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Rajasthan Political Crisis: राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र को हटाने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर

Rajasthan Political Crisis राजस्थान हाईकोर्ट में राज्यपाल कलराज मिश्र को हटाने को लेकर एडवोकेट शांतनु पारीक ने याचिका दायर की है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 10:50 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 10:50 PM (IST)
Rajasthan Political Crisis: राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र को हटाने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर
Rajasthan Political Crisis: राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र को हटाने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर

जागरण संवाददाता, जयपुर। Rajasthan Political Crisis: राजस्थान विधानसभा का सत्र बुलाए जाने को लेकर राज्यपाल कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच खींचतान चल रही है। इसी बीच, राजस्थान हाईकोर्ट में राज्यपाल कलराज मिश्र को हटाने को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई है। एडवोकेट शांतनु पारीक की ओर से दायर की गई इस याचिका में मिश्र को राज्यपाल पद से हटाने की गुहार लगाई गई है। मामला मंत्रिमंडल का प्रस्ताव भेजे जाने के बावजूद राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र बुलाने की अनुमति नहीं देने को लेकर है। याचिका में राज्यपाल पर संवैधानिक सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।

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याचिकाकर्ता ने इसे सुप्रीम कोर्ट के नबाम रेबिया केस फैसले का उल्लंघन बताया है। इस मामले में केंद्र सरकार को भी पक्षकार बनाया गया है। एडवोकेट पारीक का कहना है कि संविधान लागू होने के बाद यह पहली बार हुआ है, जब किसी राज्यपाल ने मंत्रिमंडल की सलाह न मानकर सत्र बुलाने से इनकार कर दिया हो।

जानें, क्या है नबम रेबिया केस

नबम रेबिया केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साल 2016 में अरुणाचल प्रदेश में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि राज्यपाल सिर्फ मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करेंगे। उस समय रेबिया ही अरुणाचल प्रदेश के स्पीकर थे। उन्होंने राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि राज्यपाल के पास यह भरोसा करने के कारण है कि मंत्रिपरिषद सदन का विश्वास खो चुकी है तो फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया जा सकता है। 

गहलोत सरकार का प्रस्ताव दो बार लौटाने के बाद अब राज्यपाल बोले, 21 दिन का नोटिस जरूरी

राजस्थान में पिछले 18 दिनों से चल रहे सियासी संग्राम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर अशोक गहलोत सरकार और राजभवन के बीच पिछले पांच दिन से चल रहा टकराव सोमवार को भी जारी रहा। हालांकि दो बार गहलोत सरकार को प्रस्ताव लौटाने के बाद शाम को राज्यपाल कलराज मिश्र दो शर्तों के साथ विधानसभा सत्र बुलाने की अनुमति देने को राजी हो गए हैं। उन्होंने सरकार के समक्ष दो शर्तें रखी और दो सवाल भी पूछे। राज्यपाल ने विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर कहा कि इसके लिए संवैधानिक तौर-तरीकों का पालन किया जाना चाहिए। राजभवन की तरफ जारी बयान में कहा गया कि राज्यपाल सत्र बुलाने पर सहमत हैं, लेकिन संवैधानिक तौर तरीकों के अनुसार विधानसभा का सत्र बुलाया जाना चाहिए। संवैधानिक प्रावधानों के अनुकूल सत्र बुलाया जाना चाहिए। राज्य सरकार ने 31 जुलाई से विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव भेजा है।

राजभवन के बयान में कहा गयाकि कैबिनेट के प्रस्ताव पर राज्यपाल ने कानूनी सलाह ली । संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के अंतर्गत राज्यपाल साधारण परिस्थितियों में कैबिनेट की सलाह पर काम करेंगे, लेकिन परिस्थितियां विशेष हों तो वह यह सुनिश्चित करेंगे कि संविधान की भावना के अनुरूप काम हो। राज्यपाल का कहना है कि मीडिया में राज्य सरकार के बयान से यह स्पष्ट हो रहा है कि राज्य सरकार विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव लाना चाहती है। लेकिन सत्र बुलाने के प्रस्ताव में इसका कोई उल्लेख नहीं है, यदि राज्य सरकार विश्वास मत हासिल करना चाहती है तो यह अल्प अवधि में सत्र बुलाए जाने का युक्तियुक्त आधार बन सकता है । जानकारी के अनुसार राज्यपाल द्वारा उठाए गए मुद्दों का जवाब गहलोत सरकार शीघ्र ही देगी ।

विश्वास मत हासिल करने की कोशिश हो तो उसकी लाइव प्रसारण हो

राजभवन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि चूंकि परिस्थितियां असाधारण हैं, इसलिए राज्य सरकार को खास बिंदुओं पर कार्य करने की सलाह दी जाती है। इसमें पहला कि विधानसभा का सत्र 21 दिन का क्लीयर नोटिस देकर बुलाया जाए, जिससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत प्राप्त मौलिक अधिकारों के अनुसार सभी को अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिले । दूसरा यह कि यदि किसी परिस्थिति में विश्वासमत हासिल करने की विधानसभा सत्र में कोशिश की जाती है तो सभी प्रक्रिया संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की उपस्थिति में की जाए, पूरी प्रक्रिया का दौरान लाइव प्रसारण होना चाहिए। विश्वासमत लिया जाता है तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का ध्यान रखा जाए। राज्यपाल ने पूछा कि विधानसभा सत्र के दौरान क्या ऐसी व्यवस्था है, जिसमें 200 विधायक, 1000 से अधिक अधिकारी-कर्मचारी एक साथ एकत्रित हो सकें जिसमें संक्रमण का डर न हो। राज्य विधानसभा में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए इतने लोगों के बैठने की व्यवस्था नहीं है, जबकि संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम और केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। राज्यपाल ने कहा है कि इन नियमों का पालन करते हुए विधानसभा का सत्र बुलाया जाना चाहिए ।

कांग्रेस ने कहा, जरूरी पड़ी तो राष्ट्रपति के पास जाएंगे

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे ने सोमवार शाम मीडिया से बात करते हुए कहा कि राज्यपाल की सद्धबुद्धि के लिए  प्रार्थना सभा की गई । उन्होंने कहा कि सरकार कोरोना सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विधानसभा में विचार करना चाहती है । लेकिन इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि बहुमत वाली सरकार सत्र बुलाना चाहती है और राज्यपाल उसके अड़चने पैदा कर रहे हैं । राज्यपाल रोजाना सदन बुलाने में बाधा डाल रहे हैं । पांडे ने बागी कांग्रेस विधायकों की चर्चा करते हुए कहा कि अगर वे आलाकमान से माफी मांग ले,या अपनी शिकायतों को रखते हैं तो उन्हे फिर सम्मान दिया जा सकता है । उन्होंने कहा राज्यपाल अगर सत्र बुलाने की अनुमति नहीं देंगे तो 102 विधायक राष्ट्रपति के पास जाएंगे । सोमवार सुबह 102 विधायकों का वीडियो राष्ट्रपति और राज्यपाल को भेजा गया । प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि राज्यपाल अपने पद की गरिमा गिरा रहे हैं । वे पूछ रहे हैं कौनसे गेट से आओगे,कौनसे कपड़े पहनोगे यह राज्यपाल का काम नहीं है । सदन की व्यवस्था करने का काम स्पीकर का है । उन्होंने कहा कि राज्यपाल अब 21 दिन के नोटिस पर सत्र बुलाने की बात कह रहे हैं,जबकि इनके ही कार्यकाल में पहले चार बार 10 दिन के नोटिस पर सत्र बुलाए जा चुके हैं ।

पहले प्रस्ताव ठुकरा दिया था

उल्लेखनीय है कि सरकार की कैबिनेट ने 31 जुलाई को विधानसभा का सत्र बुलाने का प्रस्ताव भेजा है। इससे पहले राज्यपाल ने मंत्रिमंडल के प्रस्ताव को दो बार मंजूरी नहीं दी। राज्यपाल ने ये कहते हुए सत्र का प्रस्ताव खारिज किया था कि जो सवाल पूछे गए थे, उनका जवाब नहीं दिया गया है।


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