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Bihar Assembly Elections : उस समय महंगी गाडिय़ों की बात कहां, केवल जीप से करीब एक माह तक चलता था प्रचार कार्य

Bihar Assembly Elections हर दौर में प्रचार का अलग-अलग रहा स्वरूप बहुत कम खर्च में जीत जाते थे चुनाव। अब तो हाल यह है कि कार्यकर्ता प्रत्याशी के भरोसे हैं जबकि पहले कार्यकर्ताओं के भरोसे प्रत्याशी होता था। उनके लिए चुनाव खर्च जुटाकर कार्यकर्ता जनसंपर्क में लग जाते।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 09 Oct 2020 12:59 PM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2020 12:59 PM (IST)
Bihar Assembly Elections : उस समय महंगी गाडिय़ों की बात कहां, केवल जीप से करीब एक माह तक चलता था प्रचार कार्य
साइकिल से प्रचार और रैली की बात इतिहास बन गई।

मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी ]। Bihar Assembly Elections : चुनाव में प्रचार का काफी महत्व होता है। हर दौर में इसका अलग-अलग स्वरूप और तरीका रहा है। पहले की अपेक्षा इसके तौर-तरीके काफी बदल गए हैं। अब तो हाल यह है कि कार्यकर्ता प्रत्याशी के भरोसे हैं, जबकि पहले कार्यकर्ताओं के भरोसे प्रत्याशी होता था। उनके लिए चुनाव खर्च जुटाकर कार्यकर्ता जनसंपर्क में लग जाते। बहुत कम खर्च पर लोग चुनाव जीतकर सदन तक पहुंच जाते थे। अपने दौर को याद करते हुए कटरा धनौर निवासी जेपी सेनानी व अधिवक्ता परशुराम मिश्र कहते हैं कि बात 1977 के चुनाव की है। उस समय गायघाट विधानसभा क्षेत्र से विनोदानंद सिंह प्रत्याशी हुए। समाजवादियों की टोली के बीच से उन्हें प्रत्याशी बनाने का फैसला हुआ था। 

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सभी एक साथ प्रचार में निकलते थे

उस समय उनके साथ बेरई के मुखिया ब्रजकिशोर सिंह, बसंत के डॉ. एकराम कादरी, धनौर के कृष्णचंद्र प्रसाद सिंह, गंगैया के साधुशरण व जीतबारा के यदुनाथ सरकार की टीम बनी। सभी एक साथ प्रचार में निकलते थे। उस समय करीब एक माह तक चुनाव प्रचार चलता था। इस दौर में मुश्किल से पांच से सात दिन ही अपने घर पर रहने का मौका मिल पाता था। शेष दिन क्षेत्र में ही कट जाते थे। जिसके दरवाजे पर पहुंचे, वहां सुबह कुछ न कुछ नाश्ता मिल जाता था। रोटी, सत्तू या दही-चूड़ा। नाश्ते के बाद टोली निकल जाती। उसी तरह दोपहर में कहीं खाना तो फिर दूसरे पड़ाव पर रात का भोजन। अब तो पानी पीने को मिल जाए, यही बड़ी बात है।

जीप से होता था प्रचार

जेपी सेनानी परशुराम मिश्र बताते हैं कि उस समय प्रत्याशी की ओर से एक जीप व पोस्टर दे दिए जाते थे। जीप में ईंधन के लिए धन प्रत्याशी से नहीं लिया जाता था। चंदे की पर्ची छप गई। पांच-पांच रुपये सहयोग राशि के रूप में कुछ लोगों से संग्रह किया जाता था। उस समय डीजल भी सस्ता था, इसलिए कोई ज्यादा राशि नहीं चाहिए होती थी। ईंधन भराकर प्रचार में निकल जाते थे। लेकिन, अभी क्या हाल है, कार्यकर्ताओं के लिए उम्मीदवार महंगे वाहन उपलब्ध कराते हैं। साइकिल से प्रचार और रैली की बात इतिहास बन गई। उसकी जगह बाइक रैली ने ले ली।  


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