित्व में आया। इसे मोतिहारी का पहला सांसद देने का भी गौरव हासिल है। यहीं के मंगुराहा निवासी पं. विभूति मिश्रा 1952 में सांसद और कांग्रेस के ही शिवधारी पांडेय विधायक हुए। तब से दो मौकों (1969 और 1985) को छोड़ दें तो दल कोई हो विधायक सिर्फ ब्राह्मण ही हुए। गैर ब्राह्मण विधायक बनने का श्रेय राय हरिशंकर शर्मा और योगेंद्र पांडेय के नाम रहा। ये उस दौर में भी हावी रहे, जब दलों और विचारों के आगे शख्सियतों की आवाज दब जाया करती थी।

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व्यक्तित्व के आगे फीका पड़ गया था कांग्रेस का प्रभाव

यहां जातिगत चेहरे की खूब पहचान रही। तभी तो बार-बार लडऩे के बावजूद कांग्रेस नेता जयप्रकाश पांडेय विधायकी का ख्वाब देखते रह गए। वर्ष 1985 में भी विधायक रमाशंकर पांडेय को किसान नेता योगेंद्र पांडेय ने बिना किसी बैनर निर्दलीय हरा दिया। माना जाता है कि यहीं से चेहरे और शख्सियतों की राजनीति शुरू हुई थी। योगेंद्र पांडेय के राजनीतिक कद को देख लालू प्रसाद ने उन्हेंं अपने पाले में ले लिया। मंत्रिमंडल में जगह दे लघु सिंचाई मंत्री भी बना दिया।

जेल में रहते हुए देवेंद्र दुबे व राजन तिवारी की हुई थी जीत

इस दौर में गोविंदगंज के टिकुलिया में देवेंद्र नाथ दुबे का कद बढ़ चुका था। लोग उन्हेंं गरीबों के लिए हमदर्द और अमीरों के लिए दर्द के चश्मे से देखते हैं। वर्ष 1995 के चुनाव में जेल से ही समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर योगेंद्र पांडेय को हरा दिया। 1998 में लोकसभा चुनाव के दौरान देवेंद्र नाथ की हत्या हो गई। तब इसी सीट पर उपचुनाव में उनके बड़े भाई भूपेंद्र नाथ दुबे को जीत मिली।

एक बार फिर यहां की धरती पर एक शख्सियत का प्रभाव बढ़ रहा था। महज दो साल बाद वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में जेल में बंद दबंग राजन तिवारी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भूपेंद्र दुबे को परास्त कर दिया। इस बीच भूपेंद्र की पत्नी मीना द्विवेदी ने क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। वर्ष 2005 में लोजपा के हो चुके राजन को हरा दिया। यह क्रम साल 2010 में भी रहा। उस साल राजन के बड़े भाई राजू तिवारी राजद के समर्थन से लोजपा उम्मीदवार थे। वर्ष 2015 में जदयू-कांग्रेस-राजद में गठबंधन के कारण मीना द्विवेदी का टिकट कट गया और उनकी जगह कांग्रेस ने ब्रजेश पांडेय को उम्मीदवार बनाया, लेकिन लोजपा के राजू तिवारी के मुकाबले टिक नहीं सके। 


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