चुनाव से पहले सवर्ण और दलितों की नाराजगी ने बढ़ाई चिंता
सवा तीन घंटे चली संघ और भाजपा की समन्वय बैठक में छाया रहा सामाजिक समरसता का मुद्दा -- कोर ग्रुप की बैठक से पहले निकल गए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
भोपाल (नईदुनिया स्टेट ब्यूरो)। चुनाव से पहले प्रदेश में सामाजिक सौहार्द क्यों बिगड़ रहा है। प्रदेश में वर्ग संघर्ष की नौबत क्यों आई। क्या कारण है कि आदिवासी और दलित वर्ग भाजपा से नाराज हो रहा है। सवर्ण और दलितों के बीच बढ़ती वैमन्स्यता भाजपा के लिए ही नुकसानदेह है। इससे कैसे निपटा जाए। कैसे सभी वर्गों का भरोसा जीता जाए।
ये वे सवाल हैं जिन पर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिग्गजों ने सवा तीन घंटे मंथन किया। राजधानी के शारदा विहार विद्यालय में संघ और भाजपा की इस बैठक में समन्वय बैठक में विधानसभा चुनाव से पहले उपजी चुनौतियों पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया।
लंबे समय बाद हुई इस बैठक में पहली बार नए संघ के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के नए क्षेत्र प्रचारक दीपक बिस्पुते और सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल मौजूद थे। वहीं भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल, सांसद प्रभात झा, राकेश सिंह, फग्गनसिंह कुलस्ते, कैलाश विजयवर्गीय सहित संघ के अनुषांगिक संघठनों के पदाधिकारी भी मौजूद थे।
दोनों बैठकें लगभग चार घंटे तक चलीं, जिसमें प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक हालातों पर चर्चा की गई। हालांकि पौन घंटे तक चली कोरग्रुप की बैठक मात्र औपचारिक रही। इस बैठक से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान निकल गए थे।
दलित क्यों भड़के
संघ नेताओं ने इस बैठक में पूछा कि आखिर ऐसी कौन-सी परिस्थिति निर्मित हुई कि प्रदेश में दलित आंदोलन भड़क गया और आठ लोगों की जान चली गई। संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि चाहे सवर्ण नाराज हों या दलित-आदिवासी, नुकसान भाजपा का ही होगा। ये वर्ग छिटक कर दूसरी पार्टियों के पास चला जाएगा। चुनाव से ठीक पहले बिगड़े इस माहौल को लेकर आगे सामाजिक समरसता के कार्यक्रम चलाए जाने पर सहमति बनी। सवर्ण क्यों नाराज हैं इस पर विचार किया जाए।
अनुषांगिक संगठन भी नाराज
संघ के अनुषांगिक संगठनों में भारतीय किसान संघ, सेवा भारती सहित कई संगठनों के प्रतिनिधि भी बैठक में मौजूद थे। इन संगठनों ने नाराजगी जाहिर की कि राज्य सरकार बिना उन्हें भरोसे में लिए फैसले कर लेती है। किसान संघ ने भावांतर योजना का उल्लेख करते हुए कहा कि फसल की मूल रकम तो किसान को मिल जाती है, लेकिन भावांतर की राशि के लिए उसे कई चक्कर काटना पड़ता है। इन्हीं हालातों के कारण आंदोलन होते हैं। मंदसौर किसान आंदोलन के बाद से प्रदेश में बने माहौल से लेकर किसान आत्महत्या के मुद्दे पर भी बैठक में चर्चा हुई।
चुनौतियां क्या हैं
सवा तीन घंटे तक चले मंथन में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले बन रहे माहौल पर भी विचार किया गया। खासतौर से बाबाओं की नियुक्ति जैसे विवादास्पद फैसलों से बचने की सलाह भी सीएम को दी गई। चर्चा में तय किया गया कि जिन मुद्दों पर किसान और दलित वर्ग नाराज हैं,उस बारे में फैसले लिए जाएं।