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जब अपने ही लोगों के हिंसा करने पर बापू ने आंदोलन ले लिया था वापस

अपना विरोध जाहिर करने के लिए जो लोग हिंसा पर उतर आते हैं, उन्हें इतिहास की इस घटना से सीखना चाहिए। जब महात्मा गांधी ने अहिंसा के प्रति अपने संकल्प के चलते एक देशव्यापी आंदोलन को ही वापस ले लिया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 30 Sep 2018 02:18 PM (IST)Updated: Sun, 30 Sep 2018 02:18 PM (IST)
जब अपने ही लोगों के हिंसा करने पर बापू ने आंदोलन ले लिया था वापस
जब अपने ही लोगों के हिंसा करने पर बापू ने आंदोलन ले लिया था वापस

नई दिल्‍ली। अपना विरोध जाहिर करने के लिए जो लोग हिंसा पर उतर आते हैं, उन्हें इतिहास की इस घटना से सीखना चाहिए। जब महात्मा गांधी ने अहिंसा के प्रति अपने संकल्प के चलते एक देशव्यापी आंदोलन को ही वापस ले लिया था। 1919 में जलियावालां बाग कांड के बाद 31 अगस्त, 1920 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ शांतिपूर्ण और र्अंहसात्मक असहयोग आंदोलन की अगुवाई की। इसके तहत लोगों ने विद्रोह जताने के लिए सार्वजनिक परिवहन त्याग दिया और ब्रिटिश सामान खरीदना बंद कर स्थानीय उत्पादों को खरीदना शुरू किया।

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खासतौर पर ब्रिटिशों के बनाए कपड़ों को तिलांजलि दी गई। सभी दफ्तर व फैक्ट्री बंद कर दी गईं, लोगों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा संचालित स्कूलों, पुलिस सेवाओं, सेना और लोक सेवा से खुद को अलग करना शुरू किया। वकीलों से आग्रह किया गया कि वे ब्रिटिश सरकार के कोर्ट को छोड़ दें। असहयोग आंदोलन के दौरान पूरा राष्ट्र उबाल पर था। स्वतंत्रता की चेतना देश के हर नागरिक में घर कर गई थी। अचानक चौरी चौरा कांड हुआ। 2 फरवरी, 1922 को आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे। स्थानीय पुलिस ने उनपर लाठीचार्ज कर दिया। कई प्रदर्शनकारियों को चौरी चौरा जेल में बंद कर दिया गया। इसके जवाब में बाजार के बीचोंबीच पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन करने की योजना बनाई गई।

5 फरवरी को ढाई हजार लोग बाजार में जमा हुए और सरकार विरोधी नारे लगाने लगे। उनके प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस वालों ने गोलियां चलाई जिसमें तीन लोगों की जान गई। इससे प्रदर्शनकारी अपना आपा खो बैठे।पुलिसवालों ने खुद को बचाने के लिए थाने में शरण ली। लेकिन प्रदर्शनकारियों ने थाने में आग लगा दी। इससे महिलाएं-बच्चे तथा पुलिसकर्मी मारे गए। गांधीजी ने दु:खी होकर आंदोलन वापस ले लिया। उतावले देश भक्त गांधीजी की इस घोषणा से नाराज भी हुए, किंतु गांधी जी ने कहा कि हम अहिंसा दर्शन के साथ समझौता नहीं कर सकते। गांधीजी की यह घोषणा पूरी दुनिया में गई। गांधी की देश की स्वतंत्रता की मांग की स्वीकार्यता पूरे विश्व में होने लगी और देश की आजादी का यह आधार भी बनी। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र गांधी जी को महानायक मानता है और उनके जन्मदिन 2 अक्टूबर को संपूर्ण विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है।


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