संकट में कांग्रेसः क्या गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता पार्टी को उबार सकता है
कांग्रेस में समय-समय पर गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल उठते रहे हैं। देखना यह है कि संदीप दीक्षित का क्या हश्र होता है।
नई दिल्ली। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने कांग्रेस को संकट से बाहर निकालने के लिए किसी गैर गांधी को पार्टी की कमान सौंपने की मांग की है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस बात की कोई संभावना है? मान लीजिए, ऐसा हो भी जाता है तो कांग्रेस के इतिहास को देखते हुए क्या इस बात की संभावना नहीं है कि घूम-फिर कर कमान गांधी परिवार के पास ही वापस आएगी?
कुछ बोल रहे हैं, कुछ चुप
इस मुद्दे पर जागरण डॉट कॉम ने राजनीतिक विश्लेषकों से चर्चा की तो काफी दिलचस्प तस्वीर उभर कर सामने आई। वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता मुंबई के पूर्व संपादक प्रदीप सिंह कहते हैं कि संदीप दीक्षित यह सवाल उठाने वाले पहले नेता नहीं है। धीरे-धीरे कई लोग इस तरह की बात कर रहे हैं। कोई बोल रहा है, तो कोई चुप है। दीक्षित से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया और मनीष तिवारी जैसे युवा नेता पार्टी को उबारने के लिए कांग्रेस की लीडरशिप में बदलाव का सुझाव दे चुके हैं।
पार्टी के कई नेता सीधे नहीं बोल रहे हैं, क्योंकि उन्हें बाहर किए जाने का खतरा है। राहुल गांधी को अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद लोग तैयार थे कि गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता को अध्यक्ष बनाया जाए। लेकिन पार्टी में जो नेता सोनिया के कारण जमे हुए हैं और पार्टी में ही अपने बच्चों का भविष्य देख रहे हैं, वे ऐसा नहीं होने देना चाहते।
फिर भी हो सकता है बदलाव
हर चुनाव के बाद ऐसी चर्चा होती है, लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आता है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के जो नेता करियर के आखिरी दौर में है, वो यथास्थिति को बनाए रखने के हिमायती हैं। वे नेता जो देख रहे हैं कि कांग्रेस में ही उनका भविष्य है, तो उनके मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि फिर कांग्रेस का भविष्य क्या है?
अगर कांग्रेस में गांधी परिवार से बाहर के नेता को अध्यक्ष बनाने का अभियान जोर पकड़ता है, तो बदलाव दिख सकता है। पार्टी को यह समझ लेना होगा कि नेता की ताकत इस बात से तय होता है कि वो वोट दिला सकता है कि नहीं। गांधी परिवार अब वोट नहीं दिला पा रहा है। संगठन की हालत खराब है। पार्टी के पिछले दो संकटों के समय इंदिरा गांधी ताकतवर थी। अब स्थितियां बदल चुकी हैं। गांधी परिवार के फैसलों पर लोग सवाल उठा रहे हैं। यह बड़ा परिवर्तन है। बदलाव की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन रफ्तार धीमी है। इसे तेज करने की जरूरत है।
गांधी परिवार ही उबारेगा
कांग्रेस के अंदर से पैदा हो रहे इन सवालों पर जब वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन से बात की गई तो उनकी राय कुछ जुदा निकली। उनका कहना है कि फिलहाल तो यह मुश्किल लग रहा है कि गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता पार्टी की कमान संभाल सकता है और उसे संकट से उबार सकता है। जो लोग गांधी परिवार पर उंगली उठा रहे हैं, उन्हें पहले अपने ही आचरण पर ध्यान देना होगा। संदीप दीक्षित के नाना उमाशंकर दीक्षित गांधी परिवार के कितने बड़े भक्त रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। सवाल यह भी है कि सिंधिया जैसों को कौन नेता मानेगा। पार्टी में अभी कोई नेता नहीं दिख रहा है जो पूरे देश का नेतृत्व करने की स्थिति में हो।
राहुल प्रियंका की जो भी बचीखुची स्वीकार्यता है वह पर्याप्त है। उनकी सबसे बड़ी ताकत यही है कि गांधी परिवार से हैं। पार्टी को जो भी वोट मिल रहे हैं वो उन्हीं की बदौलत मिल रहे हैं। जब तक यह भरोसा रहेगा तब तक उनकी लीडरशिप रहेगी। क्या प्रियंका को आगे नहीं लाना चाहिए, इस सवाल पर वे कहते हैं कि राजनीति में `चाहिए` जैसा कुछ नहीं होता है।
क्या कांग्रेस की गांधी परिवार से बाहर कोई गति नजर नहीं आ रही है, इस सवाल पर अरविंद मोहन का कहना है कि दरअसल, देश की सबसे पुरानी यह पार्टी संघर्ष की पालिटिक्स से काफी दूर हो गई है। कहा जाए तो उसका इसमें भरोसा भी नहीं रहा है। जिस दिन भाजपा कमजोर होगी उस दिन कांग्रेस को मौका मिलेगा। पार्टी और उसका नेतृत्व इन्हीं दिनों के इंतजार में है।
गैर गांधी की गुंजाइश नहीं
कांग्रेस के संकट और पार्टी में गौर गांधी को नेतृत्व सौंपने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार प्रंजय गुहाठाकुरता का कहना है कि भारतीय राजनीति की मौजूदा स्थिति में कांग्रेस को गांधी परिवार के अलावा और कोई सहारा नहीं है। दरअसल, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से व्यक्ति केंद्रित राजनीति की जमीन मजबूत हुई है। एक तरह से मोदी व्यक्ति केंद्रित राजनीति के सफल तजुर्बेकार के रूप में उभर कर सामने आए हैं। अमेरिका की तरह व्यक्ति केंद्रित इस राजनीति में कांग्रेस को भी एक मजबूत आधार की जरूरत है और गांधी परिवार वह मुहैया कराता है।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में पहली बार संकट और उससे बाहर निकलने के तरीकों पर चर्चा हो रही है। लोगों को याद होगा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने भी कांग्रेस के existential crisis यानी अस्तित्व के संकट की चर्चा की थी। लेकिन सवाल वही पर आकर ठहर जाता है कि कांग्रेस के गले में घंटी कौन बांधेगा? क्या ज्यातिरादित्य सिंधिया या सचिन पायलट और अशोक गहलोत या भूपेश बघेल जैसे नेता इसके लिए तैयार हैं? प्रंजय गुहाठाकुरता का मानना है कि कांग्रेस को गांधी परिवार के नेतृत्व में ही आगे बढ़ना चाहिए और मोदी की राजनीति का मुकाबला करना चाहिए।