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After Ayodhya Verdict : हाजी फेकू के पौत्र आफाक सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश, कहा-देश की आजादी जैसा अहसास

After Ayodhya Verdict आफाक अहमद उन हाजी फेकू के पौत्र हैं जो 22-23 दिसंबर 1949 की रात रामलला के प्राकट्य के समय विवादित मस्जिद के मुतवल्ली थे।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 25 Nov 2019 10:00 PM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2019 10:00 PM (IST)
After Ayodhya Verdict : हाजी फेकू के पौत्र आफाक सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश, कहा-देश की आजादी जैसा अहसास
After Ayodhya Verdict : हाजी फेकू के पौत्र आफाक सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश, कहा-देश की आजादी जैसा अहसास

अयोध्या [रघुवरशरण]। भगवान राम की नगरी अयोध्या के राम मंदिर के हक में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला राष्ट्र की भावना को वरीयता देने वालों के लिए बेहद खुशी भरा पल है। भोलू भाई की उर्फियत से विख्यात आफाक अहमद का कहना है यह क्षण देश की आजादी के बाद सबसे बड़ी खुशी लेकर आया है।

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आफाक अहमद उन हाजी फेकू के पौत्र हैं, जो 22-23 दिसंबर 1949 की रात रामलला के प्राकट्य के समय विवादित मस्जिद के मुतवल्ली थे। उन्होंने सबसे पहले रामलला की मूर्ति हटाने की मांग करते हुए अदालत की शरण ली थी। इसके बाद हाजी फेकू के पुत्र यानी आफाक के पिता हाजी अब्दुल अहद और उनके चाचा हाजी महबूब ने मस्जिद की दावेदारी जिंदा रखी। बढ़ती उम्र के चलते अब्दुल अहद गत वर्ष 20 अक्टूूबर को चिरनिद्रा में लीन होने से दशकों पूर्व ही इस विवाद से दूर हो गए थे पर उनके अनुज एवं आफाक के चाचा हाजी महबूब मस्जिद की दावेदारी के पर्याय बनकर सामने आए।

इसी नौ नवंबर को रामलला के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ का एक मत से फैसला आने के बावजूद हाजी महबूब जहां सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की तैयारी में हैं, वहीं उनके भतीजे यानी आफाक फैसले को जश्न का महान अवसर करार देते हैं।

उनका कहना है कि मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते बहुसंख्यक हिंदू देश के मुस्लिमों को संदेह की निगाह से देखता था पर मुस्लिमों ने खुशी-खुशी यह फैसला स्वीकार कर अपने ऊपर लगा दाग धो दिया। छोटा भाई होने का मजबूती से फर्ज निभाया। आफाक के मुताबिक हिंदुओं को भी मुस्लिमों की भावना का आदर करते हुए उन्हें छोटे भाई की तरह अपनत्व देना होगा। आफाक पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के विचार को गैर जिम्मेदाराना करार देते हैं। उनका कहना है, आज सबसे बड़े विवाद से मुक्ति के जश्न में शामिल होने का मौका है। इस विवाद को फिर से जिंदा करने की कोशिश करना किसी कुफ्र से कम नहीं है।

अब मंदिर-मस्जिद विवाद का अंत करने के लिए वे न्यायाधीशों के साथ ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करते हैं।  


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