बिहार विधानमंडल का मानसून सत्र आज से, सरकार को घेरने के बदले आपस में ही हिसाब करने में लगा विपक्ष
बिहार विधानमंडल का मानसून सत्र आज से शुरू हो रहा है। इसमें सबसे बड़ी बात ये देखने को मिल रही है कि विपक्ष सत्ता पक्ष को घेरेगा क्या? वह आपस में ही हिसाब-किताब करने में जुटा है।
By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 27 Jun 2019 05:38 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jun 2019 10:34 AM (IST)
पटना [राज्य ब्यूरो]। बिहार विधानमंडल के मानसून सत्र में सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास ढेर सारे मुद्दे हैं। ये मुद्दे उठाए भी जाएंगे। लेकिन विपक्ष कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव की पराजय की पीड़ा में भी डूबा है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव महीने भर से गायब हैं। तेजस्वी की यह स्थिति मुख्य विपक्षी दल को आक्रमण के बदले बचाव की मुद्रा अपनाने के लिए मजबूर कर सकती है।
विपक्ष सरकार को घेरने के बदले आपस में ही हिसाब करने में लगा है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि विपक्ष की धार कमजोर दिख रही है। लोकसभा चुनाव का परिणाम विपक्ष की दूसरी बड़ी पार्टी कांग्रेस की भूमिका को भी प्रभावित करेगी।
सबसे बड़ा सवाल है कि क्या विपक्ष एकजुट होकर सरकार की नीतियों की आलोचना कर पाएगा? कांग्रेस ने तय किया है कि वह सरकार पर हमले के साथ अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश भी करेगी। मतलब यह कि कांग्रेस विपक्ष का एजेंडा तय करेगी। अपेक्षा करेगी कि राजद और भाकपा माले के सदस्य उसका साथ दे। सदन में विपक्ष के नाम पर यही तीन दल बचे हुए हैं।
रालोसपा के दोनों विधायक इस सत्र में सत्तारूढ़ जदयू सदस्यों की कतार में बैठेंगे। कांग्रेस की यह प्रवृति सरकार से अधिक मुख्य विपक्षी दल राजद के लिए परेशानी पैदा करने वाली साबित हो सकती है। यह सरकार के बदले राजद के सामने चुनौती पेश करने वाली स्थिति है।
राजद के भीतर भी तेजस्वी के नेतृत्व के प्रति पहले वाली आस्था कमजोर हुई है। चुनाव की पराजय ने राजद विधायकों के मन में संदेह पैदा किया है-तेजस्वी विरासत में नेता तो बन सकते हैं लेकिन, उनमें लालू प्रसाद की तरह जनता में असर पैदा करने लायक अपील नहीं है। नेतृत्व के प्रति यह संदेह राजद विधायकों को सरकार पर आक्रमण करने से रोकेगा। इस विधानसभा में हंगामा करने के बाद सदन की कार्यवाही से बाहर निकल जाना ही राजद की विशेषज्ञता रही है।
यह तरीका विपक्ष के बदले सरकार के लिए लाभप्रद है। क्योंकि विपक्ष की गैर-हाजिरी में सरकार का कामकाज आसान हो जाता है। विपक्ष की एक राय यह बन रही है कि भागने के बदले सदन में रूक कर सरकार का विरोध किया जाए। यह आसान नहीं होता है। इसके लिए अध्ययन और समन्वय के स्तर पर बड़ी तैयारी करनी होती है, जो विपक्ष भूल चुका है।
फिलहाल, मानसून सत्र में सरकार से अधिक तेजस्वी की भूमिका को लेकर उत्सुकता है। विपक्ष के विधायकों के मन में ही यह सवाल उठ रहा है कि आखिर विपक्ष के नेता अपनी लंबी गैर-हाजिरी की भरपाई किस करामात से करेंगे।
विपक्ष के लिए मुश्किल यह है कि सत्र लंबा है। एक महीने के सत्र में कुल 21 बैठकें प्रस्तावित हैं। लोकसभा चुनाव के चलते पूरा बजट पेश नहीं किया गया था। एक अप्रैल से 31 जुलाई तक के खर्च के लिए लेखानुदान पेश किया गया था।
मानसून सत्र में वित्तीय वर्ष की शेष अवधि के लिए प्रस्ताव आएगा। दर्जन भर बड़ी मांग के लिए बहस होनी है। इसके अलावा अल्पसूचित और तारांकित सवाल हैं। शून्यकाल है। सूखा, बीमारी और अपराध पर विशेष बहस की गुंजाइश है। यानी विपक्ष के पास ढेरों काम है।
विपक्ष सरकार को घेरने के बदले आपस में ही हिसाब करने में लगा है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि विपक्ष की धार कमजोर दिख रही है। लोकसभा चुनाव का परिणाम विपक्ष की दूसरी बड़ी पार्टी कांग्रेस की भूमिका को भी प्रभावित करेगी।
सबसे बड़ा सवाल है कि क्या विपक्ष एकजुट होकर सरकार की नीतियों की आलोचना कर पाएगा? कांग्रेस ने तय किया है कि वह सरकार पर हमले के साथ अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश भी करेगी। मतलब यह कि कांग्रेस विपक्ष का एजेंडा तय करेगी। अपेक्षा करेगी कि राजद और भाकपा माले के सदस्य उसका साथ दे। सदन में विपक्ष के नाम पर यही तीन दल बचे हुए हैं।
रालोसपा के दोनों विधायक इस सत्र में सत्तारूढ़ जदयू सदस्यों की कतार में बैठेंगे। कांग्रेस की यह प्रवृति सरकार से अधिक मुख्य विपक्षी दल राजद के लिए परेशानी पैदा करने वाली साबित हो सकती है। यह सरकार के बदले राजद के सामने चुनौती पेश करने वाली स्थिति है।
राजद के भीतर भी तेजस्वी के नेतृत्व के प्रति पहले वाली आस्था कमजोर हुई है। चुनाव की पराजय ने राजद विधायकों के मन में संदेह पैदा किया है-तेजस्वी विरासत में नेता तो बन सकते हैं लेकिन, उनमें लालू प्रसाद की तरह जनता में असर पैदा करने लायक अपील नहीं है। नेतृत्व के प्रति यह संदेह राजद विधायकों को सरकार पर आक्रमण करने से रोकेगा। इस विधानसभा में हंगामा करने के बाद सदन की कार्यवाही से बाहर निकल जाना ही राजद की विशेषज्ञता रही है।
यह तरीका विपक्ष के बदले सरकार के लिए लाभप्रद है। क्योंकि विपक्ष की गैर-हाजिरी में सरकार का कामकाज आसान हो जाता है। विपक्ष की एक राय यह बन रही है कि भागने के बदले सदन में रूक कर सरकार का विरोध किया जाए। यह आसान नहीं होता है। इसके लिए अध्ययन और समन्वय के स्तर पर बड़ी तैयारी करनी होती है, जो विपक्ष भूल चुका है।
फिलहाल, मानसून सत्र में सरकार से अधिक तेजस्वी की भूमिका को लेकर उत्सुकता है। विपक्ष के विधायकों के मन में ही यह सवाल उठ रहा है कि आखिर विपक्ष के नेता अपनी लंबी गैर-हाजिरी की भरपाई किस करामात से करेंगे।
विपक्ष के लिए मुश्किल यह है कि सत्र लंबा है। एक महीने के सत्र में कुल 21 बैठकें प्रस्तावित हैं। लोकसभा चुनाव के चलते पूरा बजट पेश नहीं किया गया था। एक अप्रैल से 31 जुलाई तक के खर्च के लिए लेखानुदान पेश किया गया था।
मानसून सत्र में वित्तीय वर्ष की शेष अवधि के लिए प्रस्ताव आएगा। दर्जन भर बड़ी मांग के लिए बहस होनी है। इसके अलावा अल्पसूचित और तारांकित सवाल हैं। शून्यकाल है। सूखा, बीमारी और अपराध पर विशेष बहस की गुंजाइश है। यानी विपक्ष के पास ढेरों काम है।
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