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जम्मू-कश्मीरः बढ़ते दबाव से झुका हुर्रियत, केंद्र से बातचीत को तैयार Kashmir News

Hurriyat Conference. ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने केंद्र से फिर वार्ता की प्रक्रिया शुरू करने की अपील की है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Fri, 21 Jun 2019 04:31 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jun 2019 04:31 PM (IST)
जम्मू-कश्मीरः बढ़ते दबाव से झुका हुर्रियत, केंद्र से बातचीत को तैयार Kashmir News
जम्मू-कश्मीरः बढ़ते दबाव से झुका हुर्रियत, केंद्र से बातचीत को तैयार Kashmir News

जम्मू, नवीन नवाज। सुरक्षा एजेंसियों का बढ़ता शिकंजा कहें या‍ फिर कश्‍मीर में खिसकती जमीन का भय, हुर्रियत नेता फिर से केंद्र से कश्‍मीर में नई बातचीत शुरू करने की वकालत करने लगे हैं। ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने श्रीनगर में एक कार्यक्रम में केंद्र से फिर वार्ता की प्रक्रिया शुरू करने की अपील की है। मीरवाइज ने कहा कि केंद्र सरकार को बड़ा जनादेश मिला है और ऐसे में कश्‍मीर मसले के समाधान के लिए सभी पक्षों से बात करनी चाहिए। साथ ही, उन्‍होंने जोड़ा कि ऐसे किसी भी सकारात्‍मक प्रयास का हुर्रियत समर्थन करेगी। मीरवाइज का यह रुख कश्मीर की सियासत और हालात में आ रहे एक बड़े बदलाव का संकेत कर रहा है। बताया जा रहा है कि हुर्रियत के अन्‍य धड़ों में भी इस पर चर्चा आरंभ हो चुकी है।

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उनके मुताबिक, कश्‍मीर के मसले पर तुरंत समाधान खोजने की आवश्‍यकता है और 70 साल से जारी असमंजस की स्थिति समाप्‍त होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि हम शांतिपूर्वक हल के पक्ष में हैं। कश्मीर में स्थानीय युवाओं के आतंकी संगठनों से जुड़ने की घटनाओं पर उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ राज्य सरकार के लिए बल्कि रजिस्टेंस लीडरशिप (अलगाववादी संगठनों) के लिए भी एक बड़ी चुनाैती है। हालांकि वह अपना बचाव करते हुए कहते हैं कि हुर्रियत दो ध्रुवों के बीच एक बफर या पुल का काम करती रही है। लेकिन हुर्रियत नेताओं और उनकी सियासी गतिविधियों पर पाबंदी ने इसे भी समाप्त कर दिया है।

श्रीनगर में एक सेमिनार में उन्‍होंने कहा कि केंद्र सरकार को बातचीत शुरू करनी चाहिए और उसके बाद पाकिस्‍तान और भारत भी दोस्‍ती की राह पर आगे बढ़ें। मीरवाइज ने कहा कि नई दिल्ली को कश्मीर में मुख्यधारा से विमुख वर्गाें के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने के साथ ही पाकिस्तान के साथ भी संवाद बहाल करना होगा। इसी तरह की एक प्रक्रिया पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भी हुई थी।

आतंकी संगठनों पर उनका रुख साफ करता है कि कश्मीर की मुख्यधारा की सियासत, प्रशासन और आम लोगों के जनजीवन को अपनी अंगुलियों पर नचाने में समर्थ कहलाने वाला अलगाववादी खेमा इस समय अत्यंत दबाव में है। केंद्र सरकार नियमित कड़े कदम उठा रही है और पुलवामा के बाद हालात तेजी से बदले हैं। ऐसे में अलगाववादी खेमे के नेताओं के लिए खेमा बचाने से कहीं ज्यादा खुद को बचाने का दबाव ज्यादा है।

भारत-पाकिस्तान पर कश्मीर को 1947 में बांटने और इसे संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का आरोप लगाने वाले मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने कहा कि कश्मीर मसला एक कड़वी सच्चाई है, कोई इसे नहीं झुठला सकता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काे इंसानियत और अमन के वास्ते कश्मीर मसले को हमेशा के लिए हल करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। हुर्रियत हमेशा बातचीत के लिए तैयार है। हमने पहले भी नई दिल्ली से बातचीत की है। साथ ही, उनकी चिंता भी साफ झलकती है। वह कहते हैं कि आज दिल्‍ली सरकार कश्मीर की रजिस्टेंस लीडरशिप को ही समाप्त करने पर तुली है, हुर्रियत नेताओं को जेलों में डाला जा रहा है।

उन्होंने रोजाना होने वाली मुठभेड़ों का जिक्र करते हुए कहा कि इससे बड़ी पीड़ा और दुख क्या होगा कि हमें रोजाना अपने बच्चों के जनाजे को कंधा देना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि हम हर जगह शांतिपूर्ण तरीकों और बातचीत के जरिए कश्मीर मसले के हल पर जोर देते रहे हैं। अगर युवा बंदूक उठा रहे हैं तो हमारी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा है। हम चाहते हैं कि सभी मौतें बंद हों।

हुर्रियत चेयरमैन के इस वक्‍तव्‍य को कश्मीर में बदलते हालात से जोड़ा जा रहा है। एक और केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कस रहा है और दूसरी ओर अलकायदा और आइएसजेके की विचारधारा पांव पसारने की साजिश रच रहे हैं। उससे मीरवाइज मौलवी उमर फारूक या कट्टरंपथी सईद अली शाह गिलानी जैसे अलगाववादियों की पकड़ कमजोर होती जा रही है। इसी माह ईद से पूर्व अल-कायदा व आइएसआइएस के नारे लगाने वाले युवकों ने मीरवाईज का भाषण रोक दिया था। कश्‍मीर में हुर्रियत नेतृत्व पर अब सवाल उठ रहा है। इसके अलावा बीते कुछ सालों के दौरान हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के धड़ों पर शिकंजा कस रहा है। इस दौरान हुर्रियत नेता केवल पाकिस्‍तान का मुंह अधिक ताकते दिखे। वर्ष 2008,वर्ष 2009, वर्ष 2010 और उसके बाद वर्ष 2016 में कश्मीर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान अलगाववादी खेमा लोगों की भावनाओं के उबाल के सहारे अपने एजेंडे काे आगे बढ़ाता नजर आया। अब यह उबाल ठंडा हो रहा है और उसके साथ उनकी सियासत भी।

कश्‍मीर मामलों के विशेषज्ञ बताते हैं कि मीरवाईज मौलवी उमर फारूक और हुर्रियत के अन्‍य धड़े अब समझने लगे हैं कि अगर दिल्ली से बातचीत का पुल जल्द तैयार नहीं हुआ तो कश्मीर में उनकी सियासी दुकान पर ताला जल्‍द लगने वाला है। नई दिल्ली इसकी शुरुआत कर चुकी है और स्थिति हाथ से निकलने में देर नहीं लगेगी। तब संभव है उनके भड़काऊ भाषणों से तैयार हुए जिहादी ही उनकी दुकान में आग भी लगा देंगे। यही कारण है कि जो मीरवाईज पहले जम्मू-कश्मीर के लोगों समेत पाकिस्‍तान समेत सभी संबधित पक्षों के बीच बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण तरीके से लोकतांत्रिक हल का नारा देते थे, अब उन्‍हें लोगों की उम्‍मीदों का ख्‍याल आ रहा है। वह कहते हैं कि हमारा मकसद जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाओं और उम्मीदों को ध्यान में रखते हुए कश्मीर मसले का हल निकालना है। उनकी एक ही मंशा है कि जेलों में बंद अलगाववादी किसी तरह बाहर निकलें, केंद्र बातचीत का संकेत दे और वह खुद को हाशिए पर जाने से बचा सकें।

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