After Ayodhya Verdict : विवादित ढांचे का विध्वंस : 49 मुकदमे, 347 गवाही, जल्द आएगा फैसला
After Ayodhya Case Verdict अयोध्या के थाना रामजन्म भूमि में छह दिसंबर 1992 की शाम करीब 5.15 बजे विवादित ढांचा विध्वंस का पहला मुकदमा (क्राइम नंबर 197/92) कायम हुआ था।
लखनऊ [आलोक मिश्र]। छह दिसंबर 1992। यह वह नायाब तारीख है, जिस दिन आस्था का सैलाब अपने उत्कर्ष पर था। अयोध्या में देशभर के कारसेवक जुटे थे और वहां विवादित ढांचे का ढहा दिया गया था लेकिन, जनभावनाओं के उस तूफान के बीच कानून तटस्थ था।
पुलिस ने उसी शाम एफआइआर दर्ज कर वह विधिक प्रक्रिया शुरू की थी, जिसके अंतिम फैसले पर करोड़ों निगाहें आज 27 बरस बाद भी टिकी हैं। तब कानून के शिकंजे में आए शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे व विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंहल समेत कई दिग्गज अब इस दुनिया में नहीं हैं।
अयोध्या के थाना रामजन्म भूमि में छह दिसंबर 1992 की शाम करीब 5.15 बजे विवादित ढांचा विध्वंस का पहला मुकदमा (क्राइम नंबर 197/92) कायम हुआ था। तत्कालीन थानाध्यक्ष प्रियमवदा नाथ शुक्ला की ओर से लाखों अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई गई। डकैती, धार्मिक स्थल को क्षति पहुंचाने, धार्मिक सौहार्द बिगाडऩे समेत आठ धाराओं में रिपोर्ट लिखी गई। ठीक दस मिनट बाद इसी थाने में तत्कालीन चौकी प्रभारी गंगा प्रसाद तिवारी ने दूसरा मुकदमा (क्राइम नंबर 198/92) दर्ज कराया था, जिसमें अशोक सिंघल, मंदिर आंदोलन के प्रमुख नेता गिरिराज किशोर, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी, विहिप के नेता विष्णु हरि डालमिया, भाजपा सांसद विनय कटियार, उमा भारती व साध्वी ऋतंधरा को नामजद किया गया था।
यह एफआइआर धार्मिक उन्माद भड़काने, जनहानि के आशय से अफवाह फैलाने समेत अन्य धारा में दर्ज हुई थी। इसी थाने में मीडिया कर्मियों की ओर से भी अलग-अलग तारीखों में 47 मुकदमे दर्ज कराए गए थे। थाना रामजन्म भूमि में दर्ज इन कुल 49 मुकदमों की सीबीआइ जांच से लेकर कोर्ट में सुनवाई तक की यात्रा बेहद दिलचस्प है। एक ओर कानूनी कार्रवाई के कदम बढ़ते रहे तो दूसरी ओर देश की सियासी तस्वीर बदलती रही।
विवादित ढांचा विध्वंस के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अपने पद से इस्तीफा दे चुके थे और सियासत तेजी से करवट बदल रही थी। 13 दिसंबर को केंद्र सरकार ने रामजन्म भूमि थाने में दर्ज पहली एफआइआर की सीबीआइ जांच की मंजूरी दे दी थी।
सीबीआइ ने 13 दिसंबर 1992 को ही थाना रामजन्म भूमि में तत्कालीन थानाध्यक्ष की ओर से दर्ज कराई गई पहली एफआइआर को आधार बनाकर अपना रेगुलर केस दर्ज किया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने 25 अगस्त 1993 को थाना रामजन्म भूमि में दर्ज अन्य मुकदमों की भी सीबीआइ जांच की मंजूरी दे दी। सीबीआइ ने 27 अगस्त 1993 को थाना रामजन्म भूमि में अशोक सिंहल समेत आठ नामजद आरोपितों के खिलाफ दर्ज कराई गई दूसरी एफआइआर पर अपना केस दर्ज कर उसकी विवेचना शुरू की। इसी दिन मीडिया कर्मियों की ओर से दर्ज कराई गईं 47 एफआइआर पर भी सीबीआइ ने रेगुलर केस दर्ज कर उनकी जांच शुरू की। सीबीआइ ने पूरे प्रकरण में कुल 49 केस दर्ज कर अपनी पड़ताल को सिलसिलेवार आगे बढ़ाया।
अशोक सिंहल समेत आठ नामजद आरोपितों के खिलाफ थाना रामजन्म भूमि में दर्ज मुकदमे की सुनवाई के लिए ललितपुर (झांसी) में अस्थायी कोर्ट का गठन किया गया था, जबकि अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ दर्ज कराए गए मुकदमे की सुनवाई लखनऊ सीबीआइ कोर्ट में शुरू हुई। बाद में ललितपुर कोर्ट में चल रहे मुकदमे को रायबरेली कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था। बताया गया कि सितंबर 1993 को सीबीआइ ने सभी केस लखनऊ स्थित सीबीआइ कोर्ट में चलाए जाने की सिफारिश भी की थी।
वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि विवादित ढांचा विध्वंस प्रकरण से जुड़े सभी केसों का ट्रायल लखनऊ में 'स्पेशल जज अयोध्या प्रकरण' की कोर्ट में ही चलाया जाये। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दो साल की समयावधि तय करते हुए यह भी कहा था कि मामले के निस्तारण तक स्पेशल जज अयोध्या प्रकरण का तबादला न किया जाए। प्रकरण की दिन-प्रतिदिन सुनवाई हो रही है। अब तक करीब 347 गवाहों की गवाही हो चुकी है। जल्द इस केस का फैसला आने की भी उम्मीद है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने मई 2019 में स्पेशल जज अयोध्या प्रकरण की स्टेटस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए अग्रिम छह माह की अवधि में ट्रायल पूरा करने तथा तीन माह की अवधि में फैसला सुनाने का आदेश पारित किया है।
यह हैं आरोपी
पहली चार्जशीट : शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे, लाल कृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, अशोक सिंहल, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, पवन कुमार पांडेय, बृज भूषण शरण सिंह, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, गिरिराज किशोर, अयोध्या के तत्कालीन डीएम आरएएस श्रीवास्तव व एसएसपी डीबी राय
(सीबीआइ ने 40 आरोपितों के खिलाफ पहली चार्जशीट पांच अक्टूबर 1993 को लखनऊ की स्पेशल कोर्ट में दाखिल की थी)
दूसरी चार्जशीट : राम विलास वेदांती, धरम दास, महंत नृत्य गोपाल दास, महामंडलेश्वर जगदीश मुनि महाराज, बैकुंठलाल शर्मा, परमहंस राम चंद्र दास, विजय राजे सिंधिया व सतीश कुमार।
(नौ आरोपितों के खिलाफ दूसरी चार्जशीट (सप्लीमेंट्री) 11 जनवरी 1996 को लखनऊ कोर्ट में दाखिल की गई)
बिना जमानत के छूटे थे आरोपित
अधिवक्ता अभिषेक रंजन बताते हैं कि पांच अक्टूबर 1993 को दाखिल की गई चार्जशीट का संज्ञान लेकर कोर्ट ने समन जारी कर आरोपितों को तलब किया था। सात दिसंबर 1993 को लाल कृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, साध्वी ऋतंभरा, पवन कुमार पांडेय समेत कई अन्य आरोपित कोर्ट में पेश हुए थे। कोर्ट ने उन्हें पर्सनल बांड पर रिलीज करने का आर्डर किया था, लेकिन आरोपितों ने जमानत लेने से इन्कार कर दिया था। तब कोर्ट ने उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजने का आदेश दिया। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 20 दिसंबर 1993 की तय की, लेकिन इस तारीख पर सुरक्षा कारणों से जेल भेजे गए आरोपितों को कोर्ट में पेश नहीं किया जा सका था। तब कोर्ट ने बिना जमानत के सभी को छोडऩे का आदेश दिया था।
डीएम ने नहीं दिए थे गोली चलाने के आदेश
विवादित ढांचा विध्वंस के केस को पहले दिन से देखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता आईबी सिंह के जेहन में अब भी बरसों पुरानी यादें क्षण में ताजा हो जाती हैं। देश के सबसे अहम मुकदमों मेें से एक इस केस के कानूनी उतार-चढ़ाव से लेकर जिरह की तल्खी देख चुके आईबी सिंह ने उस सीडी को भी कई बार बेहद गौर से देखा है, जिसमें छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में हुई घटना कैद है। अयोध्या के तत्कालीन डीएम व एसएसपी की ओर से कोर्ट में अपना वकालतनामा दाखिल करने वाले आइबी सिंह दैनिक जागरण से खास बातचीत में बताते हैं कि उस दिन दोपहर 12.10 बजे तक सबकुछ ठीक था। कारसेवकों का सैलाब तो था, लेकिन कहीं कोई गड़बड़ नहीं थी। कारसेवक सरयू से जल लाकर विवादित ढांचे के पास बने चबूतरे को धो रहे थे। करीब पांच हजार की संख्या में फोर्स तैनात थी। मानस भवन की छत पर पुलिस व प्रशासन के अफसर बैठे थे और सीता रसोई में कंट्रोल रूम बना था। तभी करीब 30-40 कारसेवकों ने विवादित ढांचे के आगे बने बैरियर को तोडऩे का प्रयास किया। पुलिसकर्मियों के रोकने पर उनसे कहासुनी व धक्कामुक्की भी हुई। देखते ही देखते रामकथा कुंज पर जमा कारसेवक भी उस ओर दौड़ पड़े और फिर बैरियर व लोहे की जालियां टूटने लगीं। कारसेवकों की भीड़ के आगे पुलिस बेबस होती चली गई। दोपहर करीब एक बजे डीएम ने फैजाबाद स्थित डोगरा रेजीमेंट से सैनिकों को बुलाने का फैसला लिया। सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने मजिस्ट्रेट के आने पर ही कदम बढ़ाने की बात कही। तब सिटी मजिस्ट्रेट सुधाकर अदीब डोंगरा रेजीमेंट भेजे गये। सिटी मजिस्ट्रेट आगे चले और सेना पीछे। सिटी मजिस्ट्रेट सेना लेकर साकेत डिग्री कॉलेज के पास पहुंचे। वहां करीब एक लाख लोग जमा थे। एक ओर पानी के टैंक खड़े थे, दूसरी ओर रेलवे ट्रैक पर कारसेवक पत्थर लिए खड़े थे। हालात बेकाबू हो चुके थे। सेना के अधिकारियों ने कहा कि बिना फायर किये आगे नहीं बढ़ेंगे। सिटी मजिस्ट्रेट ने तत्काल डीएम से संपर्क साधा, लेकिन डीएम ने गोली चलाने का आदेश देने से साफ मना कर दिया। फिर सिटी मजिस्ट्रेट से सेना को वहीं से वापस भेज दिया था।
सीबीसीआइडी ने भी की थी विवेचना
विवादित ढांचा विध्वंस मामले में अशोक सिंहल समेत आठ लोगों के खिलाफ दर्ज कराए गए मुकदमे की जांच सीबीसीआइडी ने भी की थी। सीबीसीआइडी ने इस मामले में एक आरोपपत्र ललितपुर कोर्ट में दाखिल किया था। इस केस की सीबीआइ भी जांच कर रही थी और सीबीसीआइडी की जांच को लेकर सवाल भी उठे थे।
लिब्रहान आयोग ने भी की थी जांच
विवादित ढांचा विध्वंस के बाद सरकार ने प्रकरण की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का भी गठन किया था। रिटायर जस्टिस एमएस लिब्रहान की अगुवाई में आयोग ने पूरे प्रकरण की जांच की थी और अपनी जांच रिपोर्ट करीब 17 साल बाद वर्ष 2009 को सौंपी थी। आयोग की जांच अवधि कई बार बढ़ाई गई थी।